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भारत के अरबपति छोड़ रहे हैं अपने देश की नागरिकता, जानें किन देशों में जाकर बस रहे हैं ये अमीर?

विदेश मंत्रालय के मुताबिक 2022 में 2 लाख 25 हज़ार भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी है. साल 2011 से 2022 तक नागरिकता छोड़े जाने के मामले में ये नंबर सबसे ज्यादा है.

भारत के ज्यादातर अमीर लोग देश छोड़ रहे हैं और इसके लिए वो जो रास्ता अपना रहे हैं उसे रेसिडेंस बाई इंवेस्टमेंट कहते हैं. भारत की नागरिकता छोड़ने वाले इन अमीरों को एचएनआई या डॉलर मिलिनेयर्स बुलाया जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर रेसिडेंस बाई इन्वेस्टमेंट क्या होता है. हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल बनने के लिए कितने संपत्ति की दरकार होती है. और ये लोग भारत की नागरिकता किन कारणों से छोड़ रहे है.
 
विदेश मंत्रालय के मुताबिक 2022 में 2 लाख 25 हज़ार भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी है. साल 2011 से 2022 तक नागरिकता छोड़े जाने के मामले में ये नंबर सबसे ज्यादा है. देश के सामने संसद में ये डेटा 9 फरवरी को रखा गया. 

भारत छोड़ने का ये है प्रमुख कारण

तमाम मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जिन कारणों से ये लोग भारत छोड़ रहे हैं उनमें बेहतर अवसर से लेकर हेल्थकेयर, जिंदगी जीने की बेहतर गुणवत्ता और बेहतर शिक्षा के अवसर शामिल है. इनके अलावा भी तमाम फैक्टर्स हैं जिनकी वजह से ये लोग देश छोड़ रहे हैं. ऐसी ही एक केस स्टडी में एक परिवार ने बताया कि वो साल 2019 में कनाडा गए थे और 2022 में उन्होंने कनाडा के परमानेंट रेजिडेंट के लिए अप्लाई किया. इसके पीछे की वजह बताते हुए इस परिवार ने कहा कि उन्होंने बार-बार अपने बच्चे का स्कूल बदलना ठीक नहीं समझा. इसके अलावा उन्होंने एक और चौंकाने वाली बात बताई.


उन्होंने कहा कि जब वो दिल्ली में रह रहे थे तब उनकी बेटी को खराब हवा की वजह से अक्सर सांस से जुड़ी दिक्कतें होती थीं. लेकिन पॉल्यूशन वाली दिल्ली की तुलना में कनाडा के शहर की हवा साफ और सांस लेने योग्य है. वहां जाने के बाद उनकी बेटी ने कभी सांस से जुड़ी किसी दिक्कत की शिकायत नहीं की. ऐसे में ये भी परमानेंट रेजिडेंट के लिए अप्लाई करने का एक कारण बना. परमानेंट रेजिडेंट के लिए एक बार अप्लाई करने के पांच साल बाद नियम और शर्तें पूरी करने पर कनाडा की नागरिकता भी मिल जाती है.

भारत में HNIs की क्या परिभाषा है?

जैसा कि शुरुआत में जिक्र किया गया है कि भारत की नागरिकता छोड़ने वालों में एचएनआई शामिल हैं. हाई नेट वर्थ वाले वो होते हैं जिनकी कुल संपत्ति एक मिलियन डॉलर से ज्यादा की हो. रुपए में एक मिलियन की ये रकम 8.2 करोड़ होगी. हेनले वैश्विक नागरिक रिपोर्ट (Henley Global Citizens Report) के मुताबिक भारत में इस ग्रुप के लगभग 3 लाख 47 हजार लाख लोग हैं. ये आंकड़ा दिसंबर 2021 तक का है. ये 3 लाख 47 हजार लोग भारत के महज नौ शहरों से आते हैं. इन शहरों में देश की राजधानी दिल्ली और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई शामिल हैं.


इन दोनों के अलावा एक दौर में भारत की राजधानी रहा कोलकाता भी शामिल है. कोलकाता के अलावा बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, गुड़गांव और अहमदाबाद बाकी के शहर हैं. इसी रिपोर्ट के मुताबिक प्राइवेटली हेल्ड वेल्थ यानी ऐसे हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स के मामले में अमेरिका, चाइना और जापान के बाद इंडिया चौथे नंबर पर है. ऐसे हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल्स वेस्टर्न कंट्रीज़ में रेजिडेंट बाई इंवेस्टमेंट का रास्ता अपना रहे हैं. इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि पिछले कुछ सालों में निवास के माध्यम से निवेश की मांग बढ़ी है. इस मामले में यूएस के EB-5 वीजा की मांग सबसे ज्यादा है.

इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया का ग्लोबल टैलेंट इंडिपेंडेंट वीजा, पुर्तगाल का गोल्डेन वीजा और ग्रीस का रेसिडेंस बाई इंवेस्टमेंट प्रोग्राम काफी मशहूर है. पुर्तगाल गोल्डन वीजा के मामले में तो भारत साल 2021 में दुनियाभर में चौथे नंबर पर था. लेकिन साल 2022 में तीसरे स्थान पर आ गए. 

अब सवाल ये उठता है कि आखिर रेसिडेंस बाई इन्वेस्टमेंट की जरूरत क्यों पड़ती है. तो अगर पुर्तगाल को उदाहरण लें तो यहां का स्थायी निवासी होने के लिए आपको कम से कम साढ़े चार करोड़ की प्रॉपर्टी खरीदनी होती है और पुर्तगालियों के लिए कम से कम 10 जॉब्स क्रिएट करने होते है. ये सबसे जरूरी शर्तों में शामिल है. 

ऐसे इन्वेस्टमेंट के पांच साल बाद आपको पुर्तगाल का पासपोर्ट मिल जाता है. इस पासपोर्ट के साथ आप दुनिया के 150 देशों में बिना वीजा के जा सकते हैं. हालांकि, एक रिपोर्ट के मुताबिक पुर्तगाल ने ये प्रोग्राम समाप्त करने का फैसला लिया है. 

अमेरिका में कैसे बनते हैं स्थायी निवासी

अब बात करते हैं कि अमेरिका के EB-5 वीजा की. इसके लिए आपको पांच से सात सालों में कम के कम स साढ़े छह करोड़ रुपए इन्वेस्ट करने होते हैं. साथ ही यूएस के लोगों के लिए कम से कम 10 जॉब्स क्रिएट करने होते हैं. ऐसा करने के बाद पुर्तगाल की तरह 5 सालों में आपको अमेरिका की नागरिकता मिल जाती है. 

पुर्तगाल की तरह यूएस की नागरिकता के मामले में भी भारतीय तीसरे नंबर पर हैं. इस तरह से नागरिकता छोड़ रहे भारतीय के बारे में कहा जा रहा है कि वो ऐसा कई वजहों से कर रहे हैं. क्वालिटी ऑफ लाइफ भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है. 

भारत एक असमानता वाला देश 

दुनिया में असमानता को लेकर जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत एक गरीब और असमानता वाला देश है. रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में रईसों के हाथ में बहुत पैसा है. अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने इस रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि देश की कुल कमाई का 57 फीसदी हिस्सा ऊपर के 10 फीसदी तबके के हाथों में है. जबकि देश की कुल कमाई में 50 फीसदी यानी देश में नीचे की आधी आबादी का हिस्सा मात्र 13 फीसदी है.

इसी रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में दुनिया की कुल कमाई में गिरावट हुई. इनमें से आधी गिरावट अमीर देशों में हुई है. वर्ल्ड इनिक्वैलिटी लैब की रिपोर्ट के अनुसार भारत गरीब और असमान देश है. इस देश में रईसों के हाथ में काफी दौलत है. जबकि भारत का मिडिल क्लास ऊपर के तबके की तुलना में गरीब है. देश की कुल कमाई में मध्य वर्ग का हिस्सा 29.5 प्रतिशत है. सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों के हाथों में 33 प्रतिशत दौलत है. कमाई में सबसे अमीर 1 प्रतिशत लोगों का हिस्सा 65 प्रतिशत है.

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