'यह नियम की मूल भावना के विपरीत..', राज्यसभा में क्यों विपक्ष पर बिगड़ पड़े उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन?
राज्यसभा में सभापति सीपी राधाकृष्णन ने नियम 267 के बढ़ते इस्तेमाल पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने इस रूल के दायरे और उद्देश्य को विस्तार से स्पष्ट किया है. उन्हें नियम के तहत दो नोटिस मिले हैं.

राज्यसभा में सभापति सीपी राधाकृष्णन ने आज सदन में नियम 267 के बढ़ते इस्तेमाल और उसके दुरुपयोग पर चिंता जाहिए की है. उन्होंने इसके दायरे और उद्देश्य को भी विस्तार से स्पष्ट किया है. सीपी राधाकृष्णन ने बताया कि इस नियम के तहत दो नोटिस मिले हैं और सदन में उठाई गई मांगों के बाद उन्होंने पूरे प्रावधान की समीक्षा की है.
सभापति ने बताया कि नियम 267 के तहत लगभग रोज़ाना नोटिस दिए जा रहे हैं. इनमें सूचीबद्ध कामकाज को रोककर विभिन्न विषयों पर चर्चा की मांग की जाती है. ये नियम की मूल भावना के विपरीत है. यह नियम 267 का उद्देश्य नहीं है. इसलिए इसके सही उपयोग को जानना आवश्यक है.
नियम 267 लोकसभा स्थगन प्रस्ताव जैसा
सभापति ने कहा कि राज्यसभा में नियम 267 की तुलना लोकसभा के ‘Adjournment Motion’ से करना गलत है. सभापति ने स्पष्ट किया कि स्थगन प्रस्ताव का प्रावधान केवल लोकसभा में है. राज्यसभा में ऐसा कोई संवैधानिक या प्रक्रियागत अधिकार नहीं है. नियम 267 सिर्फ उसी दिन की सूचीबद्ध कार्यवाही के लिए लागू होता है.
सभापति ने कहा कि नियम 267 का इस्तेमाल केवल उसी मामले में हो सकता है, जो उस दिन की List of Business में पहले से शामिल हो. उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी असूचीबद्ध विषय पर नियम 267 लागू करने की मांग अवैध मानी जाएगी. नोटिस में किस नियम को निलंबित करना है, उसका उल्लेख और एक सही प्रारूप वाला प्रस्ताव शामिल करना अनिवार्य है.
2000 में कड़े हुए नियम, समिति में थे कई दिग्गज
सभापति ने बताया कि वर्ष 2000 में नियम 267 में संशोधन किया गया था. उस समय उपराष्ट्रपति कृष्णकांत की अध्यक्षता वाली नियम समिति में डॉ. मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी, अरुण शौरी, एम. वेंकैया नायडू और फली एस. नारिमन जैसे वरिष्ठ सदस्य शामिल थे. समिति ने पाया था कि नियम 267 का उपयोग सूचीबद्ध न होने वाले मुद्दों को उठाने के लिए किया जा रहा है, जिसके बाद इसे केवल सूचीबद्ध कार्य तक सीमित कर दिया गया.
चार दशक में सिर्फ तीन बार, 2000 के बाद एक भी नहीं
सभापति के अनुसार 1988 से 2000 के बीच नियम 267 के तहत सिर्फ तीन बार चर्चा हुई, और उनमें से भी केवल दो बार नियम का सही तरीके से उपयोग हुआ.
2000 के संशोधन के बाद एक भी चर्चा नियम 267 के तहत नहीं हुई है. हालांकि आठ अवसरों पर सर्वसम्मति से चर्चा कराई गई। उन्होंने कहा, “लगभग चार दशक में यह प्रावधान बेहद दुर्लभ परिस्थितियों में ही इस्तेमाल हुआ है.”
वैध नोटिस के लिए 5 शर्तें तय
सभापति ने कहा कि आगे से केवल वही नोटिस मान्य होंगे जो यह बताए कि कौन-सा नियम निलंबित करना है. उसी दिन की सूचीबद्ध कार्यवाही से संबंधित हों. आधार स्पष्ट रूप से दर्ज हो, जहां पहले से निलंबन का प्रावधान हो, वहाँ 267 का इस्तेमाल न किया जाए, प्रस्ताव उचित प्रारूप में लिखा हो.
उन्होंने कहा कि केवल शर्तें पूरी करने और सभापति की पूर्व सहमति मिलने पर ही नोटिस पर विचार होगा.
जनमहत्वपूर्ण मुद्दे उठाने के अन्य विकल्प मौजूद
सभापति ने अंत में कहा कि अत्यावश्यक जनहित के विषय उठाने के लिए सदस्यों के पास कई संसदीय विकल्प उपलब्ध हैं और नियम 267 को इसका एकमात्र माध्यम नहीं माना जाना चाहिए.
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