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सोनभद्र हत्याकांड: दादी इंदिरा के नक्शेकदम पर प्रियंका गांधी, 'बेलछी नरसंहार' की घटना से हो रही है तुलना

कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा सोनभद्र जाने पर अड़ी हुई हैं. लोगों सोनभद्र की घटना के बाद बिहार के बेलछी गांव में साल 1977 में हुए नरसंहार कांड याद आ रही है, जब इंदिरा गांधी भी इसी तरह पीड़ितों से मिलने की जिद्द पर अड़ गईं थी. आइए जानते हैं क्या हुआ था 'बेलछी नरसंहार' में..

नई दिल्ली: सोनभद्र की बर्बर घटना के बारे में जिसने भी सुना है वह दंग है. 10 लोगों को क्रूरता की सारी हदें पार कर के मौत के घाट उतार दिया गया. इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश समेत देश की सियासत में भूचाल आ गया है. प्रियंका गांधी लगातार धरने पर बैठी हैं और पीड़ित परिवारों से मिलने की मांग कर रही हैं. उन्हें हिरासत में ले लिया गया है लेकिन वह अपने फैसले पर अडिग हैं.

सोनभद्र की इस घटना को लेकर प्रियंका गांधी जिस तरह राज्य सरकार और उसके कानून व्यवस्था पर लगातार सवाल उठाने के लिए सड़क पर उतर गईं हैं. जिस तरह से वह पीड़ित परिवार से मिलने के जिद्द पर लगातार अड़ी हैं उसे देखते हुए लोग इस घटना की तुलना साल 1977 में हुए बेलछी गांव के नरसंहार की घटना से कर रहे हैं. कहते हैं कि अपातकाल के बाद जनता का विश्वास खो चुकी इंदिरा गांधी जब 1977 का चुनाव हारी तो उसके बाद बेलछी की घटना से ही उनका राजनीतिक पुनरुत्थान हुआ.

सोनभद्र हत्याकांड: दादी इंदिरा के नक्शेकदम पर प्रियंका गांधी, 'बेलछी नरसंहार' की घटना से हो रही है तुलना

ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर बेलछी गांव का नरसंहार क्या था और सोनभद्र के वक्त इसकी याद क्यों आ रही है ?

क्या था बेलछी गांव नरसंहार कांड

बेलछी नरसंहार, बिहार का पहला जातीय नरसंहार था. ये घटना 27 मई 1977 को हुई थी. बेलछी में 11 दलितों की हत्या की गयी थी. बिहार के हरनौत विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली बेलछी गांव सोनभद्र की तरह ही एक दर्नाक घटना की गवाह बनी थी. दरअसल बंदूको और अन्य घातक हथियारों से लैस कुर्मियों के बड़े गुट ने गरीबों के घर पर हमला कर दिया. 11 दलित खेत मजदूरों को घर से बाहर खींच कर लाया गया. उन्हें घसीटकर एक बड़े से बंजर मैदान में ले जाया गया और वहां बांध दिया गया. उन 11 लोगों के आस-पास लकड़ियों और घास-फूस का ढेर लगाया गया और फिर उसमें आग लगा दी गई. वह सभी लोग जिंदा जला दिए गए.

बेलछी नरसंहार का मुख्य अभियुक्त महावीर महतो गांव के सार्वजनिक संपत्ति-जमीनों, तलाबो पर कब्जा कर लिया था. वह अक्सर अपनी ताकत का फायदा उठाकर गांव के अन्य जातियों को परेशान करता था. उन्हीं दिनों दुसाध जाति का एक कृषक मजदूर सिंघवा अपने ससुराल बेलछी आया और वहां महावीर महतो के अन्याय को देखा. उसने विरोध किया और इसके खिलाफ गांववालों को संगठित किया. महावीर माहतो को लगा कि वह अकेला सिंधवी का सामना नहीं कर सकता है तो उसने निर्दलीय विधायक इन्द्रदेव चौधरी से मदद मांगी. इंद्रदेव की जीत में कुर्मी जाति के वोट का बड़ा हाथ था. फिर सिंधवी और अन्य लोगों को सबक सिखाने के लिए कुर्मी जाति का एक बड़ा गुट इकट्टा हुआ और बेलछी नरसंहार को अंजाम दिया.

इंदिरा गांधी का राजनीतिक पुनरुत्थान

इंदिरा गांधी को जब इस घटना की जानकारी मिली तो उन्हें अंधेरे में एक किरण सी दिखायी पड़ी. 1977 में वह चुनाव हार चुकी थीं और अब सन्यास के बारे में सोच रहीं थी. यह वह वक्त था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोराजी देसाई की सदारत में जनता पार्टी की सरकार बने कुछ ही समय बीता था कि यह जघन्य कत्लेआम हुआ.

जनता की नब्ज पकड़ने में माहिर इंदिरा गांधी ने मौके की नजाकत को समझा और दिल्ली से हवाई जहाज के जरिए सीधे पटना पहुंची. फिर वहां से कार के जरिए बिहार शरीफ पहुंच गईं और फिर बेलछी जाने की तैयारी हुई. स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो ने सोनिया गांधी की जीवनी लिखी है जिसका नाम है - द रेड साड़ी है. इस किताब में इंदिरा गांधी के बेलछी जाने के बारे में भी जिक्र है.

किताब में लिखा कि इंदिरा कहती हैं, '' उस वक्त बहुत तेज बारिश हो रही थी. पटना से बेलछी जाने के जाने के रास्ते पर कई जगह पानी भर गया था. कीचड़ की वजह से चलना मुश्किल था. सभी लोगों ने कहा कि अब ट्रैक्टर से ही आगे जाना संभव है. मैं अन्य सहयोगियों के साथ ट्रैक्टर पर चढ़ी. ट्रैक्टर कुछ दूर ही चल पाया था कि चक्का कीचड़ में फंस गया. मौसम और रास्ते की हालत देख कर साथ चल रहे सहयोगियों ने कहा कि अब लौट जाना चाहिए. बेलछी जाने का कार्यक्रम स्थगित कर देना चाहिए. लेकिन मेरे सिर पर धुन सवार थी कि किसी भी तरह बेलछी पहुंचना है. पीड़ित दलित परिवार से हर हाल में मिलना है.''

किताब में आगे लिखा है, ''मैंने कहा, जो लौटना चाहते हैं वे लौट जाएं, मैं तो बेलछी जाऊंगी ही. मैं जानती थी कि कोई नहीं लौटेगा. कीचड़- पानी के बीच हम आगे बढ़ते रहे. आगे जाने पर एक नदी आ गयी. नदी पार करने का कोई उपाय नहीं था. शाम हो चली थी. गांव वालों से नदी पार करने के बारे में पूछा. तब उन्होंने बताया कि यहां के मंदिर में एक हाथी है. लेकिन हाथी पर बैठने का हौदा नहीं है. मैंने कहा, चलेगा. हाथी का नाम मोती था. उस पर कंबल और चादर बिछा कर बैठने की जगह बनायी गयी. सबसे आगे महावत बैठा. उसके बाद मैं बैठी, फिर मेरे पीछे प्रतिभा पाटिल बैंठी. प्रतिभा काफी डरी हुईं थीं. वे कांप रहीं थीं और मेरी साड़ी का पल्लू कस कर पकड़े हुए थीं. जब हाथी नदी के बीच पहुंचा तो पानी उसके पेट तक पहुंच गया. अंधेरा घिर आया था. बिजली कड़क रही थी. ये सब देख कर थोड़ी घबराहट हुई लेकिन फिर मैं बेलछी के पीड़ित परिवारों के बारे में सोचने लगी. जब बेलछी पहुंची तो रात हो चुकी थी. पीड़ित परिवरों से मिली. मेरे कपड़े भींग चुके थे. मेरे पहुंचने पर गांव के लोगों को लगा जैसे कोई देवदूत आ गया है. उन्होंने मुझे पहनने के लिए सूखी साड़ी दी. खाने के लिए मिठाइयां दीं. फिर कहने लगे आपके खिलाफ वोट किया, इसके लिए क्षमा कर दीजिए.''

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इंदिरा गांधी से बेलछी में पांच दिन बाद वापस दिल्ली लौंटी, तब तक यह घटना अंतरराष्ट्रीय अखबार में सुर्खी बन गई थी. लोग इंदिरा की तारीफ कर रहे थे. आज एक बार फिर सोनभद्र की घटना से प्रियंका की वही तस्वीर सामने आ रही है जो उस वक्त इंदिरा की थी. देश-विदेश में इंदिरा की हाथी पर बैठे हुए लोगों तक पहुंच गई थी. इसके बाद ढाई साल के भीतर जनता पार्टी की सरकार गिर गई और 1980 के मध्यावधि चुनाव में इंदिरा गांधी सत्ता में वापिस आ गईं.

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