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महाराष्ट्र में राज्यपाल और सरकार के खिलाफ फिर से नामित विधायक से संघर्ष का एक नया मुद्दा बन रहा है, जानिए माजरा

महाराष्ट्र में राज्यपाल भगतसिंह कोशयारी और ठाकरे सरकार के बीच संघर्ष देखने को मिल रहा है. राज्यपाल का मत है कि कोरोना के संकट काल में विधायकों के नियुक्ति प्रक्रिया करना उचित नहीं होगा. ऐसे में राज्यपाल सितंबर 12 विधान परिषद के सदस्यों का नियुक्ति टालने का मन बना चुके हैं.

मुंबईः राज्यपाल द्वारा नामित विधायकों की प्रक्रिया को लेकर राज्यपाल भगतसिंह कोशयारी और ठाकरे सरकार के बीच संघर्ष का नया अध्याय शुरु होने जा रहा है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़ राज्यपाल सरकार की सिफारिशों को तत्काल मंजूरी देने के पक्ष में नहीं है. राज्यपाल ने अप्रत्यक्ष रूप से सरकार को अगले दो महीनों के लिए सिफारिश नहीं भेजने के संकेत दिया है.

राज्यपाल का मत है कि कोरोना के संकट काल में विधायकों के नियुक्ति प्रक्रिया करना उचित नहीं होगा. ऐसे में राज्यपाल सितंबर 12 विधान परिषद के सदस्यों का नियुक्ति टालने का मन बना चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक, राज्यपाल पिछले तीन दिनों से अप्रत्यक्ष रूप से सरकार को ये संकेत दे रहे हैं. गवर्नर का विचार है कि कोरोना के कारण वर्तमान स्थिति राज्यपाल नामित विधायकों की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए अनुकूल नहीं है. इसलिए यह स्पष्ट है कि गवर्नर अगले दो महीने, यानी सितंबर तक सरकार की सिफारिशों को स्वीकार नहीं करेंगे.

महाविकास गठबंधन के सीट-बंटवारे के फार्मूले को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. शिवसेना और कांग्रेस 5 सीटों की मांग कर रहे हैं। क्योंकि शिवसेना ने राज्यसभा चुनाव में एनसीपी को अपना वोट दिया था, इसलिए शिवसेना 5 सीटों के लिए जोर दे रही है. जबकि हालिया विधान परिषद सीटों के लिए, कांग्रेस को एक सीट से संतोष करना पड़ा है. और अब कांग्रेस ने राज्यपाल नियुक्त सदस्यों के लिए पांच सीटों पर जोर दिया है.

एनसीपी ने एक स्टैंड लिया है कि तीनों दलों को समान वितरण दिया जाना चाहिए. गवर्नर-नियुक्त सदस्यों का कार्यकाल जून के पहले सप्ताह में समाप्त हो गया है. लेकिन अबतक ठाकरे सरकार की तीनों पक्षों 12 सीटों में से किस पार्टी को कितनी सीट देनी है यही तय नहीं हो पा रहा. ऐसे में राज्यपाल ने पहला दांव खेल लिया है जिससे इस विषय में ठाकरे सरकार की मुश्किल निश्चित रुप से बढ़ी है.

वहीं यह नया संघर्ष जल्द समाप्त होता नहीं दिख रहा है क्योंकि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने पिछली बार ही सरकार को स्पष्ट संकेत दिए थे कि हम जिन सदस्यों की नियुक्ति करने जा रहे हैं, उनके मापदंडों का सख्ती से पालन करेंगे. आपकों याद होगा जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तभी बीजेपी के वरिष्ठ नेता राम नाइक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे. राम नाइक ने अखिलेश सरकार द्वारा नमित किए गए 5 सदस्यों को सदस्य बनाने से इंकार किया था क्योंकि पांचों सदस्य भारतीय घटना द्वारा बनाए गए मापदंडों को पुरा नहीं करते थे.

चार महिने तक राज्यपाल और अखिलेश सरकार के बीच संघर्ष हुआ और आख़िरकार अखिलेश सरकार के चार नए सदस्यों के नाम राज्यपाल को देने पड़े थे. कुछ ऐसे ही स्थिती महाराष्ट्र में भी बनने के आसार हैं जब ठाकरे सरकार 12 सदस्यों के नाम राज्यपाल को सौंपेगी.

विज्ञान, कला, साहित्य, सहकारी आंदोलन या सामाजिक कार्यों के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के अनुभव से सदन को लाभ होना चाहिए. इसलिए, राज्य सरकार ऐसे विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों की खोज करके राज्यपाल को सिफारिशें देती है. राज्यपाल उसपर निर्णय लेते है और सदस्यों की नियुक्ति करते हैं. इन मापदंडों को अक्सर राजनीतिक सुविधा के लिए नज़रअंदाज़ किया जाता है. हालांकि, कभी-कभी राज्यपाल इन मापदंडों को पूरा करने पर जोर देते हैं. ऐसे स्थिती में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव हो सकता है.

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