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कुतुब मीनार में मंदिर विवादः कंट्रोवर्सी के बीच जानें क्या है इस ऐतिहासिक इमारत का इतिहास, लें पूरी जानकारी

आज का महरौली कभी मिहिरावली हुआ करता था. इसे चौथी सदी के महान शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बसाया था. इतिहास के मशहूर गणितज्ञ और खगोलविद वराहमिहिर ने ग्रहों की गति के अध्ययन के लिए विशाल स्तंभ का निर्माण करवाया. इसे ध्रुव स्तंभ या मेरु स्तंभ कहा जाता था.

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. जिसके बाद अब मथुरा में कृष्ण जन्मभूमिम परिसर में मौजूद मस्जिद को हटाने के लिए अदालत में लड़ाई लड़ी जा रही है. वहीं अब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थित ऐतिहासिक धरोहर कुतुब मीनार को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है. दरअसल दिल्ली के साकेट कोर्ट में भगवान विष्णु और जैन तीर्थकर भगवान ऋषभदेव के नाम से कुतुब मीनार के अंदर पूजा-पाठ करने की इजाजत की मांग को लेकर एक याचिका दाखिल की गई है. मंगलवार को सिविल जज नेहा शर्मा के सामने वकील हरिशंकर जैन की तरफ से दाखिल याचिका पर वीडियो कॉंफ्रेंसिग के जरिए शुरुआती बहस भी हुई जिसके बाद अगली सुनवाई के लिए 24 दिसंबर की तारीख मुकर्रर कर दी गई.

याचिका में किया गया यह दावा

यहां आपको बता दें कि कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में दावा किया गया है कि दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 1192 में बनवाई गई कुतुब परिसर में स्थित कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद में कभी भी मुसलमानों ने नमाज नहीं पढ़ी और इसकी वजह यह है कि इस मस्जिद को हिंदू और जैनों के 27 मंदिरों को ध्वस्त कर उनके मलबे से बनाया गया है. यहां खंभों, मेहराबों, दीवार और छत पर जगह-जगह हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई थीं. हिंदूओं के इन धार्मिक प्रतिकों को आज भी देखा जा सकता है.

कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया मस्जिद का निर्माण आज का महरौली कभी मिहिरावली हुआ करता था. इसे चौथी सदी के महान शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बसाया था. इतिहास के मशहूर गणितज्ञ और खगोलविद वराहमिहिर ने ग्रहों की गति के अध्ययन के लिए विशाल स्तंभ का निर्माण करवाया. इसे ध्रुव स्तंभ या मेरु स्तंभ कहा जाता था. मुस्लिम शासकों के दौर में इसे कुतुब मीनार कहा जाने लगा. इसी परीसर में कभी 27 नक्षत्रों के प्रतीक के तौर पर 27 मंदिर भी हुआ करते थे. ये मंदिर जैन तीर्थकरों के साथ ही भगवान विष्णु व शिव और गणेश जी के मंदिर थे. इतिहास में भी ये सारी जानकारी उपलब्ध है. बताया जाता है कि मोहम्मद गौरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ने दिल्ली में कदम रखने के साथ ही सबसे पहले इन मंदिरों को नेस्तनाबूत करने का आदेश दिया था और इनके स्थान पर जल्दबाजी में उसी मलबे से मस्जिद का निर्माण कर दिया गया था जिसे कुव्वत-उल-इस्लाम नाम दिया गया.

कुतुब मीनार है वैश्विक धरोहर

गौरतलब है कि महरौली स्थित कुतुब मीनार को वैश्विक ऐतिहासिक धरोहर का दर्जा दिया गया है. कुतुब मीनार की ऊंचाई 72.5 मीटर है और इसका व्यास 14.32 मीटर है जो शिखर तक पहुंचने पर 2.5 मीटर रह जाता है. यह दुनिया की सबसे ऊंची मीनार है. इसमे कुल 379 सीढ़ियों का निर्माण कराया गया है. साल 1199 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही इस ऐताहासिक धरोहर का निर्माण शुरू करवाया था. जिसे बाद में इल्तुतमिश ने पूरा कराया था. 1220 में इस मीनार का काम पूरा हुआ था. इसे प्राचीन भारत की वास्तुकला का नगीना कहा जाता है. बता दें कि कुतुब मीनार का ऊपरी हिस्सा बिजली गिरने की वजह से नष्ट हो गया था जिसे फिरोजशाह तुगलक ने दोबारा बनवाया.

कुतुब मीनार यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स मे है शामिल

कुतुब मीनार को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में भी शामिल किया गया है और इसके आस-पास भी कई ऐतिहासिक और भव्य इमारतें हैं. जैसे कि दिल्ली का लौह स्तंभ , कुव्वत-उल इस्लाम मस्जिद, अलाई दरवाजा, इल्तुमिश की कब्र, अलाई मीनार, अलाउद्दीन का मदरसा और कब्र, इमाम जमीन की कब्र और सेंडरसन का सन डायल

इमारत के भीतर प्रवेश है पूरी तरह व्रजित

ये भी बता दें कि 1974 से पहले कुतुब मीनार आम लोगों के लिए खुला हुआ था लेकिन 4 दिसंबर 1981 को यहां आए लोगों के साथ एक भयानक हादसा हुआ था इस दौरान मची भगदड़ में 45 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी. इसके बाद इस इमारत के भीतरी हिस्से में प्रवेश करने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया.

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