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‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ को याचिकाओं में सिर्फ अपना नाम भर नहीं देना चाहिए, बोला सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले से जुड़े कागजातों के अध्ययन के बाद अगर कोई संदेह उत्पन्न होता है, तो एओआर अपने मुवक्किल और स्थानीय अधिवक्ता से संपर्क कर उसे दूर कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (20 फरवरी, 2025) को कहा कि याचिकाएं दायर करते समय सतर्क और सावधान रहना ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ (AOR) का कर्तव्य है और अगर वे याचिकाओं में केवल अपना नाम भर देंगे, तो इससे किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी.

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि ऐसे अधिवक्ताओं के लिए उच्च स्तर का पेशेवर आचरण बनाए रखना अनिवार्य है और अगर वे केवल किसी अन्य अधिवक्ता की ओर से तैयार याचिकाओं, अपीलों या जवाबी हलफनामों में अपना नाम ही देंगे, तो ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ संस्था की स्थापना का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा.

पीठ की यह टिप्पणी एओआर के लिए आचार संहिता और इस वरिष्ठ अधिवक्ता पद के कर्तव्यों से जुड़े मामले में आई. मामले में कोर्ट ने पाया कि एक सीनियर एडवोकेट और एओआर ने कई क्षमा याचिकाओं में विभिन्न महत्वपूर्ण तथ्यों को दबाया.

बेंच ने कहा कि एओआर की भूमिका बेहद अहम है, क्योंकि अगर कोई वादी व्यक्तिगत रूप से पेश न होना चाहे, तो वह एओआर के माध्यम से ही इस अदालत से न्याय की गुहार लगा सकता है.

कोर्ट ने कहा, 'जब कोई एओआर किसी अन्य अधिवक्ता से याचिका/अपील/जवाबी हलफनामे का मसौदा प्राप्त करता है, तो यह उसका कर्तव्य है कि वह मामले के कागजातों का अध्ययन करे और उसके बाद याचिका/अपील/जवाबी हलफनामे पर सावधानीपूर्वक नजर दौड़ाए, ताकि यह पता लगाया जा सके कि मसौदे में सही तथ्य बताए गए हैं या नहीं और याचिका/अपील/जवाबी हलफनामे के साथ सभी प्रासंगिक दस्तावेज संलग्न किए गए हैं या नहीं.'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले से जुड़े कागजातों के अध्ययन के बाद अगर कोई संदेह उत्पन्न होता है, तो एओआर अपने मुवक्किल और स्थानीय अधिवक्ता से संपर्क कर उसे दूर कर सकता है.

उसने कहा, 'एओआर यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि उसे सही तथ्यात्मक निर्देश मिलें, ताकि याचिका/अपील/जवाबी हलफनामा दाखिल करते समय तथ्यों को न छिपाया जाए. एक ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ इस अदालत के प्रति जवाबदेह है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय नियम, 2013 के तहत उसे एक विशिष्ट दर्जा हासिल है.'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी याचिका में गलत तथ्य पेश किए जाने या महत्वपूर्ण तथ्यों या दस्तावेजों को छिपाए जाने की सूरत में एओआर वादी या उसके वकीलों पर दोष नहीं मढ़ सकता.

पीठ ने कहा, 'न्याय प्रदान करने में न्यायालय की मदद करने के लिए उसके समक्ष उचित याचिका/अपील और हलफनामे दाखिल करना एओआर का कर्तव्य है. एओआर को न्यायालय के प्रति हमेशा ईमानदार रहना चाहिए और मामलों में निर्णय लेने में न्यायालय की प्रभावी मदद करनी चाहिए.'

सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया कि मामला या जवाबी हलफनामा दाखिल करने के बाद एओआर का कर्तव्य समाप्त नहीं हो जाता.

उसने कहा, 'एओआर द्वारा नियुक्त वकील उपस्थित न हो, तो भी उसे कानून और तथ्यों के आधार पर मामले की पैरवी के लिए तैयार रहना चाहिए और प्रभावी ढंग से अदालत की सहायता करनी चाहिए.'

पीठ ने कहा, 'यहां हम यह स्पष्ट करना चाहेंगे कि अगर ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार करने लगें और याचिका/अपील/जवाबी हलफनामे को महज अपना नाम देना शुरू कर दें, तो इसका इस न्यायालय द्वारा प्रदान किए जाने वाले न्याय की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है. लिहाजा, अगर कोई ‘एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड’ कदाचार करता है या अनुचित आचरण का दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ आदेश चार के नियम 10 के अनुसार कड़ी कार्रवाई की जाएगी.'

 

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