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वो फैक्टर, जो 4 बार के सीएम रहे शिवराज सिंह चौहान की मामा वाली छवि पर पड़े भारी

मध्य प्रदेश में बीजेपी के विधायक दल के नेता के रूप में मोहन यादव को चुने जाने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. सीएम के रूप में उनका कार्यकाल राज्य में सबसे ज्यादा है.

Shivraj Singh Chouhan Profile: मध्य प्रदेश में उज्जैन दक्षिण विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से तीसरी बार विधायक के रूप में चुने गए बीजेपी नेता मोहन यादव को बीजेपी के विधायक दल का नेता चुना गया है. वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे इसके अलावा राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा बनेंगे मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बनेंगे.

इसी के साथ 3 दिसंबर से विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से चला आ रहा सस्पेंस खत्म हो गया लेकिन मामा के रूप में पुकारे जाने वाले शिवराज सिंह चौहान को लेकर पांचवीं बार इस पद के लिए मौका न मिलना भी सबको हैरान कर रहा है. क्या आलाकमान की ओर से केंद्र में कोई बड़ी जिम्मेदारी शिवराज का इंतजार कर रही है या कुछ और वजहें हैं, जिनकी वजह से उन्हें सीएम नहीं बनाया गया. शिवराज के नाम मुख्यमंत्री के तौर पर कई उपलब्धियां हैं तो विरोधियों की ओर से कई विवादों में उनका नाम खींचा गया. आइये जानते हैं.

सीएम पद खोने से पहले बोला था सभी को राम राम

मध्य प्रदेश में कोई नया चेहरा सीएम के तौर पर सामने आएगा, इसकी अटकलें तो पहले से ही लगाई जा रही थी. हाल में (9 दिसंबर) ऑफिस ऑफ शिवराज X हैडल से सीएम शिवराज की हाथ जोड़े हुए एक तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा गया- सभी को राम-राम... तो अटकलों को और जोर मिला. 

4 बार के सीएम, 17 साल का कार्यकाल

सीएम शिवराज ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत छात्र जीवन से की थी. जब 1975 में उन्हें मॉडल स्कूल छात्र संघ का अध्यक्ष चुना गया. उन्होंने पहला विधानसभा चुनाव 1990 में बुधनी सीट से जीता था. इसके बाद 1991 में वह विदिशा से लोकसभा के लिए सांसद चुने गए थे. 2006 में उन्होंने बुधनी विधानसभा सीट से उपचुनाव जीता था. तब से यह सीट शिवराज का गढ़ रही है. 2006 के बाद उन्होंने 2008, 2013, 2018 और 2023 में बुधनी से विधानसभा चुनाव जीता है. 

शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने वाले नेता है. वह पहली बार 30 नवंबर, 2005 को मध्य प्रदेश के सीएम बने थे. 12 दिसंबर 2008 को उन्होंने सीएम के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली थी.

दिसंबर 2013 में वह तीसरी बार सीएम बने थे. 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में किसी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. कांग्रेस ने सपा, बसपा और निर्दलीयों के सहयोग से सरकार बनाई जो ज्योतिरादित्य सिंधिया और कुछ विधायकों के बगावत करने से 15 महीने में गिर गई थी. इसके बाद 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी.

व्यापमं बन गया था सीएम की गले की फांस

2013 में मध्य प्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाला सामने आया. यह परीक्षाओ में अभ्यर्थी की जगह पैसे देकर किसी दूसरे को बैठाकर नकल कराने से संबंधित घोटाला था. दरअसल, 2009-10 में  व्यापमं की मेडिकल परीक्षा में नकल कराने के संबंध में एमपी नगर और कोहेफिजा थाने में रिपोर्ट की गई थी, लेकिन तब मामले की जांच ठंडे बस्ते में रही.

2013 में होने वाली परीक्षा से पहले इंदौर में पुलिस ने होटलों में छापा मारा तो कुछ संदिग्ध पकड़े गए. संदिग्धों ने पूछताछ में नकल को लेकर की जा रही धांधली का खुलासा किया. इसके बाद इंदौर के राजेंद्र नगर थाने में मामला दर्ज किया गया और फिर परतें खुलती गईं.

मामले में हजारों लोगों की गिरफ्तारियां हुई. 2015 तक मामले से जुड़े 32 लोगों की मौत हुई. कई लोगों की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई. एसटीएफ और सीबीआई ने भी इस मामले की जांच की. कांग्रेस ने शिवराज सिंह चौहान पर भी घोटाले में शामिल होने के आरोप लगाए थे लेकिन जांच में उन्हें लेकर कुछ साबित नहीं हुआ.

हालांकि, एक बार विधानसभा नें शिवराज ने स्वीकार किया था कि करीब एक हजार फर्जी भर्तियां हुईं. 2018 में जब मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार नहीं बनी तो इसके पीछे व्यापमं को भी एक कारण माना गया था कि उसके कारण शिवराज और बीजेपी की छवि पर असर पड़ा है.

घोटाले के कारण बदनामी झेल रहे मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल का नाम दो बार बदला गया. पहले इसका नाम बदलकर प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (पीईबी) रखा गया लेकिन फिर मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल कर दिया गया.

मंदसौर गोलीकांड को लेकर घिरे

मंदसौर गोलीकांड के कारण शिवराज सिंह चौहान की सरकार को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था. दरअसल, मंदसौर में 6 जून 2017 को फसल के सही मूल्य की मांग करते हुए आंदोलन कर रहे किसानों पर पुलिस ने कार्रवाई की थी. गोली लगने से छह किसानों की मौत हो गई थी. 

कांग्रेस ने इस घटना पर शिवराज सरकार को खूब घेरा. राज्य सरकार ने पीड़ितों के परिवारों को 1 करोड़ रुपये का मुआवजा और एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था.

घटना में जान गंवाने वालों में 17 वर्षीय अभिषेक पाटीदार भी शामिल थे. अभिषेक की मौत के बाद से मंदसौर में राजमार्ग के किनारे स्थित गांव बरखेड़ा पंत में उनके घर में कई नेताओं ने जाकर हाल लिया लेकिन घटना के करीब सालभर बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनके घरे पहुंचे थे.

शिवराज सरकार से नाराज परिवार ने बाद में कांग्रेस का समर्थन करने की बात कही थी. अभिषेक के माता-पिता ने फैसला किया था कि वे मंदसौर होने वाली कांग्रेस नेता राहुल गांधी की रैली में शामिल होंगे.

यह भी पढ़ें- Mohan Yadav Biography: कौन हैं मोहन यादव? जो होंगे मध्य प्रदेश के नए सीएम, BJP ने अपने फैसले से चौंकाया

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