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Election Symbol: शिंदे बनाम उद्धव की लड़ाई से समझिए आखिर कैसे राजनीतिक पार्टियों को चुनाव चिह्न आवंटित करता है ECI? क्या हैं नियम और पेंच

Election Symbol Rules: एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और पार्टी सिंबल धनुष बाण मिलने के बाद चुनाव चिह्न की लड़ाई तो थम गई है, लेकिन इससे राज्य में एक बड़ा राजनीति विवाद खड़ा हो गया है.

Allotment Of Election Symbol: भारतीय चुनाव आयोग के एक महत्वपूर्ण फैसले ने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा दी है. यह तय हो चुका है कि शिंदे गुट के पास आधिकारिक नाम शिवसेना और पार्टी का चुनाव चिह्न ‘धनुष और तीर’ बरकरार रहेगा. जबकि उद्धव ठाकरे गुट के पास अंतरिम नाम शिवसेना यूबीटी और चुनाव चिन्ह जलता हुआ मशाल रहेगा. चलिए सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि आखिर कैसे राजनीतिक पार्टियों को चुनाव चिह्न आवंटित किया जाता है और इसके नियम क्या हैं. 

किसी भी पार्टी को चुनाव चिह्न (Election Symbol) का आवंटन चुनाव आयोग की तरफ से ही किया जाता है. द इलेक्शन सिंबल ऑर्डर, 1968 (The Election Symbols (Reservation and Allotment) Order, 1968) चुनाव आयोग को क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को चुनाव चिह्न आवंटित करने का अधिकार देता है. चुनाव आयोग के पास इस ऑर्डर के तहत सौ से ज्यादा फ्री सिंबल रहते हैं. ये किसी भी पार्टी को अलॉट नहीं किए गए होते. जब किसी पार्टी के पास कोई सुझाव नहीं होता है तब यह चुनाव चिह्न दिए जाते हैं. 

दूसरे राज्य में दिया जा सकता है रीजनल पार्टी सिंबल 

वहीं, अगर पार्टी अपने चुनाव चिह्न के लिए खुद आयोग को सुझाव देती है तो वह सिंबल उसे दिया जाता है. बशर्ते वो पहले किसी भी पार्टी को आवंटित न किया गया हो. किसी एक राज्य की रीजनल पार्टी का सिंबल दूसरे राज्य में किसी दूसरी पार्टी को आवंटित किया जा सकता है. वैसे ही, जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना और झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा को एक ही चुनाव चिह्न तीर-धनुष आवंटित थे.

ईसीआई कैसे तय करता है कि चुनाव चिह्न किसे मिलेगा?

प्रतीक चिन्ह आदेश, 1968 (Symbols Order, 1968) में कहा गया है कि जब आयोग संतुष्ट हो जाता है कि एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह हैं. इसके बाद आयोग मामले के सभी उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रतिनिधियों को सुनता है. इसके बाद इस​ निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि ऐसा एक प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह  मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल नहीं है और आयोग का निर्णय ऐसे सभी प्रतिद्वंद्वी वर्गों या समूहों पर बाध्यकारी होगा.’ वहीं, रजिस्टर्ड लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों में विभाजन के लिए ईसीआई आमतौर पर प्रतिद्वंद्वी गुटों को अपने मतभेदों को आंतरिक रूप से हल करने या कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की सलाह देता है. 

बहुमत परीक्षण के अलावा और कैसे हल हो सकते हैं सिंबल विवाद?

अब तक ऐसे लगभग सभी विवादों में पार्टी के प्रतिनिधियों/पदाधिकारियों, सांसदों और विधायकों के स्पष्ट बहुमत ने एक गुट का समर्थन किया है. शिवसेना के मामले में पार्टी के अधिकांश निर्वाचित प्रतिनिधि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट के पाले में चले गए. जब भी ईसीआई पार्टी संगठन के अंदर समर्थन के आधार पर प्रतिद्वंद्वी समूहों की ताकत का परीक्षण नहीं कर सका तो उसने केवल निर्वाचित सांसदों और विधायकों के बीच बहुमत का परीक्षण करने पर विचार किया. 

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