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Shaheed Rajguru Birth Anniversary: भगत सिंह से किस बात पर हमेशा बहस करते थे राजगुरु?

Shaheed Rajguru: युवा और जोशीले राजगुरु से मिलने के बाद चंद्रशेखर आजाद बहुत प्रभावित हुए. आजाद ने उन्हें बड़ी ही तल्लीनता से निशानेबाजी के गुर लगे.

Shaheed Rajguru 114 Birth Anniversary: आपने अक्सर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर फिल्माया देशभक्ति गीत, आजादी को चली बदाने दिवानों की टोलियां, खून से अपने लिख देंगे हम 'इंकलाब' की बोलियां हम वापस लौटेंगे लेकर आजादी का टोला... सुना होगा. आज उन्हीं तीनों महान क्रांतिकारियों में से एक राजगुरु की जयंती है. 

भारत की आजादी में हजारों ऐसे क्रांतिकारी हैं जिन्होंने अपना जीवन देकर देश को आजाद करवाया, लेकिन शिवराम हरि 'राजगुरु' उन क्रांतिकारियों में प्रमुख रूप से शामिल हैं, जिनका बलिदान देश को आजाद करवाने में अमर है. आज 24 अगस्त की तारीख है. 114 साल पहले आज ही के दिन शहीद राजगुरु का जन्म 1908 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के खेड़ा गांव में हुआ था. राजगुरु की मां (पार्वती) शिव भक्त थीं इसलिए बड़े प्यार से बेटे का नाम शिवराम रखा. उनके पिता का नाम हरि नारायण था. राजगुरु के नाम के बीच में 'हरि' उनके पिता का ही नाम है. 

Shaheed Rajguru Birth Anniversary: भगत सिंह से किस बात पर हमेशा बहस करते थे राजगुरु?

शिवराम कैसे बने राजगुरु 
शिवराम हरि 'राजगुरु' के नाम में भले ही मां की पसंद से शिवराम और पिता के 'हरि' का नाम जरूर जोड़ा गया, लेकिन इस बच्चे ने बड़े होकर राजगुरु के नाम से देश में प्रसिद्धी पाई और अमर शहीद हो गया. राजगुरु आखिर राजगुरु कैसे बने? यह नाम उन्होंने खुद कमाया है. राजगुरु बचपन से ही महान योद्धा शिवाजी और बाल गंगाघर तिलक से प्रभावित थे. वह छोटी उम्र में ही वाराणसी में संस्कृत पढ़ने के लिए चले गए, जहां उन्होंने हिन्दू धर्म ग्रंथों और वेदों का अध्ययन किया. साथ ही उच्च शिक्षा लेने के लिए वह पुणे के न्यू इंग्लिश हाई स्कूल में दाखिल हुए.

भगत सिंह-राजगुरु के संबंध
इसके साथ ही राजगुरु ने वाराणसी में हिन्दू धर्म ग्रंथों और वेदों को पढ़ा था, इसलिए उनका अपने साथी शहीद शहीद-ए-आज़म भगत सिंह से अक्सर स्वस्थ बहस हुआ करती थी. दरअसल, भगत सिंह मार्कसवादी थे और वो महान दार्शनिक कार्ल मार्क्स और उनक विचारों को मानते थे, इसके साथ ही वो समाजवाद के भी पक्षघर थे. लेकिन भगत सिंह रक्तपात के पक्षधर नहीं थे. यही वजह थी कि राजगुरु अक्सर भारतीय दर्शन की बातें किया करते थे, वहीं भगत सिंह एक समाज और बराबरी और एकता की चर्चा करते थे.   

चंद्रशेखर आजाद से मुलाकात
राजगुरु के बचपन में ही पिता का साया उठ गया, जिसके बाद उनकी मां और भाई ने उनका लालन-पोषण किया. लेकिन अंग्रजों के गुलाम भारत में हो रहे बड़े और छोटे आंदोलनों ने राजगुरु को बचपन से ही अपनी ओर आकर्षित करना शुरू कर दिया था. आंदोलनों की खबर सुनते-सुनते एक दिन वो घर छोड़कर चले गए. वे कई दिनों तक कई क्रांतिकारियों से भेंट करते रहे. इसी दौरान उनकी मुलाकात महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद से हुई. राजगुरु 'हिंदुस्तान सामाजवादी प्रजातान्त्रिक संघ' के सदस्य बन गए.

चंद्रशेखर आजाद प्रभावित हुए
युवा और जोशीले राजगुरु से मिलने के बाद चंद्रशेखर आजाद बहुत प्रभावित हुए. आजाद ने उन्हें बड़ी ही तल्लीनता से निशानेबाजी के गुर लगे. परिणामस्वरूप राजगुरु भी आजाद जैसे एक कुशल निशानेबाज बन गए. हालांकि निशानेबाजी की शिक्षा देते हुए कई बार चंद्रशेखर आजाद अपने शिष्य राजगुरु को लापरवाही करने पर डांट भी देते थे, लेकिन यह आजाद और राजगुरु के बीच का आपसी प्रेम था. राजगुरु का निशाना कभी चूकता नहीं था. इसी दौरान दल में राजगुरु की भेंट भगत सिंह और सुखदेव थापर से हुई. भगत सिंह और सुखदेव से मिलने के बाद राजगुरु दोनों से बहुत प्रभावित हुए. फिर इसके बाद जब तीनों महान क्रांतिकारियों की दोस्ती हुई तो वो उनकी मौत (23 मार्च 1931) तक रही.

जेपी सांडर्स हत्याकांड
चंद्रशेखर आजाद के सानिध्य में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का मिलना ऐसे ही नहीं था. यहां से तीनों क्रांतिकारियों की एक अमर कथा की पटकथा लिखी जा रही थी. इस बीच प्रदर्शन कर रहे लाला लाजपत राय की पुलिस की पिटाई से मौत हो गई, इस खबर से पूरे देश के क्रांतिकारियों में गुस्सा था. लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए दल ने अंग्रेज अफसर स्कॉट को मारने की योजना बनी. इस काम के लिए राजगुरु और भगत सिंह को चुना गया. 19 दिसंबर, 1928 को राजगुरु ने भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया. सांडर्स ने स्कॉट के कहने पर लाला लाजपत राय को लाठी मारी थी. 

महाराष्ट्र में राजगुरु
इस घटना के बाद भगत सिंह अंग्रेजी अफसर, राजगुरु उनके सेवक और चंद्रशेखर आजाद पुलिस की नजरों से बचकर भाग निकले. लेकिन इस घटना के बाद चंद्रशेखर आजाद को छोड़कर ज्यादातर सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए. चंद्रशेखर आजाद के कहने पर राजगुरु बचते-बचाते महाराष्ट्र चले गए, मगर कुछ दिनों के बाद वो गिरफ्तार कर लिए गए. पुलिस ने राजगुरु उनके साथियों के साथ लाकर लाहौर की जेल में बंद कर दिया. लाहौर में सभी क्रांतिकारियों पर सांडर्स हत्याकाण्ड का मुकदमा चला. राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव को मौत की सजा सुनाई गई. कोर्ट में इन क्रांतिकारियों ने स्वीकार किया था कि वे पंजाब में आजादी की लड़ाई के एक बड़े नायक लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना चाहते थे.

फांसी का दिन
इतिहासकार मानते हैं कि तीनों शहीदों को फांसी की सजा 24 मार्च को होनी थी, अंग्रेजी सरकार इस बात का डर था कि फांसी देने के समय कहीं कोई दंगा ना हो जाए. वहीं राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव को फांसी की सजी होने के बाद यह खबर पूरे देश में फैल चुकी थी, साथ ही लोगों में आक्रोश भी दिखने लगा था. यही वजह है कि तीनों महान क्रांतिकारियों को मुकर्रर समय से पहले ही लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर फांसी दे दी गई.

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