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संभल में शाही मस्जिद या पौराणिक मंदिर? एक अंग्रेज का फुटनोट और बाबर का सच क्‍या है? पढ़ें हिंदू-मुस्लिम विवाद की पूरी कहानी     

1878 में छेदा सिंह नाम के एक शख्स से मस्जिद को लेकर याचिका दाखिल की थी और अंदर जाने की अनुमति की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर माना कि वहां मस्जिद है और याचिका खारिज कर दी.

करीब तीन महीने पहले देश में एक मंदिर-मस्जिद विवाद शुरू हुआ. ये विवाद था उत्तर प्रदेश के संभल जिले की शाही जामा मस्जिद को लेकर. 19 नवंबर, 2024 को जिला अदालत में एक याचिका दाखिल हुई और उसमें दावा किया गया कि ये मस्जिद नहीं, बल्कि श्रीहरिहर मंदिर है. याचिका पर सुनवाई हुई और उसी दिन कोर्ट के आदेश पर मस्जिद का सर्वेक्षण हुआ. ये सर्वे शांतिपूर्ण तरीके से हुआ, लेकिन 24 नवंबर को जब फिर से सर्वे के लिए टीम पहुंची तो हिंसा भड़क गई और पांच लोगों की जान चली गई. उसके बाद सर्वे नहीं हुआ, लेकिन प्रशासन ने संभल में अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरू किया, जिसमें पुराने मंदिरों, बावड़ियों और कुओं का पता चला. अब बुधवार (8 जनवरी, 2025) को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला अदालत में संभल मस्जिद मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी है.

ये पहली बार नहीं है, जब संभल में मस्जिद और मंदिर का मुद्दा उठाया गया है. साल 1878 में भी एक याचिका दायर की गई थी. हालांकि, तब मस्जिद में सिर्फ जाने की अनुमति मांगी गई थी, पूजा-अर्चना करने की मांग नहीं की गई थी. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार मस्जिद कमेटी की ओर से वकील मशहूद अली फारूकी ने बताया है कि ये याचिका छेदा सिंह नाम के एक शख्स ने दाखिल की थी. उस वक्त मुरादाबाद कचहरी में सुनवाई हुई थी, लेकिन छेदा सिंह ये केस हार गए थे. उस वक्त इस मामले में दो अहम सवाल उठाए गए. एक तो ये कि क्या पहले कभी वहां कोई मंदिर था या यहां पहले से ही मस्जिद थी? इसके बाद छेदा सिंह इलाहाबाद हाईकोर्ट भी गए लेकिन वहां भी उन्हें हार मिली. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर माना कि यहां मस्जिद थी, न तो वहां कभी पूजा हुई और न ही कभी कोई मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई.

अब जब याचिका दाखिल हुई है तो फिर से वही सवाल उठ रहे हैं और दोनों पक्षों की ओर से तर्क दिए जा रहे हैं. हिंदू पक्ष की ओर से एक याचिकाकर्ता महंत ऋषिराज गिरी का दावा है कि संभल एक प्राचीन नगर है और भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि का जन्म भी यहीं होगा. कैला देवी मंदिर के एक महंत ने संभल का त्रिकोणीय मानचित्र दिखाते हुए कहा कि ये मस्जिद नहीं मंदिर है और वह परिसर में पूजा-अर्चना की तैयारी कर रहे हैं. उनका कहना है कि स्कंद महापुराण में इस बात का वर्णन है. उसमें इस बात का भी उल्लेख है कि संभल में बहुत से तीर्थ हैं. 

मामले में एक और याचिकाकर्ता हरिशंकर जैन ने अपनी याचिका में बाबरनामा का जिक्र किया है. बाबरनामा खुद मुगल शासक बाबर ने लिखा था और ब्रिटिश ओरिएंटलिस्ट एनेट बेवरेज ने इसे ट्रांसलेट किया था. यह बाबर के दौर का एक प्रमुख स्त्रोत है. 12 साल की उम्र में बाबर ने बाबरनामा लिखना शुरू किया और 1530 तक लिखा. 1531 में यह प्रकाशित हुआ. इसमें तीन मस्जिदों का जिक्र है, जिनमें संभल की जामा मस्जिद भी शामिल है. हालांकि, अमेरिकी इतिहासकार हावर्ड क्रेन ने एक रिसर्च पेपर पेट्रोनेज ऑफ जहीर अल-दीन बाबर लिखा था, जो 1987 में प्रकाशित हुआ.

हावर्ड क्रेन ने कहा कि बाबरनामा में संभल की मस्जिद का उल्लेख नहीं है. वह लिखते हैं कि हिंदू बेग बाबर के साथ काबुल से आए थे और उन्हें संभल का प्रशासक नियुक्त किया गया. वहीं, बाबरनामा का अनुवाद करने वाले एनेट बेवरेज ने इंग्लिश ट्रांसलेशन में एक फुटनोट या अनुवादक की टिप्पणी जोड़ी, जिसमें कहा गया कि हिंदू बेग ने बाबर के आदेश पर संभल में मस्जिद बनवाई थी. उन्होंने इस स्थान पर मंदिर होने की संभावना भी जताई थी.

 

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