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राज की बातः यूपी विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण बड़ा फैक्टर, बीजेपी की वापसी के लिए पूर्वांचल अहम  

उत्तरप्रदेश  की सियासी जंग में पूर्वांचल और जातीय समीकरण एक बड़ा फैक्टर बन गए हैं और सियासी दलों के लिए सबसे बड़ी सिरदर्दी भी. सत्ताधारी बीजेपी के लिए यहां पर चुनौतियां कहीं ज्यादा बड़ी हैं.

नई दिल्लीः 2022 में होने जा रहे उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव का औपचारिक बिगुल भले ही नहीं बजा लेकिन सभी सियासी दलों ने खुद को चुनावी मोड में सेट कर लिया है. सभी की अपनी- अपनी रणनीतियां हैं, अपनी अपनी कार्यशैली है और अपने अपने समीकरण....जिससे सत्ता के संग्राम को साधने का संघर्ष शुरु हो गया है.

राज की बात में हम आपको बताने जा रहे हैं कि कैसे इस सियासी जंग में पूर्वांचल और जातीय समीकरण एक बड़ा फैक्टर बन गए हैं और सियासी दलों के लिए सबसे बड़ी सिरदर्दी भी. खासतौर से सत्ताधारी बीजेपी के लिए यहां पर चुनौतियां कहीं ज्यादा बड़ी हैं. 

सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए चुनौती
सियासत की इस बिसात पर पूर्वांचल पर निगाहें सभी की टिकी हुई हैं. इसके पीछे की वजह सत्ता पक्ष से भी जुड़ी हुई है और विपक्ष से भी. पूर्वांचल का संबंध सत्ता से ये है कि विजय तो मिली लेकिन नाकों चने चबाने पड़ गए और विपक्ष ने सीटों पर अच्छी खासी सेंध लगाई. पूर्वांचल का संबंध विपक्ष से ये है कि जिस दौर में भाजपा लहर चल रही थी, उस लहर को काटकर विपक्ष ने अपनी नाक को कटने से सूबे में बचाया था.

सियासी संघर्ष के साढ़े 4 साल बीतने के बाद एक बार फिर से जब जंग की बारी है तो सभी दलों की तैयारी जमीन पर दिखनी शुरु हो गई है. बात सत्ताधारी बीजेपी से ही शुरु करते हैं.

पीएम के काशी दौरे से मिला साफ संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र काशी पहुंचे और हजारों करोड़ की सौगात पूर्वांचल की झोली में डाल दी. सौगात के साथ ही साथ उन्होंने सीएम योगी की जमकर तारीफ भी की और बदलते यूपी को देश के लिए नजीर के तौर पर पेश किया. पीएम के काशी दौरे से 2 संदेश साफ हुए. पहले ये कि चुनाव से पहले सीएम योगी आदित्यनाथ को लेकर चल रही अटकलों पर विराम लगा और दूसरा ये कि आगामी चुनाव में विकास एक बड़ा मुद्दा बनेगा और पूर्वांचल को गिनाने के लिए बहुत कुछ बीजेपी के पास होगा भी.

पूर्वांचल फैक्टर को साधने की बीजेपी आलाकमान की कोशिश
विकास की बिसात पर सियासी संग्राम को आगे बढ़ाने के लिए 30 जुलाई को प्रधानमंत्री सिद्धानगर के दौरे पर जा रहे हैं. पीएम का ये दौरा भी विकास और पूर्वांचल से जुड़ा हुआ है. प्रधानमंत्री के साध ही साथ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी विंध्याचल कॉरिडोर के निर्माण के शुभारंभ के लिए मिर्जापुर जाने वाले है. मिर्जापुर के इस दौरे से भी विकास और पूर्वांचल फैक्टर को साधने की बीजेपी आलाकमान की सीधी कोशिश है.

पूर्वांचल पर फोकस करने की वजह केवल विकास या विपक्ष की सियासी सेंध को कम करने की कोशिश तक सीमित नहीं है. पूर्वांचल से ब्राह्मण, ठाकुर और ओबीसी वोटर्स का समीकरण भी सधता है औऱ इस चुनाव मे तो ये मुद्दा इतना बड़ा हो गया है कि हर दल अपने अपने लोभ के डोर फेंकना शुरु कर चुका है.

ब्राह्मण वोटर्स को साधने की कवायद तेज
गोरखपुर की बात करें तो सीएम योगी के साथ शिवप्रताप शुक्ला और हरिशंकर तिवारी के टकराव की खबरें जगजाहिर हैं. सियासत के इस टकराव को ब्राह्मण विरोधी की मानसिकता से जोड़कर पेश किया गया. सरकार के ब्राह्मण विरोधी होने का शगूफा विकास दुबे और अन्य अपराधियों के एनकाउंटर के बाद ज्यादा मजबूती से विपक्ष ने छोड़ा. यही वजह है कि प्रदेश के लगभग 13 फीसदी ब्राह्मण वोटर्स को साधने की कवायद भी तेज हो गई है.

2022 की चुनावी जंग को जीतने के लिए एक तरफ जहां बीजेपी में मुख्य पटल पर एके शर्मा और जतिन प्रसाद की एंट्री कराई गई. वहीं बहुजन समाज पार्टी ने प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के नाम पर ब्राह्मणों को साधने की कवायद शुरु कर दी है. बहुजन समाज पार्टी ने ब्राह्मणों को साधने के लिए आरोप लगया है कि सूबे में इस वर्ग को बहुत अपमानित होना पड़ा ....और बीएसपी की सरकार आई तो एक बार फिर से ये सम्मान उन्हें वापस मिल पाएगा.

बीजेपी भी रख रही जातीय समीकरणों का ध्यान  
हालांकि ऐसा नहीं है कि बीएसपी की इस नई रणनीति की काट बीजेपी के पास नहीं है. राज की बात ये है कि जिन 4 एसएलसी को राज्यपाल आने वाले वक्त में नॉमिनेट करेंगी उसमें जातीय समीकरणों का ध्यान भी रखा जाए्गा. जैसा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल से लेकर यूपी के प्रदेश संगठन तक में इसका ध्यान रखा गया. कांग्रेस से बीजेपी में आए जितिन प्रसाद को यूपी की कैबिनेट में जगह मिलने की संभावना प्रबल है. हालांकि, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी का नाम भी तेज़ी से चल रहा है.

ये दोनों ब्राह्मण हैं लेकिन पूर्वांचल से संबद्ध नहीं. ऐसे में छात्र राजनीति से उदित हुए और फ़िलहाल प्रदेश बीजेपी के सबसे वरिष्ठ प्रवक्ता मनीष शुक्ल का नाम भी हवा में है. इस मनोनयन ने ब्राह्मण फैक्टर भी सधेगा और पूर्वांचल का राजनैतिक समीकरण भी. मतलब ये हुआ कि विकास और जातीय समीकरण को समानांतर तौर से साधकर सियासी जद्दोजहद को आगे बढ़ाने की कोशिश जारी है.

निषाद वोटर्स पर भी फोकस
राज की बात ये भी है कि चुनौती केवल ब्राह्मण वोटर्स को साधने की नहीं है. इस चुनाव में निषाद और राजभर समुदाय को साधना भी है. हालांकि राजभर फैक्टर पिछले विधानसभा चुनाव में भी चला था लेकिन इस बार निषाद वोटर्स की भूमिका भी बड़ी हो गई है और यही वजह है कि सपा और बीजेपी ने इनको साधने पर अपना फोकस लगा दिया है.

ये तो रही बात पूर्वांचल, विकास और जातीय समीकरण की, लेकिन इतने भर से प्रदेश का पूरा समीकरण सध जाए ऐसा संभव नहीं है. दशकों से यूपी की राजनीति के केंद्र में रहा राममंदिर एक बार फिर से सियासी बयानाबाजी में आ चुका है.

फिर उछाला जा रहा है राममंदिर का मुद्दा 
एक तरफ जहां राममंदिर निर्माण के आरंभ के बाद बीजेपी अपने संघर्ष के इतिहास के साथ जन-मन को जीतने की तैयारी में लगी हुई है. वहीं सतीश चंद्र मिश्रा ने अयोध्या से एक पुराने तथ्य को नए अंदाज में उछालकर राजनीतिक सरगर्मी को बढ़ा दिया है.

सतीश चंद्र मिश्रा ने अयोध्या में कहा कि राममंदिर के पक्ष में हाईकोर्ट का फैसला बसपा के शासनकाल में ही आया था. सुप्रीमकोर्ट से फैसला आने के बाद बीजेपी ने मंदिर निर्माण में देरी की ऐसे में अब बसपा की सरकार में ही तेजी से राममंदिर का निर्माण हो पाएगा. मतलब ये कि राममंदिर पर अगर बीजेपी माइलेज लेने को तैयार है तो बीएसपी ने भी अपना पत्ता उछाल दिया है.

तू डाल डाल, मैं पात पात के मोड में राजनीति  
कुल मिलाकर राज की बात ये है कि यूपी की राजनीति इस समय तू डाल डाल मैं पात पात वाली मोड में आ गई है. बात चाहे पूर्वांचल की हो, जातीय समीकरणों की हो, काम ही हो या राम की....कदम कदम पर सियासी तुरुप फेंके जा रहे हैं. अब देखने वाली बात होगी कि किससे कौन सा समीकरण कितना सध पाता है और इनके जरिए सत्ता किसे हासिल होती है. लेकिन इतना तय है कि बीजेपी को यूपी में उदय करना है तो उसका पहला छोर पूर्वांचल ही होगा.
 

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