ममता दीदी क्यों बदली-बदली सी नजर आती हैं?
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने आज भी ममता बनर्जी से मुलाक़ात की है. कोलकाता में प्रशांत किशोर ने सचिवालय जाकर ममता से मुलाक़ात की. एक महीने में दोनों के बीच ये दूसरी मुलाकात है, इससे पहले 6 जून को मुलाकात हुई थी.

नई दिल्ली: बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी इन दिनों बदली बदली सी नज़र आ रही है. बीजेपी को रोकने के लिए ममता दीदी ने कांग्रेस और लेफ़्ट पार्टियों से मदद की अपील की है, वे गैर बीजेपी पार्टियों का साथ चाहती हैं. कोलकाता में चल रहे विधानसभा की बैठक में वे कांग्रेस और लेफ़्ट के नेताओं का मान सम्मान कर रही हैं. ख़बर है कि ममता दीदी के ह्रदय परिवर्तन के पीछे प्रशांत किशोर हैं. पीके का आइडिया है कि ताक़तवर हो रही बीजेपी को रोकने के लिए सब एकजुट हों. ममता ने तृणमूल कांग्रेस को मज़बूत करने के लिए प्रशांत किशोर को अपने साथ जोड़ा है. साल 2021 में बंगाल में विधानसभा के चुनाव होने हैं.
ममता बनर्जी की साथ आने की अपील को न तो कांग्रेस ने न ही लेफ़्ट पार्टियों ने गंभीरता से लिया है, संकट भरोसे का है. भरोसा न तो कांग्रेस को ममता पर है, न ही वामपंथी पार्टियों को. क्योंकि पिछले कई सालों से यही दोनों पार्टियं टीएमसी के निशाने पर रही हैं. ममता के प्रस्ताव पर कांग्रेस नेता प्रदीप भट्टाचार्य कहते हैं कि पहले वे उनकी पार्टी के 17 विधायक वापस करें.
आपके बता दें कि कांग्रेस के इन विधायकों ने पार्टी छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया था. लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि अगर ममता इस मुद्दे पर गंभीर हैं तो फिर उन्हें हमारी लीडरशिप से बात करनी चाहिए. बरहामपुर से सांसद चौधरी ने कहा कि बंगाल में बीजेपी के मज़बूत होने की कसूरवार ममता बनर्जी ही हैं. बंगाल की राजनीति में चौधरी को ममता का घनघोर विरोधी माना जाता है. इस बार के लोकसभा चुनाव में टीएमसी और कांग्रेस के गठबंधन की बात उठी तो सबसे अधिक विरोध चौधरी ने किया.
अचानक ममता दीदी को कांग्रेस और लेफ़्ट पार्टियों से इतनी हमदर्दी क्यों होने लगी ? इसके पीछे दो वजहें हैं. हाल के लोकसभा चुनाव के नतीजे और फिर प्रशांत किशोर की रणनीति. पहले बात चुनावी नतीजों की कर लें. बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं. टीमसी को 22, बीजेपी को 18 और कांग्रेस को 2 सीटें मिलीं. जबकि 2014 के लेकसभा चुनाव में टीएमसी ने 34 सीटों पर जीत दर्ज की थी. मोदी लहर के बाद भी बीजेपी के हिस्से में सिर्फ़ 2 सीटें आईं थीं. लेकिन पिछले पॉंच सालों में ही बीजेपी अब टीएमसी के लिए सरदर्द बन गई है.
2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के हिसाब से बीजेपी 121 विधानसभा सीटों पर पहले नंबर पर रही. तृणमूल कांग्रेस 164 सीटों पर बढ़त बना पाई. इन्हीं आंकड़ों ने तो ममता दीदी की नींद उड़ा रखी है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने विधानसभा चुनाव के लिए 250 प्लस का लक्ष्य रखा है. हर हफ़्ते टीएमसी का कोई न कोई विधायक बीजेपी में शामिल हो रहा है. दिल्ली में बीजेपी ऑफ़िस में प्रेस कॉन्फ्रेंस होती हैं. बीजेपी अगले विधानसभा चुनाव तक टीएमसी पर दवाब बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रही है.
टीएमसी का कांग्रेस और लेफ़्ट पार्टियों से गठबंधन हो जाए, ये फ़ार्मूला प्रशांत किशोर यानी पीके का है. उनकी संस्था आईपैक के सदस्य बंगाल पहुंच चुके हैं. पीके की टीम ग्राउंड रिपोर्ट तैयार कर रही है. खुद पीके कोलकाता जाकर ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के बडे नेताओं से मिल चुके हैं. ममता को लगता है कांग्रेस और लेफ़्ट का साथ लेकर बीजेपी को रोका जा सकता है. प्रशांत किशोर इससे पहले बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार का गठबंधन करा चुके हैं. इस गठबंधन ने विधानसभा चुनाव में बीजेपी को धूल चटा दी थी.
पीके के सुझाव पर ही ममता दीदी अपनी अक्खड़ और दबंग नेता वाली छवि को सुधारने में जुटी हैं. उन मुद्दों पर बीजेपी से टकराने से बच रही हैं जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो सकता है. ममता अपने मनबढ़ कार्यकर्ताओं की भी क्लास ले रही हैं. इसी सिलसिले में उन्होंने सबको 'कट मनी' न लेने को कहा है. राजनीति में दुश्मन कब दोस्त बन जायें, किसी को नहीं पता. कांग्रेस से अलग होकर ही तो ममता ने टीएमसी बनाई थी, कल दोनों साथ हो जायें तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.
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