काठमांडू में मिलेंगे मोदी और शेख हसीना, एनआरसी के सवालों पर होगी नज़र
असम में एनआरसी का अंतिम मसौदा जारी होने के बाद यह पहला मौका होगा जब दोनों नेता आमने-सामने होंगे.
काठमांडूः भारत के असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी को लेकर जारी सियासी घमसान के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना से काठमांडू में मिलेंगे. दोनों नेता बंगाल की खाड़ी से सटे मुल्कों के सहयोग संगठन BIMSTEC की बैठक में शिखर सम्मेलन के लिए नेपाल में होंगे. असम में एनआरसी का अंतिम मसौदा जारी होने के बाद यह पहला मौका होगा जब दोनों नेता आमने-सामने होंगे.
हालांकि अभी तक इस द्विपक्षीय मुलकात को लेकर दोनों ही पक्षों की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. लेकिन जानकार सूत्रों के मुताबिक इस बात के पूरे संकेत हैं कि गुरुवार को दोपहर बाद दोनों नेता द्विपक्षीय मुलकात के लिए मिलें. इस बीच अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मोदी और हसीना की काठमांडू मुलकात की मेज़ पर एनआरसी का मुद्दा अगर उठेगा तो किस शक्ल में.
दरअसल, भारत में एनआरसी की कवायद को अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने की कवायद बताते हुए सियासी प्रचार हो रहा हो. लेकिन, बांग्लादेश ने अब तक इसे भारत का आंतरिक मामला बताते हुए किनारा करता रहा है. बीते दिनों बांगलादेश के सूचना प्रसारण मंत्री हसनुल हक इनू ने एबीपी न्यूज से बातचीत में कहा था की एनआरसी भारत का एक अंदरूनी मामला है और इस बारे में बांग्लादेश की कोई भूमिका नहीं है. न ही भारत ने उन्हें इस प्रक्रिया के नतीज़ों के बारे में कोई आधिकारिक सूचना दी है.
भारतीय विदेश मंत्रालय प्रवक्ता रवीश कुमार ने 9 अगस्त को प्रेस कॉन्फ्रेन्स में कहा था की भारत एनआरसी के मुद्दे पर बांग्लादेश सरकार के साथ संपर्क में है. एनआरसी मसौदे के जारी होने और उसके बाद भी हम सम्पर्क में हैं. हर अवसर पर हमने बांग्लादेश सरकार को बताया है की एनआरसी फिलहाल एक मसौदा सूची है जिसे सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तैयार किया जा रहा है और असम में नागरिकों के पहचान की प्रक्रिया जारी है. साथ ही भारतीय विदेश मंत्रालय ने इससे भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में किसी खटास की आशंका को भी खारिज किया था.
इस बीच सियासी तौर पर बीजेपी लगातार एनआरसी को पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार का एक बड़ा और साहसी कदम करार दे रही है. यहां तक कि 28 अगस्त को पीएम मोदी और बीजेपी अध्य्क्ष अमित शाह की अगुवाई में हुई पार्टी के मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी एनआरसी को एनडीए सरकार का एक अहम फैसला करार दिया गया. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने बीजेपी प्रमुख अमित शाह के भाषण का हवाला देते हुए इस बात पर ज़ोर भी दिया की बीजेपी असम से अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों को बाहर निकलने के लिए संकल्पित है. ऐसे में सवाल उठता है की क्या पीएम मोदी बांग्लादेशी प्रधानमंत्री से इस बाबत दो टूक बात करेंगे? क्या बातचीत की मेज़ पर बांग्लादेश सरकार से इस बाबत ठोस आश्वासन लिया जाएगा कि एनआरसी की कवायद पूरी होने का बाद असम में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी नागरिकों को ढाका की सरकार कब और कैसे वापस लेगी?
हालांकि सियासी शोर से परे फिलहाल इस मुद्दे पर ढाका से किसी ठोस वादे की उम्मीद धुंधली है. खासतौर पर ऐसे में जबकि बांग्लादेश की सरकार महज़ दो महीनों में आम चुनाव में जा रही हो. एनआरसी की कवायद पर नज़र रखने वाले जानकारों के मुताबिक मोदी और हसीना की मुलाकात के दौरान उल्टे बंगलादेशी प्रधानमंत्री की कोशिश इस बाबत भरोसा हासिल करने की होगी कि कहीं भारत वाकई में एनआरसी को लागू कर उसके लिए नई समस्या खड़ी करने की तैयारी में तो नहीं है. बांग्लादेश के साथ रिश्तों की नज़ाकत और भारत की मौजूदा रणनीतिक ज़रूरतों के मद्देनजर इस बात की उम्मीद ही ज़्यादा है कि शेख हसीना फिलहाल असम के एनआरसी का लेकर निश्चिंत होकर लौटें.
सूत्रों के मुताबिक भारत में भी फिलहाल संकेत एनआरसी कवायद की रफ्तार धीमी होने के ही संकेत दे रहे हैं. लिहाज़ा इस बात की उम्मीद कम है की 2019 के आम चुनावों से पहले असम में नागरिकता को लेकर चल रहे एनआरसी के सागर मंथन का कोई नतीजा निकले. हां, चुनाव नज़दीक आने पर इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक श्रेय का शोर ज़रूर और बढ़ सकता है.
गौरतलब है कि हाल ही में जारी एनआरसी के अंतिम मसौदे में करीब 40 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए. इसका लेकर गंभीर सवाल भी हैं और उम्मीद है कि शिकायतों के समाधान के लिए बनी गाइडलाइन और निर्धारित प्रक्रिया से कई लोगों का अपना नाम जुड़वाने में कामयाबी भी मिल जाएगी.