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परमवीर: करगिल युद्ध के दौरान अकेले दुश्मनों पर टूट पड़ा था भारत सेना का ये जांबाज
दो महीने तक चलने वाले इस युद्ध के दौरान लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय ने आगे चलकर इसका नेतृत्व किया और कुकरथांग, जूबरटॉप जैसी चोटियों को दुश्मनों के कब्जे से अपने नियंत्रण में लिया.
![परमवीर: करगिल युद्ध के दौरान अकेले दुश्मनों पर टूट पड़ा था भारत सेना का ये जांबाज Paramvir 11 Gorkha Rifles Lieutenant Manoj Kumar Pandey get highest gallantry award Paramvir Chakra in Kargil conflict albeit posthumously परमवीर: करगिल युद्ध के दौरान अकेले दुश्मनों पर टूट पड़ा था भारत सेना का ये जांबाज](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2021/07/23/29b8bdca8f6d860c1b22655183801aff_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
करगिल युद्ध के दौरान जिस वीरता का परिचय शहीद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय ने दिया था, उसकी वजह से उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. भारतीय सेना का यह वीर जवान दुश्मनों की गोलियों से घायल होने के बावजूद जंग के मैदान में बंदूक अपने अपनी ऊंगलियां नहीं हटाई और अकेले पाकिस्तानी घुसपैठियों के तीन बंकर नष्ट कर दिए.
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय के पिता के मुताबिक, उनके सेना में जाने का सिर्फ एक ही लक्ष्य था परमवीर चक्र को हासिल करना. लेफ्टिनेंट पांडेय 1/11 गोरख रायफल्स के जवान थे. उनकी टीम को करगिल युद्ध के दौरान दुश्मन के ठिकानों को खाली करने का काम सौंपा गया था. युद्ध का मैदान खालूबर था.
यूपी के सीतापुर के रुधा गांव में पैदा हुए मनोज पांडेय को 11 गोरखा रायलफल्स रेजिमेंट कड़ी ट्रेनिंग के बाद पहली तैनाती मिली थी. मनोज पांडेय अपनी यूनिट के साथ अलग-अलग इलाकों में गए. करगिल युद्ध के दौरान उनकी बटालियन सियाचिन में थी और उनका तीन महीने का कार्यकाल भी पूरा हो गया था. लेकिन उसी दौरान आदेश आया कि बटालियन को करगिल की तरफ बढ़ना है.
दो महीने तक चलने वाले इस युद्ध के दौरान लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय ने आगे चलकर इसका नेतृत्व किया और कुकरथांग, जूबरटॉप जैसी चोटियों को दुश्मनों के कब्जे से अपने नियंत्रण में लिया. लेकिन 3 जुलाई 1999 को जैसे ही खालूबार की चोटी पर अपना कब्जा करने के लिए आगे बढ़े कि विरोधियों ने अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी.
इसके बाद मनोज ने रात के अंधेरा होने के इंतजार किया और उसके बाद विरोधियों के बंकरों को उड़ाने शुरू कर दिए. उन्होंने पाकिस्तानी फौज के तीन बंकरों को तबाह कर दिया. मनोज पांडेय अपनी गोरखा पलटन लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में ‘काली माता की जय’ के नारे लगाते हुए उन्होंने पाकिस्तानी दुश्मनों के जंग के मैदान में छक्के छुड़ा दिए.
जब लेफ्टिनेंट मनोज बाकी बचे बंकरों को उड़ाने के लिए बढ़े ही थे कि दुश्मनों ने उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी. जख्मी हालत में मनोज आगे बढ़ते रहे क्योंकि वह खालबार टॉप पर तिरंगा फहराना चाहते थे. लेफ्टिनेंट ने चौथे बंकर को भी उड़ाने में कामयाब रहे. लेकिन दुश्मनों ने उन्हें देख लिया और उन पर फिर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. अपने सीनियर जवान को शहीद होते देख भारतीय जवानों रुके नहीं बल्कि चुन-चुन कर वहां के सारे बंकरों को खत्म कर दिया. आखिरकर भारतीय जवानों ने खालूबार पर तिरंगा फहराया.
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