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बेनजीर भुट्टो का लाडला बिलावल चला अम्मी की चाल, ओहदे की इज्जत का भी नहीं रखा ख्याल

पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो यूएनएससी में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ऐसे लफ्जों का इस्तेमाल कर गए कि वो खुद ही अपने दर्जे से गिर गए हैं. उन्होंने गुजरात दंगा कार्ड खेला है.

कहते हैं न कि किसी की शख्सियत का पता उसके लफ्ज़ों से लगाया जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो को भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ दिए गए उनके बयान से ही पूरी दुनिया ने आंका है. उन्होंने कुछ ऐसे घटिया लफ्जों का इस्तेमाल अपने पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री के लिए किया कि उसे शायद ही दुनिया का कोई तहजीब वाला मुल्क बर्दाश्त कर पाएं.बिलावल भुट्टो का ये बयान ऐसे वक्त में आया है जब उनके देश में उनके लिए हालात माकूल नहीं हैं.

पाक के अपदस्थ पीएम इमरान खान उनके खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. ऐसे में बिलावल के पास भी अपनी हुकूमत को बचाने की चुनौती है और जैसा की इस देश का रिवाज है, यहां ये होता आया है कि सत्ता गंवाने से बचना हो तो तुरंतभारत के खिलाफ बयानबाजी कर डालो और जनता का समर्थन लूट लो. ऐसे में बिलावल भुट्टो ने कोई नया काम नहीं किया है वो बस अपनी अम्मी बेनजीर भुट्टो की राह चल पड़े हैं. इतिहास गवाह की बेनजीर की सत्ता बचाने में उनका खेला गया कश्मीर कार्ड काम आया था. अब बिलावल गुजरात दंगों और मोदी की बात अंतरराष्ट्रीय मंच पर कर गुजरात दंगा कार्ड खेल रहे हैं. 

आरएसएस की तुलना हिटलर के एसएस से

मौका था न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद 2022 की बैठक का और भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने पाकिस्तान में ओसामा बिन लादेन के होने पर तंज किया था. इसका जवाब देने के लिए पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी इतने उतावले हुए कि उन्होंने अपने ओहदे, अपने कद का लिहाज किए बगैर कुछ ऐसा कहा कि सब सकते में आ गए.

बिलावल ने कहा, " मैं माननीय विदेश मंत्री और द मिनिस्टर फॉर एक्सटर्नल अफेयर्स ऑफ इंडिया को याद दिलाना चाहूंगा कि ओसामा बिन लादेन मर चुका है, लेकिन गुजरात का कसाई जिंदा है और वह भारत का प्रधानमंत्री है. आरएसएस क्या है? आरएसएस को अपनी प्रेरणा हिटलर के एसएस से मिली है. भारत के अंदर आतंकवाद को कौन लगातार बनाए हुए है? क्या ये पाकिस्तान है? गुजरात के लोगों से पूछिए वो कहेंगे कि वो उनके प्रधानमंत्री हैं."

इसके बाद यूएनएससी में पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव उभर आया. उनके इस बयान से भारत-पाक की रिश्तों को सुधारने की कवायद में जोर का झटका माना जा रहा है. दुनिया से भी इन दोनों देशों की आपसी अदावत छुपी नहीं है. 

 बेनजीर ने जब खेला था कश्मीर कार्ड

पाक विदेश मंत्री बिलावल ने अपने ओहदे की मर्यादा को ताक पर यूं ही नहीं रखा. इसके पीछे उनकी अपनी मां बेनजीर भुट्टो की राह चलने की मंशा साफ नजर आती है. ये जगजाहिर है उनकी मां दिवंगत बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं थी और उन्होंने भी भारत के खिलाफ इस तरह के आपत्तिजनक बयान दिए थे. याद करिए साल 1990 का दशक था.

इस दशक में उनका की दी एक तकरीर उन्हें सत्ता में वापस ले आई थी.  जब बेनजीर भुट्टो ने इस्लामाबाद की रैली में तकरीर दे रहीं थी. वो पाकिस्तान को खुद के पैरों पर खड़ा करने की बात कर रही थी, लेकिन आवाम थी कि उन्हें सुनने से बेपरवाह थी. ऐसे में बेनजीर ने वक्त का मिजाज भांपा और तुरंत कश्मीर पर आ गईं.

इस रैली में बेनजीर ने कहा," हम कश्मीरी आवाम के खुद के हक के फैसले की तसदीक करते हैं. हम उन्हें सियासी हौसला देंगे." कश्मीर का जिक्र छिड़ते ही पाकिस्तान की आवाम के कान चौकन्ना हो गए और दिमाग दौड़ने लगा. जनता जोश- ओ- खरोश से भर उठी और नारे लगने लगे "बेनजीर बेनजीर, लेकर रहेंगी कश्मीर." बेनजीर का ये कश्मीर कार्ड चला ही नहीं बल्कि दौड़ पड़ा और चुनावों में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सामने विपक्ष धराशायी हो गया.

बेनजीर पाक की सत्ता पर दोबारा कायम हो गईं. साल 1993 में कश्मीर कार्ड की ताकत ने उन्हें दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री पद से नवाजा. दरअसल इससे पहले वह 16 नवंबर 1988 को पाकिस्तान की प्रधानमंत्री चुनी गई थी, लेकिन 1990 में राष्ट्रपति ग़ुलाम इशाक ख़ान ने उनकी सरकार को बर्ख़ास्त कर डाला था.  हालांकि दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद भी भ्रष्टाचार के आरोप में उनकी सरकार को दोबारा से बर्खास्तगी का सामना करना पड़ा था.

सिंध में पीपीपी में फूंकी जान

पाकिस्तान के बाशिंदों के लिए कश्मीर एक जज्बाती मुद्दा रहा है. दिवंगत बेनजीर भुट्टो ने इसे बखूबी समझा था. तभी उन्होंने सोच-समझकर रैली में कश्मीर का मुद्दा उठाया था. इसे बयान ने उनकी पार्टी के लिए किसी ताकत देने वाले टॉनिक की तरह काम किया. सिंध प्रांत में बेनजीर के गढ़ में ही उनकी पार्टी पीपीपी हिचकोले खा रही थी. ये प्रांत हिंसा से जूझ रहा था. उन्हें खौफ था कि सेना हुकूमत पर कब्जा करने के फिराक में है.  दूसरी तरफ उनके खिलाफ उस वक्त पंजाब के सीएम रहे नवाज शरीफ ने भी मोर्चा खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी.

नवाज जोर-शोर से आवाज उठा रहे थे कि बेनजीर कश्मीर के मुद्दे पर हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं. नवाज शरीफ की इस अदावत का जवाब देने के लिए बेनजीर कश्मीर को लेकर संजीदा हो गई. आनन-फानन में वो पीओके की राजधानी मुजफ्फराबाद के दौरे पर निकल पड़ी. उस वक्त जम्मू-कश्मीर के गवर्नर जगमोहन मल्होत्रा हुआ करते थे.

सत्ता की चाह में बेनजीर ने भी गवर्नर जगमोहन को लेकर बिलावल की तरह ही एक भद्दा बयान दिया था. गवर्नर जगमोहन जम्मू-कश्मीर को मिले खास दर्जे का विरोध करने और आतंकवादियों-अलगाववादियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए मशहूर हुआ करते थे. बेनजीर ने यही नब्ज पकड़ी और कहा था कि वो जगमोहन को भाग मोहन में तब्दील कर डालेंगी, उन्हें काट कर उनको टुकड़ों में बंटवा देंगी. 

पाक अधिकृत कश्‍मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद के दौरे के दौरान 1 लाख लोगों की भीड़ के सामने बेनजीर ने जो कहा वो वाकई खतरनाक था. उनके इस भड़काऊ बयान से कश्मीरी पंडितों के पलायन और कत्लेआम की नौबत आ गई थी. ऐसे में गवर्नर मल्होत्रा से त्रस्त रहने वाले पाकिस्तान की बांछें खिल उठी थीं. इस दौरान दिवंगत बेनजीर ने अपने अब्बाजान पाक के पूर्व प्रधानमंत्री रहे जुल्फिकार अली भुट्टो के भारत के साथ संघर्ष का भी बखान किया.

नतीजा पीओके अंदर जो चुनावी पोस्टर लगे उसमें बेनजीर को पाक का मुस्तकबिल तक बताया गया. कहा जाता है कि उस वक्त पीओके के अंदर कश्मीर की तकदीर, बेनजीर, बेनजीर के नारे बुलंदथे और घरों -दीवारों में पोस्टर चस्पा हो रहे थे. उन्होंने इस दौरान राजीव गांधी को नानी याद दिलाने का बड़बोला बयान तक दिया था. 

बिलावल चले अम्मी की राह

एक रैली में बेनजीर भुट्टो ने वियतनाम और अफगानिस्तान की नजीर पेश कर कहा था कि वियतनाम सरीखा छोटा मुल्क सुपर पावरअमेरिका का सामना कर सकता है, अफगानिस्तान की आवाम सुपर पावरसे आंख से आंख मिला सकती है तो कश्मीर की आवाम भी अपना हक हासिल कर सकती है. उन्होंने ये तक कह डाला था कि कश्मीर की आवाम को मौत का खौफ नही है, उनकी रगों में मुजाहिदों का खून दौड़ता है, वो हजरत अली के वारिस मुसलमान हैं. वो लड़कर इज्जत के साथ जीना जानते सकते हैं. उनके इस बयान से जम्मू-कश्मीर में हिंसा भड़की थी और इस तरह बेनजीर अपनी सत्ता बचा ले गईं थीं.

ये काम उन्होंने पाकिस्तानी तानाशाह जनरल जिया उल हक जैसा किया. जब पाकिस्तान को भारत के साथ 3 जंग के बाद भी कश्मीर पर शिकस्त का सामना करना पड़ा तो सैन्य शासक जनरल जिया ने साजिशें कीं. नापाक इरादों वाला ऑपरेशन टोपैक शुरू किया. उसका मानना था कि कश्मीर घाटी में  धार्मिक कट्टरपंथ, आतंकवाद और अलगाववाद की आग लगाकर वो कश्मीर हासिल कर पाक आवाम का भरोसा पक्का कर सकते हैं. अब बिलावल भी अपनी अम्मी और हुकूमती पूर्वजों की राह पर चल पड़े हैं. 

 भारत में आतंकवाद और अलगाववाद भड़काने की कोशिश

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने गुजरात दंगों का कार्ड सोच-समझकर ही खेला है. इससे उनके दो मसले सधते हैं एक इस तरह का बयान देकर वो पाक के कट्टरपंथी मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में है तो दूसरी तरफ देश की  पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के चीफ इमरान खान के पक्ष में खड़ी आवाम को अपनी तरफ खींचते नजर आते हैं. इमरान खान इस वक्त वहां काफी सक्रिय है.

वो बड़ी रैलियां कर रहे हैं. जानलेवा हमले के बाद भी उनका जोश कम नहीं हुआ है. बिलावल भुट्टो की सरकार वाले सिंध में भी इमरान जोरदार प्रदर्शनों को अंजाम दे रहे हैं. अपनी अम्मी की तरह बिलावल को भी अपनी सरकार की नैय्या डूबती नजर आ रही है. उनके अब्बाजान आसिफ अली जरदारी भी इससे सकते में है.

यही वजह है कि अब भारत में धार्मिक उन्माद बढ़ाने की उनकी कोशिशें तेज है. उधर पाक की शहबाज सरकार हर मोर्चे पर नाकाम साबित हो रही है. उसकी गाड़ी सऊदी अरब जैसे देशों के लोन देने से खींच रही है. अगर ये देश अपना हाथ खींच ले तो  पाक दिवालियेपन की कगार पर खड़ा हो सकता है. यही सब है जो वो पाक की जनता को रिझाने और उनका ध्यान बांटने के लिए भारत की मुखालफत पर अधिक ध्यान दे रही है.  

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