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क्या मोदी विरोधी मोर्चा- पीएम बनने की चाहत, क्षेत्रीय राजनीति और महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ जाएगा?

उत्तर प्रदेश के दोनों सियासी दिग्गज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी की चाहत अनुसार 'संयुक्त मोर्चे' को लेकर भी अपना रास्ता खुला रखना चाहते हैं. ममता बनर्जी के फॉर्मूले पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहमत हो इसकी संभावना न के बराबर है.

नई दिल्ली: कर्नाटक के बेंगलूरू में आज बीजेपी विरोधियों का जमावड़ा लग रहा है. उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक के क्षेत्रीय क्षपत्र एक मंच पर नजर आएंगे. यहां से बनी सियासी तस्वीर ही 2019 लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों की राजनीतिक हैसियत तय करेगी. जो बीजेपी खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लहर के सामने 2014 लोकसभा चुनाव के बाद कहीं नहीं ठहर रही है. अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद भी कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की 'सांप्रदायिकता' के खिलाफ 'सेक्युलर' सरकार बन रही है. विपक्षी दलों को उम्मीद है कि इसी फॉर्मूले के आधार पर बीजेपी को 2019 में मजबूती से चुनौती दी जा सकती है. लेकिन यह सब आसान नहीं है.

दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव के बाद भी इसी जज्बे के साथ विपक्षी दलों का जुटान शुरू हुआ. लेकिन बाद में यह फॉर्मूला फुस्स हो गया. पहले लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू), कांग्रेस और वामदलों ने मिलकर महागठबंधन बनाया और बीजेपी को मोदी लहर के बावजूद पस्त कर दिया. शपथग्रहण में मोदी विरोधी एक मंच पर आए. लेकिन बाद में इसका हस्र क्या हुआ वह आज सब के सामने है. नीतीश कुमार ने लालू यादव के कथित 'भ्रष्टाचार' के आधार पर सरकार से इस्तीफा दे दिया और बाद में बीजेपी से मिलकर सरकार बना ली. दरअसल लालू यादव और नीतीश की राजनीतिक महात्वाकांक्षा से ज्यादा कुछ नहीं था. दोनों के अलग होने से महागठबंधन के लिए विपक्ष की कोशिश को झटका लगा.

इसकी बानगी देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी देखने को मिली. विधानसभा चुनाव से पहले लाख कोशिशों के बावजूद समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) साथ नहीं आ सकी. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी साथ आई भी तो फायदा कम और इसका साइड इफेक्ट ज्यादा हुआ. चुनाव में विपक्षी दल कहीं नहीं ठहरी और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई. हालांकि इस हार से एसपी और बीएसपी ने सबक लिया. गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उप चुनाव साथ आकर लड़ी और बीजेपी को उसके गढ़ में मात दिया. इन चुनावों में कांग्रेस साथ नहीं दिखी. अब 2019 लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं. दोनों दलों के साथ कांग्रेस, आरएलडी भी साथ आने की कोशिश करेगी. साफ है कि सीटों के बंटवारे पर पेंच फंसेगा. ऐसे में महागठबंधन का भविष्य क्या होगा यह कौन देख आया है?

प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन?

एसपी-बीएसपी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के चेहरे को लेकर भी आशंकित है. दोनों दलों के मुखिया खुद भी प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर नहीं देख रहे हों ऐसा भी कैसे हो सकता है. यह वजह रही की जब प्रधानमंत्री उम्मीदवार पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद का नाम आगे किया तो मायावती और अखिलेश मुहर लगाने तो दूर बयान देने से भी पीछे हटते दिखे. दोनों ने कहा कि यह चुनाव के बाद ही तय होगा. उत्तर प्रदेश के दोनों सियासी दिग्गज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी की चाहत अनुसार 'संयुक्त मोर्चे' को लेकर भी अपना रास्ता खुला रखना चाहते हैं. ममता बनर्जी के फॉर्मूले पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस सहमत हो इसकी संभावना न के बराबर है. कांग्रेस की कोशिश है कि उसके नेतृत्व में विपक्षी दल चुनाव लड़े. जबकि ममता 'वन इज टू वन' (जहां जो विपक्षी मजबूत सब उसका साथ दें) के फॉर्मूला पर लड़ना चाहती हैं. ममता ने भी प्रधानमंत्री के चेहरे को लेकर पत्ते नहीं खोले हैं.

ममता का संयुक्त मोर्चा

पश्चिम बंगाल में लगातार मजबूत हो रहीं ममता विपक्षी खेमे में सबसे अधिक सक्रिय रही हैं. उन्होंने कुछ समय पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव, आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी, नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी, करुणानिधि की पार्टी डीएमके, लालू यादव की पार्टी आरजेडी और नेशनल फ्रंट के नेताओं के साथ अलग-अलग मुलाकात की थी. उन्होंने इस दौरान सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी और उन्होंने मुलाकात के ठीक बाद कहा था कि मैं चाहती हूं कि कांग्रेस 'संयुक्त विपक्ष का हिस्सा बने.' वहीं एनसीपी, नेशनल कांफ्रेंस (एनसी), आरजेडी, वामदल संयुक्त मोर्चे के पक्ष में नहीं रही है. वह कांग्रेस के साथ ही लड़ना चाहती है.

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क्षेत्रीय राजनीतिक हित

विपक्षी दलों की मुख्य परेशानियों में स्थानीय राजनीति भी है. जैसे पश्चिम बंगाल में कांग्रेस, वामदल और टीएसमी एक दूसरे की धुर-विरोधी है. सत्ता के लिए हिंसा तक करने को उतारू है. ऐसे में राष्ट्रीय राजनीति आने पर डर है कि वह अपना जनाधार सूबे में खो देगी. इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा या सत्तारूढ़ दल को. यही तस्वीर उत्तर प्रदेश में भी बनती है. जहां समाजवादी पार्टी और बीएसपी आमने-सामने रही है. वहीं दक्षिण भारत के दो अहम राज्य आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में चंद्रशेखर राव की पार्टी टीआरएस और चंद्रबाबू नायडू की लड़ाई पुरानी है. यही वजह है कि कर्नाटक में आज होने वाले कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में चंद्रशेखर राव नजर नहीं आएंगे. नायडू कुमारस्वामी के मंच पर होंगे. चंद्रशेखर राव संयुक्त मोर्चा की भी आवाज बुलंद करते रहे हैं. वह कांग्रेस से भी दूरी बनाकर रखना चाहते हैं.

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प्रधानमंत्री की कुर्सी, क्षेत्रीय राजनीतिक हित, राजनीतिक महात्वाकांक्षा के बीच अब आज विपक्षी दलों के प्रमुख चेहरे यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, बीएसपी अध्यक्ष मायावती, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन, सीपीआईएम महासचिव सीताराम येचुरी, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, लालू यादव के बेटे और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, आरएलडी के संस्थापक अजीत सिंह, अभिनेता से नेता बने दक्षिण फिल्मों को सुपरस्टार कमल हसन, डीएमके के नेता एम के स्टालिन कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में पहुंच रहे हैं. तो सिर्फ एकजुटता की एक कोशिश ही माना जाना जाएगा न की मोदी विरोध में बना एक अंतिम सियासी तस्वीर.ABP न्यूज़ का

वीडियो शेयर करते हुए राहुल बोले- रूह कांप गई, RSS-BJP को हराएंगे

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