कोरोना का कहर झेल रही मुंबई के गोरई गांव में एक भी केस नहीं, जानें आखिर ये कैसे संभव हुआ?
कोरोना की शुरुआत से लेकर आज तक गोरई गांव ग्रीन जोन में बना हुआ है. इस गांव को कोरोना से बचाने के लिए यहां की महिलाओं ने मोर्चा संभाला है.
मुंबईः मुंबई के समुद्री तट के एक हिस्से पर गोरई गांव बसा है. जहां पूरे मुंबई में कोरोना से हाहाकार मचा हुआ है, वहीं गोरई में एक भी कोरोना का मामला नहीं आया है. कोरोना की शुरुआत से लेकर आज तक यह ग्रीन जोन बना हुआ है. दरअसल गोरई की महिलाओं ने सड़कों पर आकर मोर्चा संभाला है और इस गांव को बीमारी से बचाया है.
मुंबई से मीरा भयंदर से होकर एक रास्ता जाता है. तटवर्ती इलाके गोरई की ओर अलग-अलग हिस्सों से कुल 3 रास्ते हैं, जो गांव की तरफ बढ़ते हैं. पिछले 3 महीने से लॉकडाउन लगने के बाद से इस गांव की महिलाओं ने अपने इलाके को कोरोना से बचाने के लिए कुछ ऐसा किया, जिसने मुंबई में फैली महामारी के बीच गोरई को बचा के रखा.
स्थानीय चर्च के साथ संवाद करते हुए इलाके में रहने वाली महिलाओं ने दो 2 घंटे की शिफ्ट में काम किया. गांव की महिलाएं गांव के रास्तों पर बैरिकेडिंग करके बैठतीं और लोगों को आने-जाने से रोकती थीं. वैसे तो यह पुलिस बैरिकेड थी पर ग्रामीण अंचल होने के कारण पुलिस सीमित थी. यह समुद्र तट का इलाका है तो टूरिस्ट भी घूमने फिरने आ जाया करते थे, मुंबई से सैर सपाटे के लिए लोग आते थे. इन्हें रोकने के लिए महिलाओं ने आपस में ही समूह बनाया और इलाके की रक्षा के लिए सड़कों पर आ गईं.
दरअसल एक स्थानीय चर्च के पादरी फादर एडवर्ट ने कोरोना की सुगबुगाहट होते ही इलाके के 15 हजार लोगों की सुरक्षा के लिए पंद्रह सौ परिवारों के संग एक बैठक की और तय हुआ कि इलाके की महिलाएं शिफ्ट में बैरिकेडिंग पर चौकीदारी करेंगी और बाहर के लोगों को नहीं आने देंगी.
इस इलाके में कैथोलिक क्रिश्चियन ज्यादा रहते हैं, जिनका पेशा मछली पकड़ने का है. कोरोना के समय तय किया गया कि जो भी फल सब्जी, मछली है वह अपने इलाके में ही बेचेंगे कोई बाहर नहीं जाएगा. इलाके की लड़कियों की शादी आस-पास के गांव में हुई है, उन्हें भी इस बीच गांव में नहीं आने दिया गया. करोना कि खिलाफ सख्ती के संग मुहिम चलाई गई और परिणाम यह निकला कि आज इस इलाके में कोई बीमारी नहीं है और इलाका ग्रीन जोन में है.
शीला नाम की एक महिला ने कहा कि पूरे गांव की महिलाओं और जेंट्स ने मिलकर गांव में बैरिकेडिंग की थी, ताकि गांव की रक्षा हो सके. हमारे गांव के चर्च ने निर्णय लिया और हमें भी लगा कि हमारा गांव ग्रीन जोन में है, उसे बचाना है तो बैरिकेड लगानी पड़ेगी. पुलिस वालों का साथ देने के लिए हम खुद रस्ते पर आए. शीला ने कहा कि इस काम में सभी धर्म, संप्रदाय और वर्ग के लोग जुटे थे. उन्होंने बताया कि 2-2 घंटे की शिफ्ट लगाई गई थी. गांव के लोग दो 2 घंटे की शिफ्ट के लिए सड़कों पर निकलते थे, ऐसा करके पूरा दिन सड़कों पर तैनात रहते थे. ऐसा करने से न तो कोई बाहर से आ पाया और न ही कोई बाहर जा पाया.
शीला ने कहा, ‘हमारे गांव की जिन लड़कियों की आस-पास के इलाकों शादी हुई है उन्हें भी आने से मना कर दिया गया. सब ने मिलकर तय किया कि सब अपनी सब्जी, अपनी मछली यहीं पर बेचेंगे. इससे हमारा घाटा तो हुआ, लेकिन हमारे यहां कोई बीमार भी नहीं हुआ. उन्होंने बताया कि घर में सुबह खाना पका कर निकलते थे और फिर 2 घंटे की शिफ्ट में सड़कों पर तैनात रहते थे और उसके बाद मछली बेचने जाते थे. उन्होंने कहा कि यहां आने वाले टूरिस्टों को समझाते थे कि यह गांव ग्रीन जोन में आता है, इसे बचाए रखना जरूरी है. हमारी बात सुनकर वे लोग वापस भी चले जाते थे.
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