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NDA के कुनबे में शामिल 38 में से 25 दलों का एक भी लोकसभा सांसद नहीं, फिर क्‍यों मोदी-शाह ने खेला इन पर दांव?

NDA Strength Election 2024: बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए में भले ही 38 दल शामिल हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर दलों की राष्ट्रीय राजनीति में कोई भी हिस्सेदारी नहीं है.

NDA Strength Election 2024: विपक्षी दलों के साथ ही एनडीए ने भी 18 जुलाई को अपनी ताकत का प्रदर्शन किया. बीजेपी ने एनडीए से जुड़े 38 दलों को एक साथ खड़ा कर ये साबित करने की कोशिश की है कि विपक्षी एकता के सामने उनकी ताकत ज्यादा बड़ी है. हालांकि इस जमावड़े को लेकर कांग्रेस ने तंज कसा और पूछा कि इनमें से सभी पार्टियों का रजिस्ट्रेशन हुआ भी है या नहीं? आंकड़े भी गवाही दे रहे हैं कि एनडीए के कुनबे में शामिल कई दलों के पास एक भी लोकसभा सीट नहीं है. अब सवाल ये है कि मोदी-शाह ने इन दलों को अपने साथ लेकर क्या दांव खेला है? आइए समझते हैं...

विपक्ष के 26 के मुकाबले 38 दल
दरअसल कुनबे में ज्यादा से ज्यादा दलों की संख्या को दिखाना बीजेपी की एक रणनीति भी मानी जा रही है. क्योंकि विपक्ष ने अपनी ताकत को बढ़ाया और 26 दलों को एक ही बैनर के नीचे ले आए, ऐसे में बीजेपी को अपना आंकड़ा विपक्ष से बड़ा करना था, इसीलिए तमाम छोटे दलों को भी न्योता दिया गया और उन्हें एनडीए का हिस्सा बताया. इससे मानसिक तौर पर कहीं न कहीं तमाम मोर्चों पर बीजेपी की ताकत ही ज्यादा नजर आएगी. 

एनडीए में शामिल दलों की ताकत
अब बात करते हैं कि बीजेपी के साथ जुड़े इन दलों का प्रतिनिधित्व कितना है और लोकसभा में कितनी हिस्सेदारी है. एनडीए में शामिल कई दल ऐसे हैं, जिनकी राष्ट्रीय राजनीति तक कोई भी पहुंच नहीं है. इसके अलावा कई ऐसे दल भी हैं, जिन्हें पिछले लोकसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं हुई. द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक इन 37 दलों का पिछले लोकसभा चुनाव में वोट शेयर महज 7 फीसदी है. वहीं सीटों की अगर बात करें तो 2019 में इन दलों के हिस्से में सिर्फ 29 सीटें हीं आईं. जबकि बीजेपी ने अकेले 303 सीटें जीतकर 37.3 वोट शेयर हासिल किया था. 

16 दलों को नहीं मिली एक भी लोकसभा सीट
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के 37 सहयोगी दलों में से 9 दल तो ऐसे हैं, जिन्होंने कोई उम्मीदवार ही नहीं उतारा. वहीं 16 ऐसे दल हैं जिन्हें लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली. यानी 37 दलों में से 25 दलों का लोकसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. इनके अलावा 7 ऐसे दल हैं, जिन्हें लोकसभा की एक-एक ही सीट मिली. इसके अलावा एकनाथ शिंदे की शिवसेना के पास 13 सांसद हैं, वहीं अपना दल (सोनेलाल) के 2 और लोजपा के 6 लोकसभा सांसद हैं. एनसीपी के अजित पवार की एंट्री के बाद एनडीए की कुल संख्या 332 तक पहुंच चुकी है. यानी बीजेपी के नए सहयोगी एकनाथ शिंदे ही बीजेपी के सबसे बड़े सहयोगी हैं.

इन दलों ने नहीं लड़ा लोकसभा चुनाव
एनडीए में शामिल वो 9 दल जिन्होंने 2019 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा, उनमें महाराष्ट्र की जन सुराज्य शक्ति, गोवा स्थित महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी), यूपी की निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी), पंजाब की शिअद संयुक्त (ढींडसा), मणिपुर की कुकी पीपुल्स गठबंधन, मेघालय की हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, हरियाणा लोकहित पार्टी, केरल कामराज कांग्रेस और तमिलनाडु स्थित पुथिया तमिलगम शामिल हैं. 

इन दलों के महज एक-एक सांसद
अब उन दलों के नाम देखते हैं जिनके महज एक-एक लोकसभा सांसद हैं. इनमें मेघालय की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), नागालैंड के सीएम नेफ्यू रियो के नेतृत्व वाली नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी), ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (एजेएसयू), सिक्किम क्रांति मोर्चा (एसकेएम), नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) , ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) और मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) जैसे दल शामिल हैं. 

छोटे दलों पर बीजेपी क्यों खेल रही दांव?
आंकड़ों के बाद अब उस सवाल का जवाब जान लेते हैं कि आखिर बीजेपी ने छोटे दलों पर ये दांव क्यों खेला है. पहला कारण हम आपको बता चुके हैं कि इससे नंबर गेम में बीजेपी विपक्ष से आगे नजर आएगी. वहीं दूसरा कारण है कि ये छोटे दल उन सीटों पर अहम भूमिका निभा सकते हैं, जहां 2019 में जीत-हार का मार्जिन काफी कम था. 

साउथ में बीजेपी अपना खाता खोलने के लिए पिछले कई सालों से तरस रही है, पिछले चुनाव में भी तमिलनाडु में बीजेपी का खाता नहीं खुल पाया. वहीं 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को महज 4 सीटें मिल पाईं. इसीलिए AIADMK बीजेपी को पैर जमाने में मदद कर सकती है. जो 66 विधायकों के साथ तमिलनाडु में मुख्य विपक्षी दल है. 

बाकी राज्यों में भी छोटे दलों से मिलेगा फायदा
इसी तरह बाकी राज्यों में भी इन छोटे दलों का जिलों के स्तर पर काफी प्रभाव है. जो बीजेपी के लिए कुछ सीटों पर फायदा पहुंचा सकता है. उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महाराष्ट्र में अजित पवार, एकनाथ शिंदे और रामदास अठावले, असम में असम गण परिषद, त्रिपुरा में इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी), हरियाणा में जेजेपी और पंजाब में शिअद (ढींडसा) बीजेपी को मिशन 2024 में मदद करेंगे. 

ये भी पढ़ें - Opposition Meeting: 'INDIA' की बैठक के बाद इस वजह से नाराज जयंत चौधरी? खोले कई राज, यूपी में बढ़ाई हलचल

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