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मुंबई: बारिश लाई ठंडक लेकिन ‘सामना’ ने सियासी तापमान गर्माया

6 महीने पहले उद्धव ठाकरे सरकार बनने के बाद ये पहली बार है जब शिवसेना ने इतने आक्रमक तरीके से कांग्रेस के खिलाफ प्रतिक्रिया दी है.

मुंबईः महाराष्ट्र सरकार के 2 घटक दल कांग्रेस और शिवसेना के बीच विवाद उस वक्त और ज्यादा गर्मा गया जब शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उसे पुरानी खटिया कहा. 6 महीने पहले ठाकरे सरकार बनने के बाद ये पहली बार है जब शिवसेना ने इतने आक्रमक तरीके से कांग्रेस के खिलाफ प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस का आरोप है कि सरकार में उसके साथ सौतेला व्यावहार किया जा रहा है.

मुंबई में मंगलवार सुबह से हलकी बारिश हो रही थी जिससे महौल में ठंडक आ गई, लेकिन इसी के साथ ‘सामना’ अखबार में छपे संपादकीय ने महाराष्ट्र का सियासी माहौल गर्म कर दिया. ‘सामना’ में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए लिखा गया, “कांग्रेस पार्टी भी अच्छा काम कर रही है, लेकिन समय-समय पर पुरानी खटिया रह-रह कर कुरकुर की आवाज करती है. खटिया पुरानी है लेकिन इसकी एक ऐतिहासिक विरासत है. इस पुरानी खाट पर करवट बदलने वाले लोग भी बहुत हैं. इसलिए यह कुरकुर महसूस होने लगी है. मुख्यमंत्री ठाकरे को आघाड़ी सरकार में ऐसी कुरकुराहट को सहन करने की तैयारी रखनी चाहिए. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोरात का कुरकुराना संयमित होता है. घर में भाई-भाई में झगड़ा होता है. यहां तो तीन दलों की सरकार है. थोड़ी बहुत कुरकुर तो होगी ही. फिर भी मुख्यमंत्री को चव्हाण-थोरात की बात सुन ही लेनी चाहिए क्योंकि सरकार का तीसरा पैर कांग्रेस का है.''

‘सामना’ में कहा गया, "राज्यपाल द्वारा नियुक्त 12 विधान परिषद सीटों के समान वितरण का मुद्दा है. वो मामला कुलबुलाहट या कुरकुर का नहीं है. विधानसभा में कांग्रेस विधायकों की संख्या 44, शिवसेना 56 और अन्य सहयोगी दलों के साथ 64 और राष्ट्रवादी कांग्रेस की 54 है. इसलिए इसी अनुपात में आवंटन होने में कोई समस्या नहीं है. शिवसेना ने सत्ता के वितरण में सबसे बड़ा त्याग किया है. कांग्रेस-एनसीपी ने विधानसभा अध्यक्ष के पद पर विवाद शुरू किया. श्री शरद पवार थोड़ा नाराज हुए, तो उन्होंने यह कहकर विवाद सुलझा दिया कि कांग्रेस विधानसभा अध्यक्ष पद ले ले और बदले में शिवसेना अपने हिस्से का एक कैबिनेट मंत्री का पद राष्ट्रवादी को दे, इस पर मामला सुलझ गया. कांग्रेस के राज्यमंत्रियों का प्रमोशन करके दो कैबिनेट दिए गए. समान सत्ता वितरण में भी हिस्से में इतना नहीं आता. लेकिन मुख्यमंत्री ने बेझिझक होकर सब दिया और इसके बाद 6 महीने किसी की खाट में कुरकुर की आवाज नहीं हुई. तबादले, प्रमोशन, पसंदीदा सचिव, यह नहीं चाहिए वगैरह यह सब सरकार में हमेशा चलता रहता है. श्री उद्धव ठाकरे को सत्ता का लोभ नहीं. राजनीति अंततः सत्ता के लिए ही है और किसी को सत्ता नहीं चाहिये ऐसा नहीं है लेकिन उद्धव ठाकरे ऐसे नेता नहीं हैं, जो सत्ता के लिए कुछ भी करेंगे”.

दरअसल शिव सेना की ओर से ये तीखी प्रतिक्रिया कांग्रेस की ओर से लगातार किए गए हमलों के बाद आई है. राहुल गांधी से लेकर बालासहाब थोरात और अशोक चव्हाण बार बार अपने बयानों के जरिए सार्वजनिक तौर पर ये जता चुके हैं कि ठाकरे सरकार में उनके साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है, अहम फैसले लिए जाते वक्त उन्हें तवज्जो नहीं दी जाती और उनके साथ समान व्यवहार नहीं किया जा रहा. अब कांग्रेस की ताजा चिंता विधान परिषद की 12 सीटों को लेकर है जिन्हें राज्यपाल सरकार की सिफारिश पर मनोनीत करते हैं.

महाराष्ट्र विधान परिषद की 12 सीटें हाल ही में भरीं जानीं हैं. कांग्रेस चाहती है कि इन सीटों का बंटवारा समान तौर पर हो, लेकिन शिव सेना का मानना है कि विधान सभा में जिसके पास जितनी सीटें हैं, उसे उतनी सीटें मिलनीं चाहिए. विधान सभा में शिव सेना के पास 56 सीटें हैं, एनसीपी के पास 54 सीटें हैं और कांग्रेस के पास 44 सीटें हैं.

विधान सभा में ज्यादा सीटें होने के कारण विधान परिषद में भी शिवसेना ज्यादा सीटें चाहती है. शिवसेना के आक्रमक रुख पर जवाब देते हुए कांग्रेस के नेता ने कड़ी प्रतिक्रिया देना टाला और कहा कि सामना का संपादकीय अधूरी जानकारी पर लिखा गया है. हालांकि बालासाहब थोरात ने नरम प्रतिक्रिया दी लेकिन पार्टी के पूर्व सांसद और मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम शिवसेना पर बरस पडे. निरूपम ने कहा कि शिवसेना को ये नहीं भूलना चाहिये कि अगर आज राज्य में उनका कोई मुख्यमंत्री बना है तो वो कांग्रेस की वजह से ही बना है. ये शिवसेना का चरित्र है कि वो सालों से बीजेपी के सामने कटोरा लेकर खडी रही और आज कांग्रेस की ऐसी दुर्गति हो गई है कि वो शिव सेना के सामने कटोरा लेकर खडी है. मुख्यमंत्री के पास विरोधियों से मिलने का समय है लेकिन कांग्रेस के नेताओं से मिलने का वक्त नहीं.

ठाकरे सरकार के बीते 6 महीने के दौरान ऐसे कुछेक मौके आये हैं जब तीनों घटक दलों के बीच मनमुटाव हुआ हो, लेकिन ये पहली बार है कि इनके बीच की आपसी कड़वाहट सार्वजनिक हो रही है. बहरहाल सभी पक्ष यही कह रहे हैं कि इस विवाद से सरकार को कोई खतरा नहीं है और बातचीत से झगड़ा निपटा लिया जायेगा.

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