मद्रास HC के जज के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव पर बोले पूर्व जस्टिस- ये जजों को डराने की कोशिश
के के त्रिवेदी ने कहा कि हम सब इस बात को लेकर एकमत हैं कि जिस प्रकार की यह कार्यवाही की गई है, वह पूरी तरह से गलत है, खासकर तब जब संबंधित विषय अभी न्यायालय के समक्ष लंबित है.

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस के.के. त्रिवेदी ने सोमवार (15 दिसंबर, 2025) को दावा किया कि विपक्षी दलों ने राजनीतिक उद्देश्य से मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया है और यह दबाव बनाकर किसी विशेष पक्ष में फैसला कराने की कोशिश है.
विपक्ष ने पिछले दिनों जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ कथित दुराचार के आरोप में महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को नोटिस सौंपा है. इस नोटिस पर कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) और समाजवादी पार्टी सहित विभिन्न दलों के 107 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं.
सांसदों ने आरोप लगाया है कि जस्टिस स्वामीनाथन के कामकाज ने न्यायपालिका की निष्पक्षता, पारदर्शिता और धर्मनिरपेक्ष प्रकृति पर सवाल खड़े किए हैं. यह महाभियोग प्रस्ताव मदुरै के तिरुपरनकुंड्रम पहाड़ी पर कार्तिगई दीपम प्रज्वलित करने के मुद्दे पर उनके फैसले के खिलाफ है.
विपक्ष के इस नोटिस के बाद सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट्स के तकरीबन 56 पूर्व जजों ने एक खुला पत्र जारी कर इस महाभियोग प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा था कि यह कदम न्यायाधीशों पर राजनीतिक और वैचारिक दबाव बनाने और उन्हें डराने की कोशिश है.
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले पूर्व जस्टिस के के त्रिवेदी ने ‘पीटीआई वीडियो’ से कहा, 'हम सब इस बात को लेकर एकमत हैं कि जिस प्रकार की यह कार्यवाही की गई है, वह पूरी तरह से गलत है, खासकर तब जब संबंधित विषय अभी न्यायालय के समक्ष लंबित है.' उन्होंने कहा कि इस कदम का कोई भी सकारात्मक उद्देश्य नहीं हो सकता. उन्होंने कहा, 'या तो यह कार्यवाही केवल राजनीतिक उद्देश्यों से की गई है या फिर न्यायाधीश पर दबाव बनाकर किसी विशेष पक्ष में फैसला कराने की कोशिश है.'
उन्होंने स्पष्ट किया कि दोनों ही परिस्थितियां किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं हैं क्योंकि इससे पूरी न्यायपालिका और भारतीय न्यायिक तंत्र की प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति पहुंचती है तथा लोगों का विश्वास भी कमजोर होता है. पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीशों के खिलाफ जिस तरह महाभियोग की बात की जा रही है, उसके लिए संविधान में स्पष्ट प्रावधान हैं.
उन्होंने कहा कि संविधान के प्रावधानों में यह व्यवस्था है कि केवल सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर ही किसी न्यायाधीश को पद से हटाने का प्रस्ताव लाया जा सकता है. उन्होंने सवाल उठाया कि जो बातें कानून में मान्य ही नहीं हैं, उनके आधार पर महाभियोग प्रस्ताव कैसे लाया जा सकता है.
उन्होंने कहा, 'यह पूरा कदम न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का प्रयास प्रतीत होता है और इसे न्यायाधीश पर दबाव बनाने की कोशिश के रूप में भी देखा जा सकता है.' पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि दूसरों पर उंगली उठाने से पहले हर व्यक्ति को स्वयं को देखना चाहिए.
उन्होंने सवाल किया, 'जिन लोगों ने यह महाभियोग प्रस्ताव पेश किया है, क्या वे हर तरह से पाक-साफ हैं? यदि नहीं, तो फिर ऐसा कदम उठाने का नैतिक अधिकार उन्हें कैसे है?' सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने भी विपक्ष के इस कदम को हिंदू विरोधी भावना को दर्शाने की कोशिश के साथ ही न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अपमान बताया है.
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