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'बूढ़ी शिवसेना', वे 5 मजबूरियां जिनके चलते एकनाथ शिंदे को बनना पड़ा डिप्टी सीएम

Maharashtra Oath Ceremony: एकनाथ शिंदे ने बीजेपी के साथ गठबंधन करते हुए डिप्टी सीएम पद की शपथ ली. सत्ता में बने रहने की मजबूरी, शिवसेना की कमजोरी और महाराष्ट्र की आर्थिक ताकत ने यह निर्णय लिया.

Maharashtra Oath Ceremony: महाराष्ट्र में हाल ही में हुए राजनीतिक घटनाक्रम के बाद एकनाथ शिंदे ने फिर से डिप्टी सीएम पद की शपथ ली. शिवसेना (शिंदे गुट) और बीजेपी के इस गठजोड़ ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सत्ता की राजनीति में मजबूरियों का खेल अहम होता है. शिंदे गुट के सामने ऐसी कई मजबूरियां थीं, जिनके चलते उन्हें डिप्टी सीएम पद को स्वीकार करना पड़ा. आइए जानते हैं वो पांच प्रमुख संभावित कारण, जिनकी वजह से एकनाथ शिंदे को यह फैसला लेना पड़ा.

राजनीतिक पंडितों की मानें तो एकनाथ शिंदे के सामने बीजेपी की शर्तें मानने के अलावा कोई चारा नहीं था. महाराष्ट्र में बीजेपी के पास सबसे ज्यादा विधायक हैं और शिंदे गुट की ताकत इतनी नहीं थी कि वे खुद सत्ता में रह पाते. ऐसे में बीजेपी से अलग होने का मतलब था राजनीतिक हाशिये पर आना, जो शिंदे नहीं चाहते थे.

गठबंधन की मजबूरी: न घर के रहते, न घाट के रहते

जानकारों का ये भी मानना है कि शिंदे के पास बीजेपी का साथ छोड़कर किसी अन्य दल के साथ जाने का विकल्प भी नहीं था. अगर वे गठबंधन तोड़ते तो बीजेपी अकेले ही बहुमत जुटा लेती. ऐसे में शिंदे के पास यह समझौता करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा कि वे बीजेपी के साथ बने रहें और डिप्टी सीएम पद स्वीकार करें.

महाराष्ट्र की आर्थिक ताकत का आकर्षण

एक वजह ये भी रही होगी कि महाराष्ट्र भारत की कुल जीडीपी में लगभग 14 प्रतिशत का योगदान देता है और इंडस्ट्रियल मैन्युफैक्चरिंग में इसकी हिस्सेदारी 13.8 प्रतिशत है. ऐसे में हर राजनीतिक दल महाराष्ट्र की सत्ता में रहकर ज्यादा से ज्यादा मंत्रालय अपने पास रखना चाहता है. शिंदे भी इस सत्ता के हिस्से को खोना नहीं चाहते थे.

सत्ता के बिना संगठन चलाना मुश्किल

महाराष्ट्र की राजनीति पर नजर रखने वाले सियासी जानकार मानते हैं कि आने वाले चुनावों में शिंदे गुट को बहुमत से जीतने के लिए सत्ता में बने रहना जरूरी है. शिवसेना की दोनों शाखाएं शिंदे और उद्धव गुट अब कमजोर हो चुकी हैं. शिवसैनिकों की औसत उम्र पचास-साठ साल के ऊपर है. संगठन को जीवित रखने के लिए सत्ता का सहारा लेना शिंदे की सबसे बड़ी मजबूरी बन चुका है.

सत्ता से अलग रहने का स्वभाव नहीं

कुछ जानकार ये भी कह रहे हैं कि शिंदे गुट का गठन सत्ता की लालसा में हुआ था, न कि हिंदुत्व या विचारधारा के कारण. सत्ता में बने रहना ही उनकी प्राथमिकता है और इसीलिए बीजेपी के साथ रहते हुए डिप्टी सीएम पद पर बने रहना उनके लिए अनिवार्य हो गया. सत्ता से अलग रहना उनके लिए विकल्प नहीं है.

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