'गांधी जी की दूसरी बार हत्या, नेहरू के बाद अब...', MNREGA का नाम बदलने पर पी. चिदंबरम का बड़ा बयान
पी चिदंबरम ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि कई सालों तक जवाहरलाल नेहरू को बदनाम करने के बाद अब वे महात्मा गांधी को निशाना बना रहे हैं. कृषि मंत्री ने लोकसभा में जी राम जी बिल पेश किया.

केंद्र सरकार की ओर से लाए गए 'विकसित भारत जी राम जी बिल' को लेकर कांग्रेस मोदी सरकार पर हमलावर है. कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस बिल पर गंभीर आपत्तियां जताते हुए इसे राज्यों के अधिकारों और महात्मा गांधी के सम्मान से जुड़ा मुद्दा बताया है. कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम (MNREGA) का नाम बदलना राष्ट्रपिता की दूसरी हत्या के समान है.
मनरेगा के तहत सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिनों के काम की गारंटी देती है और काम उपलब्ध न होने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता भी देती है. नए बिल में 100 दिनों की गारंटी को बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रस्ताव है और अन्य दो शर्तें वैसी ही है.
'नेहरू के बाद महात्मा गांधी को निशाना बना रहे'
विपक्ष का आरोप है कि यह बिल सिर्फ नाम बदलने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके जरिए योजना की मूल संरचना में बड़े बदलाव किए जा रहे हैं. एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में पी चिदंबरम ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा, "कई सालों तक जवाहरलाल नेहरू को बदनाम करने के बाद अब वे महात्मा गांधी को निशाना बना रहे हैं. केंद्र सरकार चाहती है कि बच्चों को महात्मा गांधी के बारे में पता नहीं होना चाहिए. वे भारत की जनता की स्मृति से महात्मा गांधी का नाम मिटा देना चाहते हैं."
बीजेपी का कांग्रेस पर निशाना
बीजेपी ने बुधवार (17 दिसंबर 2025) को लोकसभा में कहा कि 'विकसित भारत-जी राम जी विधेयक, 2025’ देश में रामराज्य लाने और महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने के लिए लाया गया है. ग्रामीण विकास और पंचायती राज संबंधी संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष सप्तगिरि शंकर उलाका ने बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर ‘विकसित भारत-जी राम जी विधेयक, 2025’ को गहन विचार-विमर्श के लिए संबंधित स्थायी समिति के पास भेजने का आग्रह किया.
ओडिशा के कोरापुट से कांग्रेस सांसद उलाका ने लोकसभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा, "यह विधेयक अधिकारों पर आधारित हकदारी को बदलकर वैधानिक गारंटियों की प्रकृति को मौलिक रूप से बदल रहा है. इससे संवैधानिक औचित्य, न्यायोचित अधिकारों के कमजोर होने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के संबंध में गंभीर चिंताएं पैदा होती हैं."
Source: IOCL





















