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Mahakumbh Stampede: चूक कहां हुई... प्रशासन की कितनी गलती? जानें महाकुंभ में भगदड़ वाली रात क्या-क्या हुआ

Mahakumbh Stampede: महाकुंभ में दूसरे शाही स्नान के पहले मची भगदड़ के बाद प्रशासन की भीड़ प्रबंधन व्यवथाओं पर सवाल खड़े हो रहे हैं. प्रत्यक्षदर्शियों के बयान अव्यवस्थाओं की पोल खोलते नजर आ रहे हैं.

Mahakumbh Stampede: महाकुंभ में मौनी अमावस्या (29 जनवरी) को हुए दूसरे शाही स्नान के ठीक पहले मची भगदड़ में 30 मौतें हुई. संगम घाट पर हुई इस भगदड़ की तस्वीरें दिल दहला देने वाली रहीं. तस्वीरों में कहीं कपड़े, कंबल, बैग और जुते-चप्पलों के ढेर में अपने को तलाशते लोग दिखे तो कहीं अस्पताल में फर्श पर पड़ी एक दर्जन से ज्यादा लाशें दिखीं. परिजनों की रोती-बिलखती और अपनों को सीपीआर देती तस्वीरें भी विचलित करती रहीं. इस हादसे ने अब तक शांतिपूर्ण और सफल तरीके से चल रहे महाकुंभ में व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े कर दिए. सवाल तब और खड़े होने लगे, जब धीरे-धीरे प्रत्यक्षदर्शियों के बयान, हादसे के वीडियो और मौके पर मौजूद रिपोर्टर्स की ग्राउंड रिपोर्ट्स सामने आईं.

इस पूरे हादसे में कल तक यानी बुधवार तक बार-बार यही कहा जा रहा था कि लोगों ने प्रशासन की बात नहीं सुनी और बैरीकेड तोड़कर संगम पहुंच गए और वहां लेटे लोगों को कुचल दिया. गलती उन लोगों की भी बताई जा रही थी जो संगम घाट पर आराम कर रहे थे. हालांकि अब जब ज्यादा से ज्यादा जानकारियां इकट्ठा हो गई हैं तो प्रशासन कठघरे में आता जा रहा है.

मौनी अमावस्या पर पहले से ही 7 से 8 करोड़ लोगों के आने का अनुमान था और इतने ही लोग आए भी. किसी भी महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर स्नान सबसे महत्वपूर्ण माना गया है और फिर इस बार तो 144 साल बाद पूर्ण महाकुंभ का संयोग भी था. माना जाता रहा है कि मौनी अमावस्या पर संगम में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसीलिए इस दिन बड़ी तादाद में श्रद्धालू महाकुंभ भी पहुंचे और गंगा और यमूना के बाकी घाटों पर स्नान करने के बजाय संगम घाट पर ही स्नान के लिए इकट्ठे होते रहे.

प्रशासन ने पांटून पुल बंद कर दिए
प्रशासन ने कई बार लोगों से निवेदन किया कि जहां हैं वहीं पास के घाटों पर स्नान कर लें लेकिन लोगों को मान्यताओं के अनुसार संगम में ही स्नान करना था. इसलिए लोग संगम नोज की तरफ बढ़ते चले गए. प्रशासन ने ऐसे में संगम पर भीड़ कम करने के लिए कई रास्ते बंद कर दिए. यानी कई पांटून पुल और रास्ते जो संगम की ओर जा रहे थे उन्हें बंद कर दिया गया. लोगों के पास संगम की ओर जाने के लिए इक्का-दुक्का रास्ते बचे. वो भी घूमा-फिराकर जाने वाले रास्ते थे, जिन पर चलकर संगम जाते-जाते हर किसी का थकना निश्चित था. ऐसे में इन रास्तों पर भीड़ बढ़ती गई. संगम पर पहले से मौजूद लोगों को भी वहां से बाहर निकलने के लिए रास्ते नहीं मिले. ऐसे में संगम घाट के करीब भी भीड़ इकट्ठी होती गई. प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो 500 मीटर के इलाके में 10 लाख लोग इकट्ठा हो गए. 

जन सैलाब बढ़ता रहा लेकिन रास्ते नहीं खुले
संगम पर भीड़, वहां आने-जाने वाले रास्तों पर जन सैलाब और इसी बीच कई संख्या में लोग संगम घाट के ठीक पहले आराम भी कर रहे थे. यह वह लोग थे जो रास्ते बंद होने के कारण ही लंबी दूरी तय करके संगम तक पहुंचे थे और थोड़ा आराम कर रहे थे, ताकि ब्रह्म मुहूर्त शुरू होते ही संगम पर स्नान कर घर को निकल जाएं. वहीं संगम पर स्नान कर वापस निकलने वालों की भी तादाद बढ़ती जा रही थी लेकिन प्रशासन ने बंद किए रास्ते नहीं खोले. इस वजह लोग ठंसाठंस इकट्ठे होते गए.

'भीड़ पर ध्यान देने वाला कोई नहीं था'
प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि प्रशासन ने सारे रास्ते बंद कर रखे थे और जो रास्ता था वहां इतनी भीड़ थी कि कुछ समझ नहीं आ रहा था. लोगों को बाहर निकलने की जगह तक नहीं मिल रही थी. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जब संगम पर भीड़ बढ़ी हुई थी और रास्ते भी ज्यादातर बंद थे, तो प्रशासनिक अधिकारी रास्ते खोलने की बजाय लोगों को डरा रहे थे कि शाही स्नान शुरू होने वाला है जल्दी हठो. अब भीड़ में लोग हटे भी तो कहां हटे.

कब बिगड़ी स्थिति?
घटना स्थल पर मौजूद लोगों का कहना है कि जब संगम की ओर जाने वाले रास्तों पर ठंसाठस भीड़ होने लगी और लोगों का दम घुटने लगा तो लोगों ने बैरीकेड तोड़कर बाहर निकलना शुरू किया. बैरीकेड टूटने से पूरी भीड़ इन बैरीकेडों के पास आराम कर रहे लोगों के ऊपर जा गिरी. पुलिस भी भीड़ को नहीं संभाल पाई. यही कारण है कि संगम में 30 लोगों को जान गंवानी पड़ी और बड़ी संख्या में लोग घायल भी हुए और गूम भी हो गए.

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