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भारत में कैसे होता है राज्यों के बीच सीमा बंटवारा? समझिए क्यों आसान नहीं है कर्नाटक-महाराष्ट्र का विवाद सुलझाना

कर्नाटक-महाराष्ट्र के बीच सीमा विवाद को सुलझाना आसान नहीं है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है, इसके बावजूद कई तकनीकी मसला अभी भी उलझा है. केंद्र ने इससे खुद को अलग कर लिया है, जिससे मुद्दा और उलझ गया है.

गृह मंत्री अमित शाह की हिदायत के बावजूद कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच सीमा विवाद जारी है. मंगलवार को महाराष्ट्र विधानसभा में प्रस्ताव पेश करते हुए राज्य के सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि कर्नाटक से एक-एक इंच जमीन वापस लेंगे. 

इधर, कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने भी जवाबी हमला किया और कहा कि एक इंच जमीन नहीं देंगे. दोनों राज्यों के बीच करीब एक महीने से सीमा को लेकर गतिरोध जारी है.

1957 से जारी कर्नाटक-महाराष्ट्र का सीमा विवाद का मसला अभी सुप्रीम कोर्ट में है. देश में कर्नाटक-महाराष्ट्र के अलावा भी कई ऐसे राज्य हैं, जहां सीमा को लेकर विवाद है. भारत की आजादी के बाद कई राज्यों के बीच सीमा का बंटवारा हुआ था. 

2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग कर लद्दाख को अलग किया गया. इस स्टोरी में जानते हैं कि राज्यों के बीच सीमा बंटवारा कैसे किया जाता है?

राज्यों के विभाजन फॉर्मूला के लिए बनी 3 समिति, लेकिन सब फेल

  • 1948 में बने एसके धर समिति ने कहा कि राज्यों का बंटवारा प्रशासनिक आधार पर किया जाए. इस कमेटी का गठन संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने किया था. इस समिति की रिपोर्ट नहीं मानी गई.
  • कांग्रेस के जवाहर लाल नेहरु, सरदार पटेल और पट्टाभी सीतारमैय्या (जे. वी. पी. समिति) ने कहा कि भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन नहीं किया जाए. आंध्र में इसका पुरजोर विरोध हुआ, जबकि महाराष्ट्र में कई जगहों पर हिंसा भी हुई.
  • 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा, वितीय एवं प्रशासनिक आवश्यकता और पंचवर्षीय योजनाओं की सफलता को ध्यान में रखते हुए राज्य बनाए जाएं. 

फिर कैसे होता है राज्यों के बीच सीमा बंटवारा?

कोई तय फॉर्मूला नहीं है. लेकिन अब तक 4 आधार पर ही सीमा का बंटवारा होता आया है. 

1. भौगोलिक निकटता- भौगोलिक निकटता के आधार पर राज्यों के बीच सीमा का बंटवारा किया जाता है. केंद्र तय करता है कि दोनों राज्यों के बीच की भौगोलिक निकटता कैसी है? उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड, मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ और बिहार-झारखंड के बीच भौगोलिक निकटता के आधार पर सीमा का बंटवारा किया गया है.

2. भाषाई आधार पर- 1953 में पी श्रीरामुलु ने अलग तेलुगू राज्य की मांग को लेकर आमरण अनशन शुरू कर दिया. 56 दिनों तक चले अनशन के बाद श्रीरामुलु की मौत हो गई, जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने आंध्र को अलग राज्य बनाने की घोषणा कर दी. मद्रास प्रेसिडेंसी से अलग होकर आंध्र नया राज्य बना. 

भाषाई आधार पर इसके बाद महाराष्ट्र-गुजरात और हरियाणा-पंजाब का बंटवारा किया गया. 

3. गांवों का तत्व के आधार पर- सीमा का बंटवारा गांवों के तत्व के आधार पर भी किया जाता है. इसमें गांव के भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक संरचानएं देखी जाती है. इस पर फाइनल फैसला केंद्र ही लेता है.

4. लोगों की इच्छा के आधार पर- राज्यों के बीच सीमा बंटवारे का सबसे महत्वपूर्ण तत्व लोगों की इच्छा है. हाल ही में लद्दाख और तेलंगाना का बंटवारा इसी आधार पर किया गया है.

लोगों की मांग को देखते हुए केंद्र सरकार किसी भी राज्य की सीमा का बंटवारा कर सकती है.

महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच विवाद क्या है, 2 प्वॉइंट्स

  • कर्नाटक के 5 जिले महाराष्ट्र की सीमा से लगती है. इनमें एक जिला है बेलगावी. इसी के 800 से ज्यादा गांवों को लेकर विवाद है.
  • महाराष्ट्र का कहना है कि बेलगावी में मराठी भाषी रहते हैं और कर्नाटक का बंटवारा भाषाई आधार पर हुआ है. ऐसे में इन इलाकों को महाराष्ट्र को दिया जाए. 

2 बयान, जिसने विवाद को सुलगाया

22 नवंबर को कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने कहा, "हम महाराष्ट्र के सांगली जिले के 40 गांवों को कर्नाटक में मिलाने की तैयारी कर रहे हैं. प्रस्ताव तैयार हो गया है, जल्द ही इसे अमल में लाएंगे"

27 दिसंबर को महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा, "कर्नाटक में 865 मराठी भाषी गांव हैं और इन गांवों का हर इंच महाराष्ट्र में शामिल किया जाएगा. सुरक्षा की गारंटी केंद्र सरकार ले."

विवाद सुलझाना क्यों आसान नहीं, 3 बातें...

1. मामला सुप्रीम कोर्ट में, फिर भी समाधान आसान नहीं?
फिलहाल कर्नाटक-महाराष्ट्र का सीमा विवाद सुप्रीम कोर्ट में है. यह विवाद करीब 65 साल पुराना है. उस वक्त सिर्फ भाषाई आधारों पर भी राज्यों का बंटवारा होता था. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा कि सिर्फ भाषा के आधार पर सीमा का बंटवारा नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के इस टिप्पणी की वजह से कर्नाटक की दलीलें मजबूत है.

लेकिन महाराष्ट्र का कहना है कि लोगों की इच्छा भी राज्य से हटने की है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के सामने पब्लिक ओपिनियन जानने की चुनौती होगी. ओपिनियन का आधार समेत कई तकनीती पहलू है, जो अब तक उलझा हुआ है. इसलिए कोर्ट के लिए भी यह मसला चुनौतीपूर्ण है.

2. केंद्र का रूख स्पष्ट नहीं, विवाद इसलिए उलझा
कर्नाटक-महाराष्ट्र को लेकर केंद्र का रूख स्पष्ट नहीं है. अमूमन राज्यों के बंटवारे के वक्त ही केंद्र समस्याओं का हल कर देता है. कर्नाटक-महाराष्ट्र के बीच ऐसा नहीं हो पाया है. अभी भी केंद्र ने दोनों राज्यों को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करने के लिए कहा है.

केंद्र अगर समाधान की पहल करें तो इसकी कई जटिलताएं सुलझ सकती है.

3. विवाद सुलझाने की राह में राजनीति भी रोड़ा
कर्नाटक और महाराष्ट्र की लोकल पॉलिटिक्स इस विवाद पर हावी है. कर्नाटक में बीजेपी और कांग्रेस गांवों को अपने राज्य में मिलाने को लेकर एकमत है. वहीं महाराष्ट्र में भी स्थिति वैसी ही है. 

उदाहरण देखिए- महाराष्ट्र में बीजेपी के बड़े नेता हैं देवेंद्र फडणवीस. फडणवीस ने कहा कि एक इंच जमीन कर्नाटक को नहीं देंगे. वहीं कर्नाटक बीजेपी के नेता हैं सीएम बोम्मई. बोम्मई ने कहा है कि हम भी एक इंच जमीन महाराष्ट्र को नहीं देंगे.

राज्यों के अस्मिता के मुद्दे को लेकर सभी दल लोकल लेवल पर पॉलिटिक्स कर रही है, जिस वजह से इस विवाद को सुलझाना आसान नहीं है. 

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