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Joshimath Sinking: होटलों, घरों, सड़कों पर नजर आ रही खतरनाक दरारें, जानिए आखिर क्यों जमीन में धंसता जा रहा है जोशीमठ?

Joshimath Sinking: प्राकृतिक आपदाओं की संभावना के चलते उत्तराखंड के कई इलाके अति संवेदनशील माने जाते हैं. इन संवेदनशील इलाकों में एक नाम जोशीमठ का भी है.

Uttarakhand Joshimath Sinking: उत्तराखंड के जोशीमठ में होटलों, घरों और सड़कों पर खतरनाक दरारें पड़ने की खबरें लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. जोशीमठ में जमीन धंसने की वजह से कई जगहों पर पानी भी निकलने लगा है. इसे लेकर तमाम तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं. बीते मंगलवार (3 जनवरी) को जोशीमठ के मारवाड़ी क्षेत्र मे अचानक जमीन के नीचे से पानी निकलने की वजह से लोगों में दहशत भर गई. आनन-फानन में स्थानीय प्रशासन ने जेपी कंपनी की 35 बिल्डिंगों को खाली करा लिया. वहीं, होटलों में पर्यटकों के रुकने पर भी रोक लगा दी गई है.

जोशीमठ के लोगों में दहशत और हालातों को देखते हुए उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने स्थितियों का जायजा लेने के लिए जोशीमठ का दौरा करने का फैसला किया है. सीएम धामी ने कहा कि सभी रिपोर्टों की निगरानी की जाएगी और लोगों को बचाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे. वहीं, जोशीमठ में एशिया की सबसे बड़ी रोपवे भी पर्यटकों के लिए बंद कर दी गई है. जोशीमठ में जमीन धंसने और दरारों में से पानी रिसने की घटनाओं की वजह से लोगों ने प्रदर्शन भी शुरू कर दिया है. 

प्राकृतिक आपदाओं की संभावना के चलते उत्तराखंड के कई इलाके अति संवेदनशील माने जाते हैं. इन संवेदनशील इलाकों में एक नाम जोशीमठ का भी है. इसी वजह के चलते कई पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता जोशीमठ में किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा आने की संभावना जता रहे हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर क्यों धंसता जा रहा है जोशीमठ?

आखिर क्यों धंस रहा जोशीमठ?

उत्तराखंड में भूस्खलन की घटनाएं पहाड़ी क्षेत्र की वजह से सामान्य मानी जाती हैं. हालांकि, पर्यावरणविदों का मानना है कि बीते कुछ सालों में विकास की कई परियोजनाओं की वजह से जोशीमठ जैसे कई इलाकों का यही हाल हो गया है. लोगों का कहना है कि जोशीमठ की पहाड़ी के नीचे सुरंग से निकाली जा रही विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना की वजह से ही जोशीमठ में जमीन दरक रही है. पर्यावरणविदों के अनुसार, प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से काफी संवेदनशील माने जाने वाले सिस्मिक जोन 5 में आता है.

70 के दशक में बनी थी मिश्रा कमेटी

70 के दशक में उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहे उत्तराखंड में बाढ़ आने के बाद जोशीमठ में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ गई थीं. इन भूस्खलन की घटनाओं पर नजर बनाए रखने के लिए तत्कालीन सरकार ने गढ़वाल के आयुक्त रहे महेश चंद्र मिश्रा को लेकर एक कमेटी बनाई थी. इस कमेटी की रिपोर्ट में सामने आया कि जोशीमठ की पहाड़ी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है. अगर इसके रखरखाव के लिए एहतियाती कदम नहीं उठाए गए, तो यहां प्रकृतिक आपदा आ सकती है.  और 

क्या की थी सिफारिशें?

मिश्रा कमेटी ने माना था कि जोशीमठ की चट्टानों से छेड़छाड़ यहां भूस्खलन के खतरे को बढ़ा देगी. इससे बचने के लिए जोशीमठ में किसी भी तरह के भारी निर्माण कार्य पर रोक के साथ ढलानों पर वृक्षारोपण करने की सिफारिशें की थीं. जिससे भूस्खलन की घटनाओं को रोकने में मदद मिले. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन सिफारिशों पर बहुत ज्यादा काम नहीं किया गया. कुछ जगहों पर वृक्षारोपण से इतर अन्य चीजों को नजरअंदाज कर दिया गया और जोशीमठ की पहाड़ी पर एक के बाद एक काम किए जाते रहे.

प्रशासन का क्या कहना है?

जोशीमठ में जमीन धंसने से हालात चिंताजनक बने हुए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जोशीमठ का निरीक्षण करने गई टीम ने प्रशासन को कई सुझाव दिए हैं और इन पर तुरंत फैसला लेने को कहा है. बताया जा रहा है कि जांच करने आई टीम ने जोशीमठ में जमीन धंसने की सबसे बड़ी वजह पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं होने को बताया है. हालांकि, लोगों का कहना है कि जमीन के अंदर से निकल रहा पानी मटमैला है और सीवर का नहीं है. 

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देवेश त्रिपाठी एबीपी न्यूज की डिजिटल वेबसाइट में कार्यरत हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं. व्यंग्यात्मक लेखन में रुचि रखते हैं.
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