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बिना चप्पल के गुजरा था इसरो अध्यक्ष के सिवन का बचपन, चंद्रयान-2 लॉन्च कर बन गए देश के हीरो

जब इंसान कामयाब होना चाहता है तो दुनिया की कोई भी बाधा उसकी राह में ज्यादा समय तक टिक नहीं पाती है. ऐसी ही कई बाधाओं को पार करके सिवन इसरो चीफ के पद तक पहुंचे हैं.

नई दिल्लीः हाल ही में भारत ने चंद्रयान-2 को लॉन्च किया है. इस मिशन को लॉन्च करने में इसरो की पूरी टीम जुटी हुई थी और पूरी टीम को दिशा-निर्देश दे रहे थे इसरो चीफ कैलाशवडीवू सिवन यानी के. सिवन. तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के एक गांव से निकलकर इसरो प्रमुख के पोस्ट तक पहुंचने में सिवन को न जाने कितनी लंबी दूरी तय करनी पड़ी. लेकिन, एक बात साफ है कि इन दूरियों को तय करने में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

किसान के घर जन्में सिवन की स्कूली शिक्षा खत्म होते ही पिता ने पास के कॉलेज में नामांकन करवा दिया. पिता चाहते थे कि बेटा सिवन पढ़ाई के साथ-साथ काम में भी हाथ बटाए.

पिता ने पास के कॉलेज में कराया दाखिला अपने कॉलेज की पढ़ाई को लेकर सिवन ने अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत करते हुए कहा, "जब मैं स्कूल से पास हुआ तो मेरे पिता ने मेरा दाखिला पास के कॉलेज में करवा दिया. उनका सोचना था कि मैं पास के कॉलेज में पढ़ाई करुंगा और पिता के साथ खेती में सहयोग करुंगा."

हालांकि, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. मेधावी सिवन ने ग्रेजुएशन में गणित की परीक्षा न सिर्फ पास की, बल्कि 100 प्रतिशत अंक भी हासिल किए, जिसके बाद उनके पिता की सोच बदल गई और आगे की पढ़ाई के लिए उनका दाखिला एमआईटी में करवाया गया.

ISRO प्रमुख के सिवन बोले- भारत ही नहीं, पूरी दुनिया को था चंद्रयान-2 की सफलता का इंतजार

सफलता सिवन के इंतजार में पलकें बिछाए इंतजार कर रही थी. मेधावी छात्र सिवन ने साल 1980 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेकनलॉजी (एमआईटी) से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर ली.

सफलता कर रही थी सिवन का इंतजार 1982 में इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल करने वाले सिवन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार बुलंदियों की ओर बढ़ते गए. या यूं कहें कि बुलंदियां सिवन की ओर खींची चली आ रही थी. उन्होंने साल 2006 में पीएचडी की डिग्री भी हासिल की.

साल 1982 में ही सिवन ने इसरो ज्वाइन कर लिया और रॉकेट प्रोग्राम पर काम करने में जुट गए. इसरो के चेयरमैन बनने से पहले (साल 2018) वह विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के निदेशक भी रहे. यह सेंटर रॉकेट का निर्माण करता है.

रॉकेट मैन के नाम से बुलाते हैं सहयोगी क्रायोजॉनिक इंजन, पीएसएलवी, जीएसएलवी और री-यूजेबल लॉन्च व्हिकल्स (आरएलवी) का निर्माण करने में इन्होंने अहम योगदान दिया. इस कारण इन्हें 'रॉकेट मैन' के नाम से भी जाना जाने लगा.

सिवन ने एक साथ 104 सेटेलाइट को लॉन्च करने में भी अहम भूमिका निभाई थी. यह लॉन्चिंग 15 फरवरी 2017 को हुई थी. एक साथ 104 सेटेलाइट को लॉन्च कर भारत ने विश्व रिकॉर्ड कायम किया था.

ऐसा नहीं है कि सिवन ने चंद्रयान तक की दूरी को आसानी से छू लिया हो. इन दूरियों को तय करने में उन्हें काफी परेशानियों का समाना करना पड़ा. राह में न जाने कितनी बाधाएं आईं और सिवन के हौसले ने इन सभी बाधाओं को पस्त कर दिया.

गरीबी में बीता बचपन अंग्रेजी अखबार के साथ एक ऐसी ही कहानी साझा करते हैं इसरो प्रमुख सिवन. बातचीत के दौरान सिवन बताते हैं कि उनका बचपन मुफलिसी में गुजरा. स्कूल के दिनों में उनके पैरों में चप्पल या जूता नहीं होता था.

उन्होंने बताया कि वह कॉलेज के दिनों तक धोती पहन कर पढ़ने जाया करते थे. उन्होंने बताया कि मैंने पहली बार तब पैंट पहनी थी, जब मैंने एमआईटी में दाखिला लिया था.

अपनी पसंद की मूवी पर बात करते हुए सिवन ने कहा कि उन्हें राजेश खन्ना की फिल्म आराधना बहुत पंसद है. इसरो चीफ ने बताया कि वह क्लासिकल गाने सुनते हैं. बातचीत के दौरान उन्होंने यह बताया कि उन्हें बागवानी का भी शौक है.

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