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'किसे बेवकूफ बना रहे हो...' अमेरिका पर विदेश मंत्री एस जयशंकर के तीखे बयान के क्या हैं मायने?

US-Pakistan F-16 Deal: अमेरिका पर भारत का रुख हमेशा से ही बहुत सख्त नहीं रहा है. दोनों देशों के बीच रिश्तों में कई बार खटास आई, लेकिन आखिरकार सब ठीक हो गया.

US-Pakistan F-16 Deal: 'आप किसे बेवकूफ बना रहे हो?'...ये कटाक्ष किसी और पर नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी ताकतों में से एक अमेरिका पर किया गया है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका की ही धरती से उसे ये करारा जवाब दिया है. पाकिस्तान के साथ एफ-16 लड़ाकू विमानों को अपग्रेड करने की डील को लेकर जयशंकर ने ये टिप्पणी की, जिसकी खूब चर्चा हो रही है. भारतीय विदेश मंत्री का ये बयान कई मायनों में काफी अहम है. अमेरिका के पाकिस्तान और भारत के साथ रिश्तों के इतिहास को देखें तो इस बयान का असली मतलब समझ आता है. 

अमेरिका पर भारत का रुख हमेशा से ही बहुत सख्त नहीं रहा है. दोनों देशों के बीच रिश्तों में कई बार खटास आई, लेकिन आखिरकार सब ठीक हो गया. पाकिस्तान को फंडिंग और हथियार मुहैया कराने को लेकर भारत की तरफ से हमेशा आपत्ति जताई गई, लेकिन जिस तरह से एस जयशंकर ने अमेरिका को जवाब दिया है, उससे ये साफ है कि भारत अब अपने रुख में कहीं न कहीं बदलाव कर रहा है. आइए समझते हैं कि इसके असली मायने क्या हैं. 

अमेरिका और भारत के रिश्ते
सबसे पहले अमेरिका और भारत के रिश्तों को समझते हैं. अगर इतिहास में झांककर देखें तो पता चलता है कि ज्यादातर वक्त दोनों ही देशों के बीच तनातनी रही. शीतयुद्ध की शुरुआत के बाद से ही भारत का रुख तटस्थ रहा. उसने सीधे अमेरिका से बैर नहीं लिया, लेकिन रिश्ते कुछ ज्यादा अच्छे नहीं थे. इसी दौरान भारत और रूस के बीच नजदीकी बढ़ी. जब 1962 में चीन के साथ भारत का युद्ध हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी को चिट्ठी लिखी थी. इसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका चीन को तय सीमारेखा को मानने के लिए कहे. 

1971 में भारत-अमेरिका में छिड़ सकता था युद्ध
इसके बाद इंदिरा गांधी का दौर शुरू हुआ और इस दौरान अमेरिका ने अपना रुख साफ कर दिया. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा नजर आया. इस दौरान अमेरिका ने एक मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए पाकिस्तान का साथ दिया. तब अमेरिका ने भारत को डराने के लिए बंगाल की खाड़ी के नजदीक अपने सैन्य बेड़े की तैनाती कर दी थी. अमेरिकी नागरिकों को निकालने के बहाने से अमेरिका ने ये कदम उठाया था. इस दौरान अमेरिका के विध्वंसक युद्धपोत भारत की तरफ बढ़े, जो परमाणु हथियारों से लैस थे. भारत को युद्ध रोकने को मजबूर करने के लिए ये अमेरिका की एक रणनीति थी. इस दौरान भारत के अमेरिका के साथ रिश्तों में दरार आ गई थी. इंदिरा गांधी ने यहां तक कह दिया था कि अगर अमेरिकी बेड़े की तरफ से एक भी गोली चली होती तो तीसरा विश्वयुद्ध हो सकता था. 

इसके बाद 1974 में भारत ने परमाणु परीक्षण कर अमेरिका को करारा जवाब दिया. अमेरिकी की पैनी नजरों के बावजूद भारत ने ऐसा कर दिखाया, इसका नतीजा ये रहा कि भारत और अमेरिका के रिश्ते कई सालों तक खराब हो गए. लंबे समय तक रिश्तों में खटास के बाद 1991 में आर्थिक उदारीकरण के दौरान दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होने लगे, लेकिन 1998 में एक बार फिर परमाणु परीक्षणों के चलते अमेरिका और भारत के रिश्ते खराब हो गए. अमेरिका ने अपने राजदूत को वापस बुला लिया और भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाए. 

1999 में कारगिल युद्ध के बाद 2001 में बुश प्रशासन ने भारत पर लगाए तमाम प्रतिबंधों को हटा दिया. इसके बाद से रिश्तों में सुधार का दौर शुरू हो गया. 2006 में जॉर्ज बुश और मनमोहन सिंह ने परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए. इससे एक साल पहले 2005 में पहली बार भारत-अमेरिका की नौसेना ने एकसाथ युद्धाभ्यास किया. इसके बाद ओबामा और ट्रंप के दौर में भी भारत और अमेरिका के रिश्ते ज्यादा खराब नहीं रहे. हालांकि अमेरिका ने इस दौरान पाकिस्तान का भी हाथ थामे रखा. 

अमेरिका पर मेहरबान रहा है पाकिस्तान
पाकिस्तान और अमेरिका की दोस्ती के किस्से काफी पुराने हैं. 1971 में मदद के बाद बात अगर F-16 फाइटर जेट्स की करें तो अमेरिका ने सबसे पहले 1981 में पाकिस्तान के साथ इन लड़ाकू विमानों की डील की थी. इस दौरान अमेरिका ने इस डील को बीच में ही तोड़ दिया और 28 विमानों को डिलीवर करने से इनकार कर दिया. कहा गया कि परमाणु हमले की आशंका के चलते ऐसा किया गया. अमेरिका ने पाकिस्तान से लिए पैसे भी लौटा दिए. 

अमेरिका ने कब-कब की पाकिस्तान की मदद
इसके बाद 11 सितंबर 2001 को अमेरिका पर इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ. अल कायदा के आतंकियों ने ट्विन टावर्स को प्लेन से उड़ा दिया. इस हमले में हजारों लोगों की मौत हुई. इस घटना को देखते हुए तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने अमेरिका की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और कहा कि वो आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उसकी मदद करेगा. यहां से  F-16 वाली पुरानी डील पर लगाई गई पाबंदी भी हटा दी गई और पाकिस्तान को लेटेस्ट टेक्नोलॉजी वाले इन विमानों का एक बेड़ा सौंप दिया. 

  • साल 2002 में अमेरिका की तरफ से पाकिस्तान को 14 बिलियन डॉलर्स की मदद दी गई. अमेरिका की तरफ से बताया गया कि आतंकवाद और सीमा पर उग्रवाद को रोकने के लिए ये मदद दी गई है.
  • इसके बाद 2011 में 6.2 करोड़ डॉलर की एक डील हुई, जिसमें तमाम फाइटर जेट्स का रखरखाव होना था. इसमें विमानों के पुर्जे और आधुनिक सामान मौजूद थे. 
  • 2016 में भी पाकिस्तान और अमेरिका के बीच करीब 70 हजार करोड़ रुपये की डील हुई, जिसके तहत करीब 8 एफ-16 विमानों का सौदा हुआ था. ये विमान नई टेक्नोलॉजी से लैस थे. 
  • 2001 से लेकर 2018 तक अमेरिका ने पाकिस्तान को कुल 33 बिलियन डॉलर की मदद की. जिस पर साल 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रेक लगा दिया. 

डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को करारा तमाचा मारते हुए कहा था कि, पिछले 15 सालों से हम बेवकूफी के साथ पाकिस्तान की मदद कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने हमें झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया. उन्हें लगा कि हमारे नेता बेवकूफ हैं. जिन आतंकियों (तालिबान) के खिलाफ हम अफगानिस्तान में लड़ते रहे, पाकिस्तान ने उन्हें मदद पहुंचाई. ऐसे आतंकी संगठनों पर पाकिस्तान लगाम लगाने में नाकाम रहा. इस दौरान ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 300 मिलियन डॉलर की मदद पर रोक लगाने का ऐलान किया था.  

पाकिस्तान के साथ क्या है F-16 डील?
अब बाइडेन का रुख पाकिस्तान को लेकर नरम दिख रहा है. मौजूदा F-16 डील को इसी नजरिए से देखा जा रहा है. अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ 45 करोड़ डॉलर का सौदा किया है. इसके तहत पाकिस्तान के F-16 विमानों को अपग्रेड किया जाएगा. पाकिस्तान के बेड़े में मौजूद ज्यादातर F-16 विमान पुराने हो चुके हैं, इसीलिए अब इन्हें चमकाया जा रहा है. जिसमें इंजन की मरम्मत और खराब पार्ट्स की जगह नए पार्ट लगाने का काम शामिल भारत ने पहले ही इस सौदे को लेकर आपत्ति जताई थी, जिस पर अमेरिका ने कहा था कि भारत को पहले ही सौदे की जानकारी दी गई थी और ये डील भारत के लिए किसी भी तरह का कोई मैसेज नहीं है. 

  • लॉकहीड नाम की कंपनी इस पूरे काम को करेगी, जिसमें इंजन की मरम्मत, सपोर्ट इक्विपमेंट और सॉफ्टवेयर मॉडिफिकेशन शामिल होगा. 
  • एफ-16 अमेरिका का एक खतरनाक लड़ाकू विमान है, जो कई तरह की मिसाइलों को ले जाने में सक्षम है. पाकिस्तान को ये पहली बार तब मिले जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला किया था. 
  • हालांकि पाकिस्तान का एफ-16 भारतीय लड़ाकू विमानों के मुकाबले ज्यादा तेज नहीं है. भारत को मिले राफेल विमान एफ-16 से कहीं ज्यादा तेज और लेटेस्ट टेक्नोलॉजी से लैस हैं. एफ-16 से भारत के सुखोई और मिराज जैसे विमान भी टक्कर ले सकते हैं. 
  • रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान के पास कुल 85 एफ-16 लड़ाकू विमान हैं. इसीलिए ये उसकी बड़ी ताकत भी है. यही वजह है कि पाकिस्तान अब तक इनके रखरखाव में हजारों करोड़ रुपये खर्च कर चुका है. 
  • एफ-16 को लेकर विवाद तब हुआ था, जब भारत की बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तानी एफ-16 भारतीय सीमा में घुस गए थे, इन विमानों ने भारत के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की थी. 

अब वॉशिंगटन में एक कार्यक्रम के दौरान जब विदेश मंत्री एस जयशंकर से पाकिस्तान और अमेरिका के बीच हुई डील को लेकर सवाल किया गया तो, उन्होंने कहा कि- सभी को पता है कि एफ-16 विमानों का इस्तेमाल कहां और किसके लिए होता है. इस तरह की बात कहकर आप किसे बेवकूफ बना रहे हैं. इस बयान को अमेरिका के साथ भारत के नए तरह के रिश्तों के साथ देखा जा रहा है. हालांकि कहा जा रहा है कि भारत के लिए तब तक कोई चिंता की बात नहीं है, जब तक अमेरिका पाकिस्तान को नई तकनीक वाले कोई हथियार नहीं देता है. इस डील पर भारत का रुख अमेरिका को यही मैसेज देने के लिए है कि वो आगे हथियारों का कोई सौदा करने से पहले 100 बार सोच ले. 

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