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Gunners Day: भारतीय सेना आज मना रही है अपना 196वां गनर्स डे, जानिए इसका महत्व और इतिहास

196th Gunners Day: आज भारतीय सेना 196वां तोपखाना दिवस मना रही है. तोपखाना दिवस का एक बड़ा ही शानदार इतिहास रहा है. भारत ने अपने आर्टिलरी को कैसे विकसित किया, यहां जानिए सबकुछ.

Gunners Day: भारतीय सेना (Indian Army) आज अपना 196वां गनर्स-डे यानी तोपखाना दिवस मना रही है. रक्षा-तंत्र के सूत्रों ने इस मौके पर एबीपी न्यूज से ये अहम जानकारी साझा करते हुए बताया कि चीन से सटी एलएसी (LAC) पर भारतीय सेना अपने आर्टिलरी (Artillery) यानी तोपखाने को बेहद मजबूत करने में जुटी है. इसलिए दक्षिण कोरिया की K9 वज्र तोप से लेकर स्वदेशी धनुष और अमेरिकी अल्ट्रा लाइट होवित्जर, एम-777 और पिनाका रॉकेट सिस्टम की अतिरिक्त तैनाती की जा रही है. इसी के साछ टेस्ट पूरे होने के बाद अटैग्स को भी तैनात किया जाएगा. 

क्यों मनाया जाता है गनर्स डे?

भारत में आर्टिलरी का पहला रिकॉर्ड 1368 में अदोनी की लड़ाई में दर्ज किया गया है. दक्कन में मोहम्मद शाह बहमनी के नेतृत्व में बहमनी राजाओं ने विजय-नगर के राजा के खिलाफ आर्टिलरी की एक ट्रेन का इस्तेमाल किया. 5 (बॉम्बे) माउंटेन बैटरी को 28 सितंबर 1827 को गोलांडाज़ बटालियन, बॉम्बे फुट आर्टिलरी की 8वीं कंपनी के रूप में स्थापित किया गया था. वर्तमान में यह 57 फील्ड रेजिमेंट का हिस्सा है. इस प्रकार 28 सितंबर को 'गनर्स डे' के रूप में मनाया जाता है.

भारत में तोपखाने की रेजिमेंट का विकास

1857 के बाद में, अफगान युद्धों के दौरान बीहड़ उत्तर पश्चिम सीमांत में विकास के लिए केवल पर्वतीय बैटरियों को बनाए रखने के साथ ही अधिकांश आर्टिलरी इकाइयों को भंग कर दिया गया था. स्कूल ऑफ आर्टिलरी 1923 में काबुल में स्थापित किया गया था. माउंटेन आर्टिलरी ट्रेनिंग सेंटर देहरादून में लखनऊ और बाद में अंबाला में अस्तित्व में आया. फील्ड आर्टिलरी ट्रेनिग सेंटर मथुरा में स्थापित किया गया.

भारत में बाबर ने किया था सबसे पहले तोपखाने का इस्तेमाल

यह 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई थी, जब मुगल सम्राट बाबर ने पहली बार दिल्ली के अफगान राजा इब्राहिम लोधी को निर्णायक रूप से हराने के लिए उत्तर भारत में तोपखाने का इस्तेमाल किया था. दिल्ली में मुगल राजाओं, मैसूर में टीपू सुल्तान और हैदराबाद में निजाम के अधीन तोपखाने बड़े पैमाने पर फले-फूले. हालांकि, यह सिख थे, जिन्होंने महाराजा रणजीत सिंह के अधीन भारतीय इतिहास में तोपखाने का सबसे प्रभावी उपयोग किया, जिन्होंने इसे युद्ध दक्षता के उच्च स्तर तक पहुंचाया.

भारत में दुश्मन की तोपों का पता लगाने के पहले रिकॉर्ड किए गए प्रयास का पता टीपू सुल्तान द्वारा केटोर की लड़ाई में लगाया जा सकता है. आधुनिक भारतीय निगरानी और लक्ष्य प्राप्ति (एसएटीए) गनर 1925 में एक विनम्र शुरुआत से विकसित हुआ जब 'नाइन ओरिजिनल' को कैप्टन ईबी कल्वरवेल, एमसी के तहत एक साथ रखा गया ताकि स्कूल ऑफ आर्टिलरी, काबुल में पहला सर्वेक्षण अनुभाग बनाया जा सके. अगस्त 1942 तक यह केंद्र विस्तारित होकर पहली भारतीय सर्वेक्षण रेजिमेंट बन गया था.

आर्टिलरी कमीशन में केवल तीन भारतीय थे

केवल तीन भारतीय अधिकारियों को शुरू में रॉयल मिलिट्री अकादमी, वूलविच से आर्टिलरी में कमीशन किया गया था. आर्टिलरी में शामिल होने वाले पहले भारतीय अधिकारी प्रेम सिंह ज्ञानी थे और उसके बाद पीपी कुमारमंगलम को आस्कल्हा के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्हें 15 जनवरी 1935 को बंगलोर में गठित ए फील्ड ब्रिगेड में तैनात किया गया था.

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नीरज राजपूत वॉर, डिफेंस और सिक्योरिटी से जुड़े मामले देखते हैं. पिछले 20 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं और प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया का अनुभव है. एबीपी न्यूज के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अनकट के 'फाइनल-असॉल्ट' कार्यक्रम के प्रेजेंटर भी हैं.
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