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पति पर पत्नी के साथ रेप का आरोप, हाईकोर्ट का फैसला, सरकार का समर्थन, जानिए क्या है आईपीसी 376

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की रिपोर्ट के अनुसार यौन हिंसा की शिकार लगभग 45 प्रतिशत शादीशुदा महिलाओं के शरीर पर किसी न किसी तरह के जख्म के निशान हैं.

भारत में 82 प्रतिशत शादीशुदा महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हैं...

17 प्रतिशत महिलाएं के शरीर पर गहरे घाव हैं 

30 प्रतिशत महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा झेल चुकी हैं...

ये नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की ताजा रिपोर्ट हैं जो हमारे देश में महिलाओं की स्थिति को बयां करते हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार यौन हिंसा की शिकार लगभग 45 प्रतिशत शादीशुदा महिलाओं के शरीर पर किसी न किसी तरह के जख्म के निशान हैं. लगभग 10 प्रतिशत महिलाओं को जलाया भी गया है.

ये वो आंकड़े जो हमारे देश में महिलाओं की स्थिति और उनके सुखद वैवाहिक जीवन के काले सच को सामने रखते हैं. लेकिन इसके बाद भी हमारे देश में मैरिटल रेप को लेकर कोई कानून नहीं हैं. 

वैवाहिक दुष्कर्म यानी मैरिटल रेप को अपराध बनाने की मांग को लेकर वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. लेकिन इससे पहले ही कर्नाटक हाईकोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म के एक मामले की सुनवाई के दौरान पति पर पत्नी के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में केस दर्ज करने का आदेश दिया है. राज्य सरकार ने भी कोर्ट के इस फैसले का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है.

मैरिटल रेप क्या है, इस पर क्या विवाद है

  • किसी भी शादीशुदा रिश्ते में पति अगर पत्नी के बिना सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है तो इसे वैवाहिक दुष्कर्म यानी मैरिटल रेप कहा जाएगा. भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है.
  • दिल्ली हाईकोर्ट में साल 2015 में याचिका दाखिल कर वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग की थी. इस मामले पर अगले महीने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.
  • पिछले साल अगस्त में केरल हाईकोर्ट ने इस मामले को लेकर अहम टिप्पणी की थी और कहा था, 'हमारे देश में मैरिटल रेप के लिए सजा का प्रावधान नहीं है, लेकिन ये तलाक का आधार जरूर हो सकता है.' केरल हाईकोर्ट ने भी मैरिटल रेप यानी वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध मानने से इनकार कर दिया था. 

आईपीसी की कौन सी धाराएं लगती है, इस धारा की कहानी

रेप को अपराध मानने वाली इंडियन पीनल कोड की धारा 375 के अपवाद 2 के मुताबिक मैरिटल रेप अपराध नहीं है. इसके अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है और पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है तो वो रेप में नहीं माना जाएगा. यानी पति अगर अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाता है, तो भी वह अपराध और रेप नहीं माना जाएगा. अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम हो तो यह रेप की श्रेणी में आता है. 

तो फिर रेप कब माना जाएगा?

किसी भी महिला के मंजूरी के खिलाफ उसके शरीर में अपने शरीर का कोई अंग डालना रेप है. इसके अलावा महिला के निजी अंगों को पेनेट्रेशन के मकसद से नुकसान पहुंचाना भी रेप है. ओरल सेक्स को भी बलात्कार की श्रेणी में रखा गया है. 

वकील दीपक कुमार ने बताया,  'महिला के साथ बनाए गए यौन संबंध को बलात्कार माना जाने का प्रावधान इंडियन पीनल कोड (IPC) की धारा 375 में बताया गया है. इस धारा में महिला की इच्छा के बगैर अगर संबंध बनाना और महिला को मौत या नुकसान पहुंचाने की धमकी देकर सहमति लेते हुए संबंध बनाना रेप की श्रेणी में आता है. अगर किसी महिला से शादी का झांसा देकर संबंध बनाए गए हों तो वह भी रेप माना जाएगा.

इसके अलावा शारीरिक संबंध बनाते वक्त महिला की मानसिक स्थिति ठीक न हो या उसे किसी तरह का नशीला पदार्थ दिया गया हो, महिला सहमति देने के नतीजों को समझने की स्थिति न हो तो ये भी रेप माना जाता है. सहमति के साथ ही सही लेकिन 16 साल से कम उम्र की महिला से संबंध बनाना रेप माना जाएगा.

मैरिटल रैप पर कोर्ट ने क्या-क्या कहा है, 2 प्वाइंट्स

  • इसी साल मई महीने में दिल्ली हाईकोर्ट के दो जजों की बेंच ने मैरिटल रेप पर खण्डित फैसला दिया है. जस्टिस शकधर ने कहा कि आईपीसी की धारा-375 के अपवाद-2 और धारा-376 (ई) के दो प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-14, 19 (1) और  21 के खिलाफ होने के कारण रद्द होने चाहिए. 
  • खंडपीठ के दूसरे जज जस्टिस हरिशंकर इस फैसले से असहमत दिखे. उन्होंने कहा, 'कानून बनाने या रद्द करने का अधिकार कोर्ट के बजाय जनता द्वारा चुनी गई विधायिका को है. 

केंद्र सरकार का स्टैंड क्या है ?

  • साल 2016 के जनवरी महीने में दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी इस मामले में जवाब मांगा था. 
  • अगस्त 2017 में केंद्र सरकार ने कहा कि  वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध नहीं बनाया जा सकता. इससे वैवाहिक जीवन और परिवार की संस्था अस्थिर हो सकती है. 
  • साल 2022 में उच्च न्यायालय ने इस मामलों पर दैनिक आधार पर सुनवाई का फैसला किया. क्योंकि संविधान के तहत विवाह और पर्सनल लॉ के मामले केन्द्र के साथ राज्यों के अधिकार क्षेत्र में भी आते हैं इसलिए केन्द्र सरकार ने कहा कि ऐसे मामलों पर हाईकोर्ट में राज्य सरकारों का पक्ष भी सुना जाना जरूरी है. 

10 में से 3 महिला पति की यौन हिंसा की शिकार

महिलाओं के मुद्दे पर आवाज उठाने वाली सुमित्रा नंदन कहती हैं कि मैरिटल रेप का मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. लेकिन हमारे समाज में आज भी करोड़ों भारतीय महिलाएं इसका सामना करती हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आंकड़े देखें तो भारत की 29 फीसदी से ज्यादा ऐसी महिलाओं को पति की शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होना पड़ता है. 

अब विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

संविधान विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता ने एबीपी से बातचीत करते हुए कहा कि रेप को अपराध मानने वाली इंडियन पीनल कोड की धारा 375 के अपवाद 2 के मुताबिक मैरिटल रेप अपराध नहीं है. पत्नी की उम्र 15 साल से ज्यादा है तो वो रेप में नहीं गिना जाएगा.

शारीरिक हिंसा और उत्पीड़न करने वाले पति से निपटने के लिए डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत महिलाओं को अनेक प्रकार की कानूनी सुरक्षा मिली है. बलात्कार करने वाले पति के साथ कोई भी महिला रहने से मना करके कानून के तहत तलाक के साथ गुजारा भत्ता भी हासिल कर सकती है. 

सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई चल रही है, तो क्या हाईकोर्ट ऐसा आदेश दे सकता है? 

इस सवाल के जवाब में विराग गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जब किसी मामले की सुनवाई चल रही होती है और उसमें कोई आदेश अगर नहीं हो तो फिर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का बहुत ज्यादा हाईकोर्ट के आदेश में संवैधानिक भूमिका नहीं है. लेकिन परंपरा के अनुसार अगर सुप्रीम कोर्ट में किसी मामले की सुनवाई होती है तो हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान इस बात का ध्यान रखा जाता है कि मामले में कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार ही हो. लेकिन अगर कोई पीड़ित व्यक्ति कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट है को वह सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है.  

उन्होंने कहा कि अगर वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में याचिकाकर्त्ताओं की मांग को मान लिया जाता है तो क़ानून में बदलाव के बाद आरोपी पति को सजा दिलाना मुश्किल होगा. बेडरूम में घटे हुए ऐसे मामलों में पत्नी के अलावा सबूत और प्रमाण कैसे मिलेंगे? डिजिटल होती दुनिया में कोरोना के बाद पारिवारिक व्यवस्था पर अनेक संकट मंडरा रहे हैं. विवाह एक सिविल कानून है जिसमें आपराधिकता के पहलू को शामिल करने से झूठे मामलों की बाढ़ आ सकती है. 

एडवोकेट गुप्ता ने कहा कि सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने दहेज और अन्य महिला कानूनों के दुरुपयोग पर कई बार चिंता जाहिर की है. वैवाहिक दुष्कर्म को आपराधिक बनाने की पहल करने से पहले सरकार और सुप्रीम कोर्ट को इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षात्मक प्रावधान करना जरूरी होगा.

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