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क्या हो गई मुख़्तार अंसारी के बुरे दौर की शुरुआत?

अंडरवर्ल्ड से लेकर सियासी गलियारों में अब इस बात की चर्चा है कि क्या आज सुप्रीम कोर्ट के सुनाये गए फैसले के बाद नेता मुख़्तार अंसारी के बुरे दौर की शुरुआत हो गई है?

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के आज आये फैसले के बाद पूर्वांचल के बाहुबली नेता मुख़्तार अंसारी के बुरे दौर की क्या शुरुआत हो चुकी है? अंडरवर्ल्ड से लेकर सियासी गलियारों तक में यह सवाल अब चर्चा का विषय बन गया है. मुख्तार के करीबियों के अलावा विरोधियों की निगाहें भी अब इस पर लगी हैं कि पंजाब की रोपड़ जेल से यूपी की बांदा जेल तक आने का उसका सफर कितना सुरक्षित रहेगा.

दरअसल, मुख्तार कतई नहीं चाहता था कि योगी सरकार के रहते हुए वह यूपी की किसी जेल में बंद रहे क्योंकि उसे अपने गुर्गे मुन्ना बजरंगी के अंजाम का ख़ौफ़ सता रहा था. साल 2018 में जेल के भीतर ही हुई गैंगवार में बजरंगी को मौत के घाट उतार दिया गया था. लिहाज़ा उसके बाद से ही मुख़्तार किसी अन्य राज्य की जेल में जाने की सुरक्षित पनाहगाह तलाश रहा था.

बिल्डर को फोन कर मुख्तार ने मांगे थे 10 करोड़ रुपये

बता दें, यूपी की बांदा जेल से कहीं और शिफ्ट होने के लिए मुख्तार ने बेहद सोची-समझी रणनीति बनाई और वह कामयाब भी हो गई. अगर यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक न दी होती तो पिछले 26 महीने से पंजाब की रोपड़ जेल में आराम व बेफिक्री की ज़िंदगी गुजार रहा होता. जनवरी 2019 में मोहाली के एक बड़े बिल्डर को फ़ोन करके ख़ुद को मुख़्तार अंसारी बताते हुए 10 करोड़ रुपये मांगे गए थे. मोहाली में इसी संदर्भ में एफ़आईआर दर्ज हुई और 24 जनवरी 2019 को पंजाब पुलिस ने मुख़्तार अंसारी को यूपी से ले जाकर मोहाली कोर्ट में पेश किया था जहां उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में रोपड़ जेल भेज दिया गया. तब से यह हिरासत लगातार बढ़ती जा रही थी.

पंजाब में कांग्रेस की सरकार है और मुख़्तार के खानदान में ऐसे कई रिश्तेदार हैं जिनके कांग्रेस में अच्छे रसूख हैं. केंद्र में UPA की सरकार के दौरान देश के उप राष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी रिश्ते में मुख़्तार के चाचा लगते हैं. सो जुर्म की दुनिया के माहिर खिलाड़ी रह चुके मुख्तार को इतनी सियासी समझ थी कि अपने फायदे के लिए राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कब, कैसे, कहां करना है.

मुख्तार के खिलाफ हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे 50 मामलों में आरोपी

पंजाब सरकार ने भी उसका पूरा साथ दिया. यूपी सरकार ने जितनी बार भी वहां की कोर्ट में उसे उत्तरप्रदेश में शिफ्ट करने की अर्जी दी, हर बार पंजाब सरकार ने उसकी बीमारियों की दलील देकर उसे शिफ्ट करवाने से बचा लिया. हारकर यूपी सरकार को सर्वोच्च अदालत आना पड़ा. वैसे हत्या, अपहरण और फिरौती वसूली जैसे करीब 50 मामलों में आरोपी और पिछले पांच बार से विधायक रहे मुख्तार अंसारी का रिश्ता एक रईस खानदान से है.

सिर्फ डर की वजह से नहीं बल्कि काम की वजह से भी इलाके के गरीब गुरबों में मुख्तार अंसारी के परिवार का सम्मान है. शायद कम लोगों को ही पता हो कि मऊ में अंसारी परिवार की इस इज़्ज़त की एक वजह और है और वो है इस खानदान का गौरवशाली इतिहास. खानदानी रसूख की जो तारीख इस घराने की है वैसी शायद ही पूर्वांचल के किसी खानदान की हो.

मुख्तार के नाना हिंदुस्तान के लिए हुए थे शहीद

बाहुबली मुख्तार अंसारी के दादा डॉ मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे और वे गांधी जी के बेहद करीबी माने जाते थे. मुख्तार अंसारी के दादा की तरह नाना भी नामचीन हस्तियों में से एक थे. शायद कम ही लोग जानते हैं कि महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार अंसारी के नाना थे. जिन्होंने 47 की जंग में न सिर्फ भारतीय सेना की तरफ से नवशेरा की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदुस्तान को जीत भी दिलाई. हालांकि वो खुद इस जंग में हिंदुस्तान के लिए शहीद हो गए थे.

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