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'चौटाला' को लगी चोट तो 'राव' को नहीं मिला भाव और 'लाल' पर भी नहीं चढ़ा रंग, हरियाणा चुनाव में तबाह हुए सियासी घराने

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राज्य के कई सियासी घरानों को तगड़ी पटखनी दी है. आइए जानते हैं कि किसका कैसा हाल रहा.

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे लगभग सामने आ चुके हैं. बीजेपी 37 सीटों पर जीत दर्ज कर चुकी है और 12 सीटों पर आगे चल रही है. वहीं, कांग्रेस की झोली में 31 सीटें आ चुकी हैं और पांच सीटों पर बढ़त बना रखी है. शुरुआती रुझान में पिछड़ने के बाद बीजेपी ने जिस तरह जीत हासिल की, उसने हर किसी को चौंका दिया है. हालांकि, इन नतीजों ने हरियाणा के कई सियासी घरानों को नेस्तनाबूद कर दिया है. आइए जानते हैं कि किस घराने का क्या हाल रहा?

चौटाला परिवार को लगी तगड़ी चोट

हरियाणा के सियासी मैदान का जिक्र हो और देवीलाल चौटाला परिवार का नाम न लिया जाए, ऐसा होना नामुमकिन है. देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला एक-दो नहीं, बल्कि चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं. साल 2024 के विधानसभा चुनाव में चौटाला परिवार के आठ सदस्यों दुष्यंत चौटाला, दिग्विजय चौटाला, अजय चौटाला, सुनैना चौटाला, रंजीत सिंह चौटाला, अमित सिहाग चौटाला, आदित्य चौटाला और अर्जुन चौटाला ने ताल ठोंकी थी. 

सबसे खराब हाल 2019 विधानसभा चुनाव के किंगमेकर जेजेपी चीफ दुष्यंत चौटाला का रहा. उन्होंने उचाना कलां सीट से चुनाव लड़ा और करारी हार का सामना करना पड़ा. दुष्यंत चौटाला को सिर्फ 7950 वोट मिले और वह पांचवें स्थान पर रहे. चौटाला परिवार को दूसरी चोट ऐलनाबाद सीट पर लगी. यहां अभय चौटाला ने चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार नसीब हुई. उन्हें कांग्रेस के भरत सिंह बेनीवाल ने 15 हजार वोटों से मात दी. सुनैना चौटाला ने फतेहाबाद सीट से चुनाव लड़ा और उन्हें 76491 वोटों से हार का सामना करना पड़ा. 

चौटाला परिवार के चौथे सदस्य रंजीत चौटाला को भी हार नसीब हुई. वह रानिया सीट पर 7513 वोटों से हार गए. अमित सिहाग चौटाला और दिग्विजय सिंह चौटाला को भी इस चुनाव में हार मिली है. दोनों डबवाली सीट से ही ताल ठोंकी थी. अमित को 610 वोटों से हार मिली तो दिग्विजय की हार का अंतर 20813 वोट रहा. चौटाला परिवार के सिर्फ दो सदस्यों को जीत मिली. डबवाली से अजय चौटाला के छोटे बेटे आदित्य चौटाला ने ताल ठोंकी. उन्हें इस सीट से जीत तो हासिल हुई, लेकिन जीत का अंतर सिर्फ 610 वोट ही रहा. रानिया सीट से चौटाला परिवार के अर्जुन चौटाला को जीत मिली. उनकी जीत का अंतर भी सिर्फ 4191 वोट रहा. 

राव परिवार को नहीं मिला कोई भाव

हरियाणा विधानसभा चुनाव में राव परिवार को भी कोई भाव नहीं मिला है. दरअसल, कैप्टन अजय सिंह यादव के बेटे चिरंजीव राव को चुनावी मैदान में करारी हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने रेवाड़ी सीट से ताल ठोंकी थी, लेकिन बीजेपी के लक्ष्मण सिंह यादव ने उन्हें 28 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया. बता दें कि चिरंजीव राव आरजेडी के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं. अहम बात यह है कि कैप्टन अजय सिंह ने इसी रेवाड़ी सीट पर पांच बार जीत हासिल की थी.

लाल परिवार पर भी नहीं चढ़ा रंग

हरियाणा विधानसभा चुनाव में लाल परिवार यानी भजनलाल और बंसीलाल का हाल भी बेहाल रहा है. भजनलाल के परिवार से चंद्र मोहन, भव्य बिश्नोई और दुरा राम ने सियासी मैदान में किस्मत आजमाई थी. हालात इतने ज्यादा खराब रहे कि भजनलाल परिवार का गढ़ कही जाने वाली आदमपुर विधानसभा सीट भी नहीं बची. इस सीट से भजनलाल के पोते और कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई ने ताल ठोंकी थी. भव्य को 1268 वोटों से हार का सामना करना पड़ा. वहीं, चंद्र मोहन बिश्नोई ने पंचकूला विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. उन्हें 67397 वोट हासिल हुए और उन्होंने 1997 वोटों से जीत दर्ज की. इसके अलावा भजनलाल परिवार के दुरा राम को 2252 वोटों से हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने फतेहाबाद सीट से चुनावी ताल ठोंकी थी. दुरा राम को कांग्रेस के बलवान सिंह दौलतपुरिया ने मात दी.

बंसी लाल परिवार के लिए भी हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे ज्यादा अच्छे नहीं रहे. दरअसल, इस परिवार के दो सदस्य श्रुति चौधरी और अनिरुद्ध चौधरी चुनावी दंगल में उतरे थे. दोनों ने तोशाम विधानसभा सीट से एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकी, जिसमें श्रुति चौधरी ने चचेरे भाई अनिरुद्ध चौधरी को 14311 वोटों से मात दे दी.

यह भी पढ़ें: बीजेपी के पोस्टरों पर नहीं था मनोहर लाल खट्टर का नाम, उनके क्षेत्र की सीटों पर कितना खिला 'कमल'?

खबर कोई भी हो... कैसी भी हो... उसकी नब्ज पकड़ना और पाठकों को उनके मन की बात समझाना कुमार सम्भव जैन की काबिलियत है. मुहब्बत की नगरी आगरा से मैंने पत्रकारिता की दुनिया में पहला कदम रखा, जो अदब के शहर लखनऊ में परवान चढ़ा. आगरा में अकिंचन भारत नाम के छोटे से अखबार में पत्रकारिता का पाठ पढ़ा तो लखनऊ में अमर उजाला ने खबरों से खेलना सिखाया. 

2010 में कारवां देश के आखिरी छोर यानी राजस्थान के श्रीगंगानगर पहुंचा तो दैनिक भास्कर ने मेरी मेहनत में जुनून का तड़का लगा दिया. यहां करीब डेढ़ साल बिताने के बाद दिल्ली ने अपने दिल में जगह दी और नवभारत टाइम्स में नौकरी दिला दी. एनबीटी में गुजरे सात साल ने हर उस क्षेत्र में महारत दिलाई, जिसका सपना छोटे-से शहर से निकला हर लड़का देखता है. साल 2018 था और डिजिटल ने अपना रंग जमाना शुरू कर दिया था तो मैंने भी हवा के रुख पकड़ लिया और भोपाल में दैनिक भास्कर पहुंच गया. 

झीलों के शहर की खूबसूरती ने दिल और दिमाग पर काबू तो किया, लेकिन जरूरतों ने वापस दिल्ली ला पटका और जनसत्ता में काफी कुछ सीखा. यह पहला ऐसा पड़ाव था, जिसकी आदत धारा के विपरीत चलना थी. इसके बाद अमर उजाला नोएडा में करीब तीन साल गुजारे और अब एबीपी न्यूज में बतौर फीचर एडिटर लोगों के दुख-दर्द और तकलीफ का इलाज ढूंढता हूं. करीब 18 साल के इस सफर में पत्रकारिता की दुनिया के हर कोने को खंगाला, चाहे वह रिपोर्टिंग हो या डेस्क... प्रिंटिंग हो या मैनेजमेंट... 

काम की बात तो बहुत हो चुकी अब अपने बारे में भी चंद बातें बयां कर देता हूं. मिजाज से मस्तमौला तो काम में दबंग दिखना मेरी पहचान है. घूमने-फिरने का शौकीन हूं तो कभी भी आवारा हवा के झोंके की तरह कहीं न कहीं निकल जाता हूं. पढ़ना-लिखना भी बेहद पसंद है और यारों के साथ वक्त बिताना ही मेरा पैशन है. 

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