पत्नी के 'ब्रह्मचर्य' से परेशान हुआ पति, तलाक मांगने पहुंचा हाईकोर्ट, जानिए फिर क्या हुआ
High Court News: पति एमडी है और पत्नी आर्युवेद की डॉक्टर है. पत्नी एक पंथ से प्रभावित होकर ब्रह्मचर्य का पालन कर रही थी और यौन संबंध से इनकार करने लगी.
Gujarat High Court: गुजरात हाईकोर्ट में तलाक का एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है. यहां एक ऐसे शख्स को उसकी पत्नी से तलाक लेने की इजाजत मिली है, जो एक पंथ से प्रभावित होकर 10 साल से अधिक समय से अपने वैवाहिक दायित्यों को पूरा नहीं कर रही थी. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि उसकी पत्नी ब्रह्मचर्य का पालन कर रही थी, जिसकी वजह से वह अपने पति के साथ एक दशक से यौन संबंध बनाने से भी इनकार कर रही थी.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने पति को पत्नी से तनाक लेने की मंजूरी दे दी है. हैरानी भरा ये केस अहमदाबाद शहर में सामने आया. इस जोड़े की शादी 2009 में हुई थी. पति एमडी है और पत्नी आयुर्वेद की डॉक्टर है. पति ने 2012 में ही पारिवारिक अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल की थी. इसमें उसने इस आधार पर क्रूरता का आरोप लगाया कि उसकी पत्नी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित थी और उसके साथ यौन संबंध से इनकार कर रही है.
फैमिली कोर्ट से नहीं मिली राहत
पारिवारिक अदालत में पति ने अपनी याचिका में ये भी कहा था कि उसकी पत्नी का कहना है कि अगर उसके साथ जबरदस्ती संबंध बनाने की कोशिश की जाती है, तो वह आत्महत्या कर लेगी. पति ने तर्क दिया कि उसे शादी के वक्त उसकी पत्नी की मानसिक स्थिति के बारे में नहीं बताया गया था. उसका कहना था कि इतनी बड़ी सच्चाई से दूर रखना भी एक तरह से क्रूरता करने जैसा है. 2018 में अदालत ने पति के दावों से इनकार कर दिया.
हार कर हाईकोर्ट पहुंचा पति
वहीं, जब पति को पारिवारिक अदालत से राहत नहीं मिली, तो वह हाईकोर्ट पहुंचा. यहां उसने अदालत को उन डॉक्टरों के बयान सबूत के तौर पर पेश किए, जो उसकी पत्नी का इलाज कर रहे थे. इसके अलावा उन गवाहों ने भी अदालत में बयान दिया, जिन्होंने पारिवारिक अदालत को बताया था कि याचिकाकर्ता की पत्नी 2011 से ही उसके घर में नहीं रह रही है.
हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया?
गुजरात हाईकोर्ट में जस्टिस बीरेन वैष्णव और जस्टिस निशा ठाकोर की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की. पीठ ने कहा कि पत्नी की बीमारी, वैवाहिक दायित्यों से दूरी और 12 सालों तक पति के घर से दूर रहना ही काफी है कि ये शादी टूट चुकी है और अब इसे बचाया नहीं जा सकता है. अदालत ने कहा कि ऐसी कोई वजह नहीं है कि तलाक नहीं दिया जा सकता है. अदालत ने पति को अपनी पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 5 लाख रुपये देने को भी कहा.
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