जम्मू-कश्मीर: भाषा, जमीन और पहचान को आरक्षित करने की कवायद में केंद्र, संसद से मंजूरी के बाद मिलेगी कानूनी मान्यता
जम्मू-कश्मीर की भाषा, पहचान और जमीन को सुरक्षित बनाने की कवायद की जा रही है.संसद से मंजूरी मिलने के बाद नए बदलाव को कानूनी मान्यता मिल जाने की उम्मीद है.

जम्मू-कश्मीर: सरकार सूबे की भाषा, जमीन, पहचान को सुरक्षित करने जा रही है. नए प्रावधानों को संसद की मंजूरी के बाद कानूनी मान्यता मिल जाएगी. प्रस्ताव मंजूर होने के बाद जम्मू-कश्मीर केंद्र के लोगों को अपनी भाषा, जमीन और पहचान आरक्षित करने को कानूनी मान्यता मिल जाएगी. केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए भी डोमिसाइल नीति की कवायद की जा रही है.
5 अगस्त 2019 को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था. इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर राज्य का दर्जा खत्म कर अलग दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था. एक अधिकारी ने कहा, "5 अगस्त को अनुच्छेद 370 के निरस्त करने के साथ बहुत कुछ नहीं किया जा सका है. अगर कुछ हटाया गया है तो मूल निवासियों की सुरक्षा के लिए उसकी जगह पर कुछ आना चाहिए."
जमीन, भाषा और पहचान को आरक्षित करने की पहल
उन्होंने संकेत दिया कि राज्य की पहचान, भाषा और जमीन की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने के लिए काम जारी हैं. उन्होंने कहा, "आपको सिर्फ अनुच्छेद 370 की जरूरत नहीं है बल्कि कई उपायों से पहचान को आरक्षित किया जा सकता है. जम्मू-कश्मीर में नई डोमिसाइल नीति लागू कर नौकरियों को मूल निवासियों के लिए ही आरक्षित किया गया है. अब अतिरिक्त सुरक्षा के पहलू अपनाए जा रहे हैं."
प्रस्तावित कानूनी तब्दीली बहुत पहले अमल में ला दिया जाता मगर कोरोना वायरस महामारी के चलते फैसले को टालने पर मजबूर होना पड़ा. जहां तक भाषा की सुरक्षा का सवाल है तो केंद्र शासिद प्रदेश की सरकारी भाषा उर्दू, हिंदी के साथ अंग्रेजी पर विचार किया जा रहा है. जम्मू-कश्मीर संविधान के मुताबिक अंग्रेजी और उर्दू राज्य की सरकारी भाषा हैं. जम्मू-कश्मीर रिऑर्गेनाइजेशन एक्ट की धारा 47 के मुताबिक राज्य की विधानसभा को किसी एक या ज्यादा भाषा को सरकारी भाषा बनाने का अधिकार है.
क्या जनसांख्यिकीय बदलाव का शक किया जा सकेगा दूर?
हिंदी को भी राज्य का सरकारी दर्जा दिलाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि उर्दू राज्य की संरक्षित क्षेत्रीय भाषा है. सूत्रों का कहना है कि जमीन को भी आरक्षित करने की कवायद की जा रही है. जिसके तहत राज्य में बाहरी लोगों के लिए जमीन को खरीद पाना मुश्किल हो जाएगा. इससे जनसांख्यिकीय बदलाव के शक को दूर किया जाना आसान होने की उम्मीद है.
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