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Farmers Protest: सामना में शिवसेना का मोदी सरकार पर हमला, लिखा- 'न्यायालय के कंधे पर रखकर चलाई बंदूक'

शिवसेना ने कहा- सरकार आंदोलनकारी किसानों को चर्चा में उलझाए रखना चाहती थी. किसानों ने उसे नाकाम कर दिया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानून पर स्थगनादेश के बावजूद यह ‘पेंच’ नहीं छुटा. शिवसेना ने कहा- सुप्रीम कोर्ट का निर्णय लाखों किसानों को स्वीकार नहीं होगा तो लाखों किसानों को देशद्रोही साबित करोगे क्या? किसानों का आंदोलन अब अधिक प्रभावी होने वाला है.

मुंबई: केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसान आंदोलन का आज 50वां दिन है. इस मामले पर पूरा विपक्ष शुरूआत से मोदी सरकार पर हमलावर है. इस बीच शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है. शिवसेना ने कहा है कि सरकार ने न्यायालय के कंधे पर बंदूक रखकर किसानों पर चलाई है, लेकिन किसान संगठन ‘करो या मरो’ के मूड में हैं.

सामना के संपादकीय में शिवसेना ने कहा, ‘’सुप्रीम कोर्ट ने तीन कृषि कानूनों को स्थगनादेश दे दिया है. फिर भी किसान आंदोलन पर अड़े हुए हैं. अब सरकार की ओर से कहा जाएगा, ‘देखो, किसानों की अकड़, सुप्रीम कोर्ट की बात भी नहीं मानते.’ सवाल सुप्रीम कोर्ट के मान-सम्मान का नहीं है बल्कि देश के कृषि संबंधी नीति का है. किसानों की मांग है कि कृषि कानूनों को रद्द करो. निर्णय सरकार को लेना है. सरकार ने न्यायालय के कंधे पर बंदूक रखकर किसानों पर चलाई है लेकिन किसान हटने को तैयार नहीं हैं.’’

किसान संगठन ‘करो या मरो’ के मूड में हैं- शिवसेना

सामना में आगे लिखा, ‘’किसान संगठनों और सरकार के बीच जारी चर्चा रोज असफल साबित हो रही है. किसानों को कृषि कानून चाहिए ही नहीं और सरकार की ओर से चर्चा के लिए आनेवाले प्रतिनिधियों को कानून रद्द करने का अधिकार ही नहीं है. किसानों के इस डर को समझ लेना आवश्यक है. सरकार सुप्रीम कोर्ट को आगे करके किसानों का आंदोलन समाप्त कर रही है. एक बार सिंघू बॉर्डर से किसान अगर अपने घर लौट गया तो सरकार कृषि कानून के स्थगन को हटाकर किसानों की नाकाबंदी कर डालेगी इसलिए जो कुछ होगा, वह अभी हो जाए. किसान संगठन ‘करो या मरो’ के मूड में हैं.’’

आंदोलन में खालिस्तान समर्थक घुस गए, यह बयान धक्कादायक- शिवसेना

शिवसेना ने कहा, ‘’सरकार आंदोलनकारी किसानों को चर्चा में उलझाए रखना चाहती थी. किसानों ने उसे नाकाम कर दिया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानून पर स्थगनादेश के बावजूद यह ‘पेंच’ नहीं छुटा. सुप्रीम कोर्ट ने किसानों से चर्चा करने के लिए चार सदस्यों की नियुक्ति की है. ये चार सदस्य कल तक कृषि कानूनों की वकालत कर रहे थे इसलिए किसान संगठनों ने चारों सदस्यों को झिड़क दिया है. सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि आंदोलन में खालिस्तान समर्थक घुस गए हैं! सरकार का यह बयान धक्कादायक है. आंदोलनकारी सरकार की बात नहीं सुन रहे इसलिए उन्हें देशद्रोही, खालिस्तानवादी साबित करके क्या हासिल करनेवाले हो? चीनी सैनिक हिंदुस्थान की सीमा में घुस आए हैं. उनके पीछे हटने की चर्चा शुरू है लेकिन किसान आंदोलनकारियों को खालिस्तान समर्थक बताकर उन्हें बदनाम किया जा रहा है.

शिवसेना ने आगे कहा, ‘’अगर इस आंदोलन में खालिस्तान समर्थक घुस आए हैं तो ये भी सरकार की असफलता है. सरकार इस आंदोलन को खत्म नहीं करवाना चाहती और इस आंदोलन पर देशद्रोह का रंग चढ़ाकर राजनीति करना चाहती है. तीन कृषि कानूनों का मामला संसद से संबंधित है. इस पर राजनीतिक निर्णय होना चाहिए लेकिन वकील शर्मा मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में याचक भक्त की भूमिका में खड़े हुए और न्यायालय से हाथ जोड़कर बोले, ‘माय लॉर्ड, अब आप ही परमात्मा हैं. आप ही इस समस्या का समाधान निकाल सकते हैं. किसान किसी की बात सुनने को तैयार नहीं हैं!’ लेकिन अब किसान सुप्रीम कोर्ट रूपी भगवान की भी सुनने को तैयार नहीं हैं क्योंकि उनके लिए जमीन का टुकड़ा ही परमात्मा है.’’

...तो लाखों किसानों को देशद्रोही साबित करोगे क्या?- शिवसेना

शिवसेना ने कहा, ‘’एक तरफ किसानों को खालिस्तानी कहना और दूसरी तरफ खालिस्तानी किसानों के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचना करना, ये दोहरी भूमिका क्यों? सुप्रीम कोर्ट का निर्णय लाखों किसानों को स्वीकार नहीं होगा तो लाखों किसानों को देशद्रोही साबित करोगे क्या? किसानों का आंदोलन अब अधिक प्रभावी होने वाला है. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसान एक बड़ी ट्रैक्टर रैली निकालकर दिल्ली में घुसने का प्रयास करेंगे. ये आंदोलन न होने पाए और माहौल ज्यादा खराब न हो, ऐसा सरकार को लग रहा होगा तो सरकार की भावनाओं को समझना चाहिए. दूसरे के कंधे को किराए पर लेकर किसानों पर बंदूक मत चलाओ.’’

शिवसेना ने कहा, ‘’सरकार द्वारा कृषि कानून रद्द किए जाने पर हम वापस घर लौट जाएंगे, किसान बार-बार ऐसा कह रहे हैं. अब तक 60-64 किसानों ने आंदोलन में बलिदान दिया है. आजादी के बाद पहली बार इतना कठोर और अनुशासित आंदोलन हुआ है. इस आंदोलन, किसानों की हिम्मत और जिद का प्रधानमंत्री मोदी को स्वागत करना चाहिए. कृषि कानून रद्द करके किसानों का सम्मान करना चाहिए. मोदी आज जितने हैं, उससे भी बड़े हो जाएंगे. मोदी, बड़े बनो!’’

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