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आंकड़ों के जरिए समझिए: बेरोजगार होते मनरेगा मजदूरों से लेकर किसानों तक का हाल बेहाल

अगर चार साल बाद बीजेपी सरकार अपनी उपलब्धियां गिना रही है तो पहला सवाल किसान-गरीब-मजदूर का ही है कि क्या वास्तव में उनके दिन बदल गए?

नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में अपने पहले भाषण में सिर्फ गरीब-किसान-गांव-मजदूर और हाशिए पर पड़े लोगों के विकास का जिक्र करते हुए भरोसा यही जगाया था कि देश में किसानों और गरीबों के अच्छे दिन आने वाले हैं. पहली बार लगा कि गरीबी हटाओ का नारा एक जुमले से आगे निकलने वाला है. पीएम मोदी ने किसानों-मजदूरों और गरीबों के लिए योजनाओं का एलान भी खूब किया.

 सॉयल हेल्थ कार्ड ,  क्या इस स्कीम का नाम तक नहीं सुना? अब अगर चार साल बाद बीजेपी सरकार अपनी उपलब्धियां गिना रही है तो पहला सवाल किसान-गरीब-मजदूर का ही है कि क्या वास्तव में उनके दिन बदल गए? मसलन हेल्थ सॉयल कार्ड का उदहरण लें जिसका जोरशोर से मोदी सरकार प्रचार करती है. पर बीजेपी शासित राजस्थान के श्रीगंगानगर के किसान, यूपी के मेरठ के किसान, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सटे धुसेरा गांव के किसान यानी ऐसे किसान हैं जिन्होंने आजतक सॉयल हेल्थ कार्ड का नाम ही नहीं सुना.

फसल बीमा योजना का नहीं मिला सही फायदा लेकिन मसला किसी एक योजना का नहीं है जिसकी सफलता जमीन पर कठघरे में है. फसल बीमा योजना का डंका सरकार खूब पीट रही है लेकिन सच ये है कि मुआवजे के चंद रुपयों पर आकर ये योजना टिक गई. दावा किसानों की आय दोगुनी करने का हुआ पर किसानों को उनकी फसल की लागत तक नहीं मिल पा रही है. मध्य प्रदेश में जहां न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीदे जाने का हल्ला है वहां किसान पांच पांच दिन लाइन में लगा रहता है. वहीं की कृषि उपज मंडी में ऐसे हालात बन गए कि किसानों ने जमकर नारेबाजी की तो किसानों की आय दोगुनी होने का वादा कहां सच हुआ ये बड़ा सवाल है.

मोदी राज में रुकी नहीं किसानों की खुदकुशी एक और सवाल है कि हालात बदले हैं तो कहां क्योंकि किसानों की खुदकुशी मोदी राज में रुकी नहीं अलबत्ता बढ़ ही गई है. कृषि विकास दर के आंकड़े देखकर ऐसा कुछ नहीं लगता जिसे क्रांतिकारी माना जा सके. साल 2014-15 में जहां 0.2 फीसदी कृषि दर है वहीं 2015-16 में 1.2 फीसदी कृषि दर हो गई. साल 2016-17 में 4.9 फीसदी कृषि दर रही और साल 2017-18 में 2.1 फीसदी की संभावित कृषि दर आ सकती है.

मजदूरों-गरीबों के हाल भी बेहाल मजदूरों से लेकर गरीबों का भी यही हाल है क्योंकि मजदूरों के लिए मनरेगा स्कीम में ही ऐतिहासिक बजट देकर सरकार ने जताया यही कि उनका हाल बदल जाएगा.

बेरोजगार होते मनरेगा मजदूर कुल मनरेगा मजदूर - 25,17,00,000 जॉब कार्ड धारक - 12,65,0000 काम मिला- 4,86,41,132 100 दिन काम- 27,38,364

मनरेगा में भी मजदूरों के पेमेंट बकाया लेकिन सच यही है कि 100 दिन काम भी ख्वाब हो लिया है. 10 फीसदी मजदूरों को भी 100 दिन काम नहीं मिल रहा और जिन्हें काम मिला उनका पेमेंट नहीं हो रहा. कई राज्यों पर मनरेगा मजदूरों का करोड़ों बकाया है. लेकिन पेमेंट नहीं हो रहा तो मजदूरों के सामने जीने-मरने का संकट खड़ा है. चिंता सुप्रीम कोर्ट जता रहा है.

उत्‍तर प्रदेश : 11239 करोड़ रुपए नॉर्थ ईस्‍ट स्‍टेट : 9695 करोड़ रुपए पश्चिम बंगाल : 6604 करोड़ रुपए बिहार : 5572 करोड़ रुपए कर्नाटक : 4550 करोड़ रुपए मध्‍यप्रदेश : 4327 करोड़ रुपए आंध्रप्रदेश : 4294 करोड़ रुपए महाराष्‍ट्र : 4152 करोड़ रुपए राजस्‍थान : 2549 करोड़ रुपए तेलंगाना : 2454 करोड़ रुपए अन्‍य : 12522 करोड़ रुपए

नोटबंदी के दौर में कई मजदूरों की गई नौकरी तो किसान-मजदूर यकीन करें कैसे कि सरकार सिर्फ और सिर्फ उनके लिए सोच रही है क्योंकि एक सच मनरेगा मजदूरों से इतर असंगठति क्षेत्र के मजदूरों का भी है जिनकी नोटबंदी के दौर में नौकरी चली गई और उनमें से कइयों को आजतक नौकरी मिल नहीं पाई.

घोषणाओं का सच अपनी जगह है लेकिन जमीन की सच्चाइयां उतनी सुनहरी तो नहीं हैं जितना सरकार दावा करती है. क्योंकि अगर ये सच होता तो बार बार किसानों का आंदोलन जमीन पर नहीं दिखता. इस बार एक जून से 10 जून तक चार राज्यों में किसान सड़क पर उतरने जा रहे हैं और किसानों ने तो चेतावनी दी है कि आंदोलन के दौरान फल-सब्जी-दूध की आपूर्ति भी रोकेंगे यानी किसानों में गुस्सा तो है. तो क्या चार साल पहले प्रधानमंत्री मोदी का दिया भाषण रिजल्ट दे नहीं पाया यही कहा जाए या 2019 का इंतजार किया जाए और देखा जाए कि किसानों और मजदूरों की हालत में कितना बदलाव आया है.

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