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Bengaluru Blast Case: आपराधिक मामले में निष्पक्ष सुनवाई केवल आरोपियों तक सीमित नहीं, बेंगलुरु ब्लास्ट केस पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

Supreme Court On Bengaluru Blast Case: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के आदेशों को रद्द कर दिया. पीठ ने अभियोजन पक्ष को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से संबंधित एक रिपोर्ट साबित करने की अनुमति दे दी.

SC On Bengaluru Blast Case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी आपराधिक मामले में निष्पक्ष सुनवाई का मतलब यह नहीं है कि यह केवल अभियुक्तों के प्रति निष्पक्ष होनी चाहिए, आपराधिक कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी दोषी छूट न जाए और किसी निर्दोष को दंडित न किया जाए. जस्टिस  विक्रम नाथ और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ की ये टिप्पणियां पिछले एक फैसले पर आईं.

चूंकि अदालत ने बेंगलुरु में 2008 के सिलसिलेवार बम विस्फोटों की सुनवाई के संबंध में अभियोजन पक्ष को कुछ इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य साबित करने की अनुमति दी थी. 25 जुलाई 2008 को शहर भर में सात बम विस्फोटों के बाद एक महिला की मृत्यु हो गई और लगभग 30 घायल हो गए. दक्षिण बेंगलुरु के मदीवाला में एक बस स्टॉप पर हुए इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) में से एक विस्फोट से 32 वर्षीय महिला की मौत हो गई.

हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के आदेश को किया रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के उन आदेशों को रद्द कर दिया जिसमें जांच के दौरान एकत्र किए गए इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की तुलना में प्रामाणिकता प्रमाणपत्र को रिकॉर्ड पर लेने से इनकार कर दिया था. पीठ ने माना कि अभियोजन पक्ष को साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी के तहत प्रमाण पत्र पेश करने की अनुमति देने से आरोपी के प्रति कोई अपरिवर्तनीय पूर्वाग्रह नहीं पैदा होगा.

पीठ ने अभियोजन पक्ष को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से संबंधित एक रिपोर्ट साबित करने की अनुमति देते हुए कहा, “अधिनियम की धारा 65-बी के तहत एक प्रमाण पत्र, जिसे अभियोजन पक्ष की ओर से पेश करने की मांग की गई है, वह सबूत नहीं है जो अभी बनाया गया है. ये किसी रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर साबित करने की कानून की जरूरत को पूरा करता है. अभियुक्तों के पास अभियोजन पक्ष के सबूतों का खंडन करने का पूरा अवसर होगा.”

‘सच तक पहुंचना ही उद्देश्य’

जांचकर्ताओं ने लैपटॉप, पेन ड्राइव, हार्ड ड्राइव, मेमोरी कार्ड और डिजिटल कैमरे सहित अन्य चीजें जब्त कर लीं, जिन्हें अभियोजन पक्ष ने अधिनियम के तहत रिकॉर्ड पर एक प्रामाणिकता प्रमाण पत्र रखकर मुकदमे के दौरान साबित करने की मांग की थी. पीठ ने सीआरपीसी की धारा 311 का जिक्र करते हुए रेखांकित करते हुए कहा, “आपराधिक मामले में निष्पक्ष सुनवाई का मतलब यह नहीं है कि यह किसी एक पक्ष के लिए निष्पक्ष होना चाहिए. बल्कि उद्देश्य यह है कि कोई भी दोषी छूट न पाए और किसी निर्दोष को सजा न मिले. संहिता (आपराधिक प्रक्रिया) का उद्देश्य सत्य तक पहुंचना है.''

उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि 2008 के बेंगलुरु विस्फोटों ने न केवल शहर या राज्य बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. अदालत ने कहा, "ऐसे आतंकवादी हमलों में केवल निर्दोष लोग ही पीड़ित होते हैं और दोषियों को सजा दिलाने के लिए "जांच वैज्ञानिक होनी चाहिए."

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