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भारत के चंद्रयान-3 की सुरक्षित लैंडिंग के लिए अमेरिका और यूरोप क्यों कर रहे हैं मदद, क्या कोई खजाना छिपा है?

यूरोपीयन स्पेस ऑपरेशन सेंटर डार्मस्टेड के ग्राउंड ऑपरेशन इंजीनियर रमेश चेल्लाथुराई कहते हैं कि, 'ESA चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के वक्त से भारत की मदद कर रहा है. कैसे, जानते हैं इस रिपोर्ट में.

भारत आज इतिहास रचने की तैयारी कर रहा है. इस देश ने 14 जुलाई को चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च किया था जो कि आज शाम 6 बजे के आसपास चांद की सतह पर लैंड करने वाला है.  इस मिशन को सफल बनाने और सेफ लैंडिंग के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) और यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) भी इसरो की मदद कर रहा है. 

दरअसल द हिंदू की रिपोर्ट में यूरोपीयन स्पेस ऑपरेशन सेंटर डार्मस्टेड के ग्राउंड ऑपरेशन इंजीनियर रमेश चेल्लाथुराई कहते हैं कि, 'ESA चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के वक्त से भारत की मदद कर रहा है. उन्होंने बताया कि यूरोपीय स्पेस एजेंसी  ESTRACK नेटवर्क में दो ग्राउंड स्टेशन का इस्तेमाल  कर चंद्रयान की कक्षा में ट्रैक कर और अंतरिक्ष यान से टेलीमेट्री डेटा प्राप्त कर इसकी जानकारी इसरो को दे रहा है.  

अब समझते हैं कि ESA कैसे कर रहा है इसरो की मदद 

रमेश चेल्लाथुराई कहते हैं कि जब चंद्रयान-3 मिशन की शुरुआत हुई थी उस वक्त फ्रेंच गुयाना में ESA के 15 मीटर एंटीना और यूके के गोनहिली अर्थ स्टेशन के 32 मीटर एंटीना को हाई टेक्नोलॉजी से लैस होने के कारण इस मिशन की मदद के लिए चुना गया था. चेल्लाथुराई बताते हैं कि ये दोनों ही स्टेशन शुरुआत से ही चंद्रयान-3 मिशन के साथ रहे हैं. इन दोनों स्टेशन के कारण ही बेंगलुरु में मिशन संचालन की एक पूरी टीम और चंद्रयान-3 उपग्रह के बीच एक पूरा चैनल उपलब्ध हो पा रहा है. 

ऑस्ट्रेलिया के न्यू नॉर्सिया में ESA का 35 मीटर लंबा एंटीना और  ESTRACK नेटवर्क का तीसरा ग्राउंड स्टेशन, चंद्रयान-3 के लैंडिंग के दौरान लैंडर मॉड्यूल को ट्रैक करने और उसके साथ संचार स्थापित करने में भारत की मदद करेगा. 

रमेश चेल्लाथुराई ने बताया कि लैंडिंग के वक्त चांद की सतह पर पहुंचने के बाद सॉफ्ट लैंडिंग हुई या नहीं इस जानकारी के लिए इसी टेलीमेट्री का इस्तेमाल किया जाएगा. अंतरिक्ष मिशन के महत्वपूर्ण क्षणों जैसे लैंडिंग के दौरान इस तरह का बैक-अप समर्थन बहुत कॉमन है. सफल लैंडिंग के बाद, मिशन के रोवर द्वारा इकट्ठा किए गए डेटा को लैंडर मॉड्यूल के जरिए ग्राउंड स्टेशनों तक भेजा जाएगा. इस डेटा को कौरौ और गोनहिली का एंटिना कैच करेगा और फिर इसे  प्राप्त बेंगलुरु में मिशन संचालन केंद्र को भेज दिया जाएगा. 

पूरी दुनिया की टिकी है नजर 

2 दिन पहले ही चांद के इसी सतह पर लैंड करते हुए लूना- 25 क्रैश हो गई थी. जिसके बाद पूरी दुनिया की निगाहें मिशन चंद्रयान-3 पर टिकी हुई है. ये जगह चांद के उस हिस्से से काफ़ी अलग और रहस्यमयी है जहां अब तक दुनिया भर के देशों की ओर से स्पेस मिशन भेजे गए हैं.

कितना खतरनाक है चांद का दक्षिणी ध्रुव

अब तक चांद पर जितने भी मिशन हुए हैं वह अधिकांश इसके भूमध्यरेखीय क्षेत्र में हुए हैं. जहां की जमीन दक्षिणी ध्रुव की तुलना में सपाट है. जबकि दक्षिणी ध्रुव पर कई ज्वालामुखी हैं और यहां की जमीन काफी ऊबड़-खाबड़ भी है. चंद्रयान-3 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव की जो तस्वीरें भेजी हैं, उनसे ये लग रहा है कि वहां काफी गड्ढे और उबड़-खाबड़ ज़मीन है.

चांद का दक्षिणी ध्रुव पर करीब ढाई हज़ार किलोमीटर चौड़ी और आठ किलोमीटर गहरे गड्ढे है जिसे सौरमंडल का सबसे पुराना इंपैक्ट क्रेटर माना जाता है. इंपैक्ट क्रेटर किसी भी ग्रह या उपग्रह में उन गड्ढों को कहा जाता है जो किसी बड़े उल्का पिंड या ग्रहों की टक्करों से बनता है.

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के प्रोजेक्ट साइंटिस्ट नोहा पेट्रो चंद्रयान - 3 ते उस जगह तक पहुंचने की अहमियत को बताते हुए कहते  हैं, "ध्रुव पर उतरकर आप इस क्रेटर और इसकी अहमियत को समझना शुरू कर सकते हैं." वहीं नासा के मुताबिक़, चंद्रमा के साउथ पोल पर सूर्य क्षितिज के नीचे या हल्का सा ऊपर रहता है.

क्या खजाना छिपा है वहां पर

एक सवाल सबके मन में हैं कि चांद पर जाने के लिए लाखों करोड़ो खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इसके पीछे की वजह क्या है. दरअसल भारत का चंद्रयान जिस जगह पर उतरने वाला है वह चंद्रमा का दक्षिणी छोर पर है. वहां लाखों सालों से बर्फ जमी है. हो सकता है कि वहां कि मिट्टी में कुछ ऐसे तत्व हों जो आज तक बिलुकल वैसे ही हों. इसके साथ ही अगर वहां बर्फ जमी है तो पानी भी हो सकता है. पानी होने पर वहां जीवन की संभावना भी हो सकती है. अमेरिका सहित पूरी दुनिया के वैज्ञानिक चांद पर बस्ती बसाने का भी सपना देख रहे हैं. इस लिहाज से चंद्रयान-3 जो भी खोजेगा वह पूरी दुनिया के लिए अहम होगा. इसके साथ जो देश चांद तक जाने का खर्चा नहीं उठा सकते हैं उनके लिए भी चंद्रयान-3 का डाटा काफी अहम हो सकता है. भारत ऐसे देशों को ये डाटा बेंच भी सकता है. 

एक अनुमान के मुताबिक प्राइस वाटर हाउस कूपर की मानें तो 2040 तक मून इकोनॉमी 42 हजार करोड़ डॉलर तक हो जाएगी. इतना ही नहीं दुनिया की कई बड़ी कंपनियां चांद में कार्गो भेजने की भी तैयारी कर रही हैं. इतना ही नहीं चांद पर भी अयष्कों के खनन की भी संभावना है. कुल मिलाकर मून इकोऩॉमी एक बड़ा रास्ता खोल सकती है और इस बाजार का वही राजा होगा जिसके पास जानकारी होगी.

इस क्षेत्र में आज तक क्यों नहीं पहुंच पाया कोई देश 

चांद्रमा के साउथ पोल पर बड़े-बड़े पहाड़ों और कई गड्ढे (क्रेटर्स) हैं. यहां सूरज की रोशनी भी बहुत कम पड़ती है. चांद के जिन हिस्सों पर सूरज की रोशनी पड़ती है उन हिस्सों का तापमान अमूमन 54 डिग्री सेल्सियस तक होता है. लेकिन जहां रोशनी नहीं पड़ती, वहां का तापमान -248 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. नासा ने तो यहां तक दावा किया है कि दक्षिणी ध्रुव पर कई ऐसे क्रेटर्स हैं जो अरबों साल से अंधेरे में डूबे हुए हैं और यहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पड़ी.

चंद्रयान-3 का मकसद क्या है 

मिशन चंद्रयान-3 का पहला मकसद तो फिलहाल विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग करना है. चंद्रयान-3 का दूसरा मकसद प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर चलाकर दिखाना है और इसका तीसरा मकसद वैज्ञानिक परीक्षण करना है.

 

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