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Delimitation: 'जल्दी-जल्दी बच्चे पैदा करो' परिसीमन पर आया मजेदार तंज; जानें तमिलनाडु सीएम ने क्यों कही यह बात

MK Stalin's Delimitation Jab: साल 2026 के बाद अगर परिसीमन होता है तो दक्षिणी राज्यों का प्रतिनिधित्व संसद में घट जाएगा. तमिलनाडु में इसे लेकर अभी से विरोध के स्वर तेज हो गए हैं.

MK Stalin's Delimitation Jab: दक्षिण भारतीय राज्यों से परिसीमन के विरोध को लेकर पिछले कुछ दिनों में कई बयान सामने आए हैं. दक्षिण के सभी विपक्षी दलों के नेता परिसीमन के खिलाफ हैं. विरोध के स्वर तमिलनाडु में सबसे तेज हैं. सीएम एमके स्टालिन इस मुद्दे पर लगातार केंद्र पर निशाना साध रहे हैं. अब उन्होंने एक नए अंदाज में परिसीमन का विरोध किया है. एमके स्टालिन ने एक शादी समारोह में परिसीमन पर मजेदार तंज कसते हुए वर-वधू को जल्दी बच्चे पैदा करने की सलाह दे डाली ताकि तमिलनाडु को भी परिसीमन का लाभ मिल सके. 

नागपट्टिनम में DMK के जिला सचिव के विवाह समारोह में स्टालिन ने कहा, 'मैं पहले नवविवाहितों से फैमिली प्लानिंग के लिए थोड़ा वक्त लेने को कहता था, लेकिन अब परिसीमन जैसी नीतियों के कारण जिसे केंद्र सरकार लागू करने की योजना बना रही है, मैं ऐसा नहीं कहूंगा. तमिलनाडु में हमने परिवार नियोजन पर ध्यान केंद्रित किया और जनसंख्या नियंत्रित करने में सफल रहे, लेकिन इस मामले में हमारी सफलता ने ही हमें मुश्किल परिस्थिति में डाल दिया है. इसलिए मैं अब नवविवाहितों से कहूंगा कि वे जल्दी-जल्दी बच्चे पैदा करें.'

क्या है परिसीमन?
परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है. इसके आधार पर देश में लोकसभा और विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्रों का आकार और संख्या तय होती है. हर जनगणना के बाद इसे किए जाने का प्रावधान है क्योंकि आबादी के हिसाब से ही निर्वाचन क्षेत्र तय होते हैं. हालांकि पिछले 50 सालों से इसे रोक दिया गया. पहले साल 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने संविधान संशोधन कर इस पर 25 साल के लिए रोक लगाई. इसके बाद अटल सरकार ने साल 2001 में इसे 25 सालों के लिए टाल दिया. अब साल 2026 में यह वक्त पूरा हो जाएगा. ऐसे में इस बार परिसीमन प्रक्रिया शुरू हो सकती है.

स्टालिन ने क्यों कसा यह तंज?
परिसीमन में आबादी के हिसाब से राज्यों में लोकसभा सीटें आवंटित होंगीं. ऐसे में उत्तर भारतीय राज्यों के हिस्से में ज्यादा सीटें आएंगी क्योंकि दक्षिण के मुकाबले उत्तर भारत में जनसंख्या में ज्यादा बढ़ोतरी हुई है. एक अनुमान के मुताबिक प्रति 20 लाख आबादी पर एक लोकसभा सीट तय की जाए तो देश में 543 की जगह 753 लोकसभा सीटें होंगी. ऐसे में दक्षिण और उत्तर भारत के सीट अनुपात में बड़ा फर्क आएगा.

दक्षिण भारत के 5 राज्यों (तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल) में वर्तमान में लोकसभा की 129 सीटें हैं. यानी लोकसभा की कुल 543 सीटों को 24% सीटें दक्षिण भारतीय राज्यों से आता है. नए परिसीमन के बाद इन पांच राज्यों में 15 सीटों का इजाफा होगा और कुल सीटें 144 हो सकती हैं लेकिन कुल 743 सीटे होने के कारण लोकसभा में तब दक्षिण भारतीय राज्यों का प्रतिनिधित्व केवल 19 फीसदी रह जाएगा. यानी 5 प्रतिशत की कटौती हो जाएगी.

वहीं, उत्तर भारत के कुछ राज्यों की लोकसभा सीटों में बहुत ज्यादा इजाफा होगा. यूपी में 80 से 128, बिहार में 40 से 70, मध्य प्रदेश में 29 से 47, राजस्थान में 25 से 44 लोकसभा सीटें हो जाएंगी. इसी तरह बाकी उत्तर भारतीय राज्यों में भी लोकसभा सीटों की संख्या में भारी बढ़ोतरी होगी. यही कारण है कि स्टालिन ने बच्चे पैदा करने के लिए तंज कसा क्योंकि जिन राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान नहीं दिया, वहां परिसीमन का फायदा मिलेगा. 

दक्षिण भारतीय राज्य परेशान क्यों?
दरअसल, लोकसभा में परिसीमन के बाद उत्तर भारतीय राज्यों का प्रतनिधित्व बढ़ेगा और दक्षिण भारत का कम होगा. ऐसे में दक्षिणी राज्यों को डर है कि केंद्र सरकारें उत्तर भारतीय राज्यों पर ही ज्यादा फोकस करेंगी. इस तरह के उदाहरण वर्तमान में भी दिखते रहे हैं. उत्तरी राज्यों में ज्यादा लोकसभा सीटों के कारण इन इलाकों में केंद्र ज्यादा फंड दे रहा है. तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों से केंद्र को जो टैक्स मिलता है, उसका 30 फीसदी ही इन राज्यों पर रिटर्न खर्च हो रहा है, जबकि यूपी-बिहार टैक्स में जो योगदान देते हैं, उसके मुकाबले उन्हें केंद्र सरकार 250 से 300% दे रहे हैं. दक्षिणी राज्य इसे लेकर लगातार सवाल भी उठाते रहे हैं.

एक पहलू यह भी है कि उत्तर भारत में बीजेपी काफी मजबूत है. अगर लोकसभा में उत्तरी राज्यों का प्रतिनिधित्व और बढ़ता है तो ऐसे में बीजेपी की ताकत भी बढ़ जाएगी. उधर, दक्षिण के क्षेत्रीय दल जैसे डीएमके, टीआरएस, टीडीपी जैसे पार्टियों का राष्ट्रीय राजनीति में प्रभुत्व लगभग समाप्त हो जाएगा.

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