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बिहार में फिर से होगा कोई बड़ा खेल! आखिर क्या है नीतीश-तेजस्वी की 'खास' मुलाकात के मायने

Nitish-Tejaswi Meeting: बिहार के सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर बिहार की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की मुलाकात हुई. इसे लेकर अटकलों का बाजार गरम हो चुका है.

Nitish Kumar Tejaswi Yadav Meeting: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव ने मंगलवार (3 सितंबर 2024) को पटना स्थित सचिवालय में लगभग आधे घंटे तक मुलाकाता हुई. इसे लेकर अब बिहार सहित देशभर की राजनीति में अटकलों का दौर शुरू हो गया है. ऐसे में सवाल है कि क्या बिहार में फिर से कोई बड़ा खेल होने जा रहा है? क्या बिहार में फिर से किसी बड़े नेता की अंतरात्मा जाग रही है? क्या बिहार फिर से पूरे देश की राजनीति का केंद्र बनने जा रहा है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि दोनों धुर विरोधी करीब आठ महीने के बाद एक-दूसरे से मिले. 

दोनों नेताओं के बातचीत में जो सामने निकल कर आ रहा है, वो अभी तक तो बस इतना भर ही है कि मुलाकात सूचना आयुक्त की नियुक्ति को लेकर हुई है, लेकिन क्या सच में बात सिर्फ इतनी ही है या फिर बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर की सक्रियता और नीतीश कुमार की चुप्पी ने ऐसी संभावनाओं को जन्म दे दिया है, जिससे इस मुलाकात में हुई खास बातचीत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

बिहार के सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए हुई मुलाकात

अगर आधिकारिक बयान को ही सच मानें तो ये मुलाकात सिर्फ इस वजह से हुई है, क्योंकि सरकार को सूचना आयुक्त की नियुक्ति करनी थी और सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए जो कमिटी बनती है, उसमें मुख्यमंत्री उसके अध्यक्ष होते हैं. बाकी कमिटी में नेता प्रतिपक्ष के अलावा मंत्रिमंडल के भी सदस्य होते हैं. मुख्यमंत्री होने के नाते नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष होने के नाते तेजस्वी यादव ने मिलकर बिहार के सूचना आयुक्त की नियुक्ति की है. कुछ दिनों में सरकार की ओर से उस नाम का आधिकारिक ऐलान भी हो ही जाएगा, लेकिन असल सवाल उस बातचीत का है, जो सूचना आयुक्त की नियुक्ति से इतर हुई है और जिसका जिक्र तेजस्वी यादव ने पत्रकारों से भी किया है.

इस मुद्दे पर साथ थे नीतीश-तेजस्वी

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव जिस मामले का जिक्र कर रहे हैं और कोर्ट का हवाला दे रहे हैं, वो बिहार की जातिगत जनगणना और उसके बाद आए आरक्षण का मसला है, जो अदालत में है. असल में जब सीएम नीतीश कुमार आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ थे, तो दोनों ने मिलकर बिहार में जातिगत जनगणना करवाई. हर कानूनी दांव-पेच का जवाब देते हुए नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना का आंकड़ा भी जारी कर दिया. जब इन आंकड़ों के आधार पर लगा कि पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी कम है तो आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 50 फीसदी से 65 फीसदी कर दी.

सीएम नीतीश कुमार ने कैबिनेट से प्रस्ताव पास करवाया कि अभी तक बिहार में पिछड़ा और अति पिछड़ा को मिलाकर जो आरक्षण 30 फीसदी था, उसे 43 फीसदी किया जाएगा. अनुसूचित जाति को जो 16 फीसदी का आरक्षण था उसे बढ़ाकर 20 फीसदी किया जाएगा और अनुसूचित जनजाति को जो आरक्षण 1 फीसदी का था, उसे बढ़ाकर 2 फीसदी किया जाएगा. यानी कि कुल आरक्षण 65 फीसदी का हो जाएगा. बाकी 10 फीसदी का ईडब्ल्यूएस का आरक्षण तो रहेगा ही रहेगा, जिसका मतलब है कि बिहार में कुल आरक्षण 75 फीसदी का होगा. 21 नवंबर 2023 को इस फैसले का गजट नोटिफिकेशन भी हो गया, लेकिन 20 जून 2024 को पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की बेंच ने नीतीश कुमार के फैसले को खारिज कर दिया और आरक्षण पर रोक लगा दी.

नीतीश-तेजस्वी में हुई बात बढ़ न जाए आगे

अब मामला कोर्ट में है और बिहार सरकार चाहती है कि इस मसले को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाल दिया जाए. अगर ऐसा होता है तो फिर बिहार सरकार के फैसले की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकेगी. यानि कि अदालत के हाथ बंध जाएंगे. तेजस्वी यादव ने जो कहा है, उसका लब्बोलुआब तो यही है, लेकिन बात यहां खत्म नहीं होती है, जहां तेजस्वी ने खत्म की है, बल्कि बात तो यहां से शुरू होती है. क्योंकि यही वो मसला है, जिस पर बीजेपी के साथ सरकार चला रहे नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव से मुलाकात के बाद गठबंधन तोड़ लिया था और महागठबंधन के मुख्यमंत्री बन गए थे. अब एक बार फिर से इसी मसले पर नीतीश-तेजस्वी की बात हुई है तो कहीं ये बात आगे न बढ़ जाए.

प्रशांत किशोर के निशाने पर हैं तेजस्वी यादव

अब बिहार विधानसभा चुनाव में करीब एक साल का ही वक्त बचा है. इस वक्त बिहार में प्रशांत किशोर के तौर पर एक ऐसा नेता ऐक्टिव है, जिसके निशाने पर तो अभी तेजस्वी यादव ही हैं, लेकिन नीतीश भी प्रशांत किशोर के कोप से कभी अछूते नहीं रहे हैं. जब-जब नीतीश कुमार ने पलटी मारी है, प्रशांत किशोर हमलावर रहे हैं. वो तो यहां तक कह चुके हैं कि अब नीतीश कुमार की राजनीति खत्म हो गई है. हालांकि जब-जब किसी ने नीतीश कुमार के खत्म होने की बात की है, वो धूल झाड़कर खड़े हो गए हैं और बताते गए हैं कि अभी बिहार में तो नीतीश कुमार के बिना किसी की भी राजनीति नहीं चल सकती है चाहे वो बीजेपी हो या फिर आरजेडी.

नीतीश कुमार अपनी पार्टी को करना चाहते मजबूत

लोकसभा चुनाव में बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बन चुके नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव में भी कम से कम इस हैसियत में तो आना ही चाहते हैं कि उनके विधायकों के संख्या बल के आधार पर न तो बीजेपी उन्हें आंख दिखा सके और न ही आरजेडी. लिहाजा अभी नीतीश कुमार शायद ये तय करने में लगे हैं कि किसके साथ उनकी जेडीयू का गठजोड़ उनकी पार्टी को कम से कम 80 सीटों तक पहुंचा देगा. 

सीएम नीतीश कुमार जिस दिन नतीजे पर पहुंच जाएंगे, सारी बातें खत्म हो जाएंगी, लेकिन जब तक नीतीश कुमार चुप्पी साधे हुए हैं और खास तौर से आरजेडी के खिलाफ कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहे हैं और जब तक तेजस्वी यादव भी जेडीयू और खास तौर से नीतीश कुमार पर उतने तीखे हमले नहीं कर रहे हैं, तब तक बिहार में नई संभावनाओं के द्वार तो खुले ही हुए हैं और हालिया मुलाकात इस बात का संकेत भी देती है. आखिर यूं ही थोड़े ही उस सियासी जुमले को अब भी घिसा जाता है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है और राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है.

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