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Age Of Consent: क्या भारत में घटेगी सहमति की उम्र, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया क्यों चाहते हैं ऐसा, Age Of Consent से जुड़े विरोधाभास को जानें

Age Of Consent: भारत में Age Of Consent का मुद्दा बेहद ही संवेदनशील है. हाल फिलहाल में सुप्रीम कोर्ट समेत कई हाईकोर्ट ने भी इसे 18 से घटाकर 16 साल करने के लिए संसद से विचार करने की बात कही है.

CJI Age Of Consent: भारत में सेक्स के लिए सहमति (Age Of Consent) की उम्र क्या हो, ये चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ के पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) को लेकर ताजा बयान के बाद एक बार फिर से सुर्खियों में है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत सहमति की उम्र 18 वर्ष है और इससे ऐसे मामलों से निपटने वाले जजों के सामने कठिन प्रश्न खड़े हो जाते हैं. उनका मानना है कि इस मुद्दे पर बढ़ती चिंता तो देखते हुए विधायिका यानी संसद को विचार करने की जरूरत है.

सुनवाई के दौरान जजों के समाने कठिन सवाल

चीफ जस्टिस ने सहमति से बने रोमांटिक रिश्तों के मामलों को पॉक्सो एक्ट के दायरे में शामिल करने से हो रही दिक्कतों पर चिंता जाहिर की है. मुख्य न्यायाधीश का मानना है कि पॉक्सो एक्ट से तय सहमति की उम्र पर संसद को गौर करना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने 10 दिसंबर को दिल्ली में POCSO Act पर यूनिसेफ (UNICEF) के सहयोग से सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की ओर से आयोजित कार्यक्रम में ये बातें कहीं. इस कानून के बने हुए 10 साल हो गए हैं. इससे जुड़े मामलों के निपटारे में जजों के सामने सहमति की उम्र की वजह से कई परेशानियां आ रही हैं.

2012 में सहमति की उम्र 16 से 18 साल की गई

दरअसल POCSO Act, 2012 के जरिए देश में सहमति से सेक्स की उम्र को 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष की गई थी. सहमति से किशोरों के बीच यौन गतिविधियों में शामिल होने से जुड़े मामलों पर चीफ जस्टिस ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत नाबालिगों के बीच किसी भी तरह की सेक्सुअल एक्टिविटी अपराध है, चाहे इसमें नाबालिगों के बीच सहमति ही क्यों न हो. इस कानून की धारणा है कि 18 साल से कम उम्र के लोगों के बीच सेक्स के लिए दी गई सहमति, सहमति नहीं मानी जाएगी.

अदालतें सहमति की उम्र घटाने के पक्ष में

कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने भी कहा था कि एक रिश्ते में शामिल 17 साल के लड़के और लड़कियां जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं और इसके नतीजों से भी परिचित होते हैं. इसलिए उन पर मुकदमा चलाना सही नहीं है. हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने भी किशोरों के बीच प्रेम संबंधों से जुड़े मामलों को सही तरीके से निपटाने के लिए पॉक्सो कानून के तहत सहमति की उम्र पर विचार करने की जरूरत बताई थी.

दिल्ली हाईकोर्ट का भी मानना है कि पॉक्सो कानून का मकसद बच्चों को यौन शोषण से बचाना है और सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को आपराधिक बनाना नहीं. कर्नाटक हाईकोर्ट की हुबली-धारवाड़ बेंच ने 5 नवंबर को विधि आयोग से अपील भी की है कि जमीनी हकीकत के मद्देनजर सहमति की उम्र के मानकों पर दोबारा विचार किया जाना चाहिए.

कई पहलू जुड़े हैं सहमति की उम्र से

दरअसल, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ जिन मुद्दों को लेकर चिंतित हैं, वो हमारे सामाजिक परिवेश से जुड़ा है. बदलते वक्त और तकनीक के जमाने में 18 साल से कम उम्र के लड़के-लड़कियों के बीच आकर्षण और रोमांटिक रिश्ते आम बात है. इनके बीच सहमति से सेक्स की घटनाएं भी सामने आती हैं, लेकिन सहमति की उम्र की वजह से ये अपराध की श्रेणी में आ जाते हैं और जजों के सामने इन मामलों में फैसला देने में कई सारे सवाल खड़े हो जाते हैं.

बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए कानून

पॉक्सो कानून 2012 का पूरा नाम है The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012. इस कानून से जुड़ा बिल राज्य सभा से 10 मई और लोक सभा से 22 मई 2012 को पारित हुआ था. ये कानून 14 नवंबर 2012 से लागू हुआ. इसमें 18 साल से कम के हर व्यक्ति को बालक या child माना गया है. इसी प्रावधान से भारत में सहमति की उम्र 16 साल से बढ़कर 18 साल तय हो गई.

इस कानून से 18 साल से कम उम्र के लोगों के लिए किसी भी तरह की यौन गतिविधि अपराध बन गई, चाहे उनके बीच सहमति ही क्यों न हो. पॉक्सो एक्ट में चाइल्ड से जुड़े प्रावधान से ही अदालतों के लिए सहमति की आयु की व्याख्या जरूरी हो गई. 1940 से भारत में सहमति की उम्र (age of consent) 16 साल रही थी. पॉक्सो कानून के तहत डॉक्टर, अस्पताल, स्कूल कर्मचारियों और माता-पिता समेत हर नागरिक की जानकारी के बावजूद बच्चों के यौन शोषण की रिपोर्ट नहीं करना एक गंभीर अपराध है.  

2013 के बाद उम्र घटाने को लेकर बहस तेज

दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया रेप मामले के बाद जस्टिस जे एस वर्मा कमेटी ने यौन उत्पीड़न कानून को सख्त बनाने से जुड़ी सिफारिशें दीं. इसके बाद संसद से क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) एक्ट, 2013 बना. इसमें भारतीय दण्ड संहिता (IPC) के लिए भी सहमति की उम्र को 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई. इन दो कानूनों के बाद से देश में age of consent को लेकर लगातार चर्चा हो रही है.

2012 से लड़का-लड़की दोनों पर लागू

2012 से पहले Indian Penal Code के सेक्शन 375 के तहत लड़कियों के लिए सहमति की आयु 16 वर्ष थी. 2012 के पॉक्सो कानून से ये उम्र सीमा लड़के और लड़कियों दोनों के लिए बढ़ गई. यहां पर ये गौर करने वाली बात है कि पॉक्सो से पहले सहमति की उम्र सिर्फ लड़कियों के नजरिए से परिभाषित थी. अब लड़के और लड़कियों दोनों पर लागू होने लगा.

1860 में 10 साल थी सहमति की उम्र

भारत में सबसे पहले ब्रिटिश शासन के दौरान 1860 के Indian Penal Code में 10 साल को सहमति की उम्र माना गया था. इसे थॉमस बबिंगटन मैकॉले ने बनाया था. उस वक्त IPC में वैवाहिक बलात्कार (marital rape) को सिर्फ तब अपराध माना गया था, जब पत्नी सहमति की उम्र से कम यानी 10 साल से छोटी हो.

1889 में 10-11 साल की बंगाली बच्ची की मौत उसके कई साल बड़े पति के जबरन यौन संबंध बनाने से हो जाती है. इसके बाद पारसी समाज सुधारक वी. एम. मालाबारी के प्रयासों से ब्रिटिश सरकार ने आईपीसी में संशोधन कर भारत में  विवाहित या अविवाहित सभी लड़कियों के लिए सहमति की आयु 10 से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी. 1925 में आईपीसी में संशोधन करके सहमति की उम्र को बढ़ाकर 14 साल कर दिया गया. हालांकि वैवाहिक संबंधों में लड़कियों के लिए सहमति की उम्र एक साल कम 13 वर्ष कर दी गई. 

1940 में सहमति की उम्र 16 साल हो गई

समाज सुधारक हर विलास शारदा की मेहनत की वजह से 1929 में बाल विवाह रोकथाम अधिनियम बना. इसके जरिए भारत में लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष और पुरुषों के लिए 18 वर्ष कर दी गई. वैवाहिक संबंधों में लड़कियों के लिए सहमति की उम्र 13 वर्ष बरकरार रही. 1940 में आईपीसी और बाल विवाह रोकथाम कानून में संशोधन कर लड़कियों के लिए सहमति की उम्र 16 साल कर दी गई. हालांकि 1978 में लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष की गई. इस वक्त भी लड़कियों के लिए सहमति की उम्र 16 साल ही थी लेकिन वैवाहिक संबंधों में लड़कियों के लिए ये उम्र 15 साल रखी गई. 2012 तक सहमति की उम्र 16 साल ही रही.

किशोरों में सेक्सुअल एक्टिविटी का मसला बेहद संवेदनशील

ऐसे तो समाज में आम तौर पर इस मुद्दे पर लोग बात करने से कतराते हैं, लेकिन ये भी सच्चाई है कि किशोरों में इसको लेकर रुचि कोई नई बात नहीं है. विवाह से पहले सेक्स के मुद्दे पर भले ही लोग चुप्पी साध लें, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि 18 साल से कम के लड़के-लड़कियां सेक्सुअल एक्टिविटी को लेकर सक्रिय रहते हैं.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण NFHS-4 (2015–16) के रिकॉर्ड के मुताबिक 11% लड़कियों ने 15 साल से पहले और 39% लड़कियों ने 18 की उम्र से पहले ही पहली बार यौन संबंध बना लिया था. यूनिसेफ (UNICEF) के अनुमान के मुताबिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 10-12% किशोरों ने 15 साल की उम्र से पहले यौन संबंध बनाए हैं.

पॉक्सो के तहत दर्ज मामलों में प्रेम संबंधों का बड़ा हाथ

वर्तमान में नाबालिग लड़की से उसकी सहमति से भी यौन संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में आता है. सहमति की उम्र बढ़ गई. कानून में तो बदलाव हो गया, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करते हैं. एक स्टडी से पता चलता है कि पॉक्सो कानून के तहत दायर चार मामलों में से एक रोमांटिक रिश्तों से संबंधित होता है. इनमें बरी होने की दर (acquittal rate) 93.8% है.  

रोमांटिक मामलों से जुड़े ज्यादातर केस में आरोपी बरी हो जाते हैं

बेंगलुरु स्थित एनजीओ अनफोल्ड प्रोएक्टिव हेल्थ ट्रस्ट ने यूनिसेफ इंडिया और यूएनएफपीए (UNFPA) के साथ पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों पर एक स्टडी की थी. इसके तहत असम, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज ऐसे 1,715 "रोमांटिक मामलों" का विश्लेषण किया गया. ये सारे मामले 2016-2020 के बीच के थे. इस दौरान दर्ज 24.3 प्रतिशत केस रोमांटिक मामले से जुड़े थे. इनमें से 80 फीसदी केस को लड़कियों के माता-पिता या रिश्तेदारों ने दर्ज कराया था.

इसमें कहा गया है कि नाबालिग लड़के-लड़कियां शादी के इरादे से सहमति से घर से चले जाते हैं और बाद में लड़कियों के माता-पिता लड़के के खिलाफ पॉक्सो कानून के तहत मामले दर्ज करवाते हैं. इनमें से करीब 86 फीसदी मामलों में लड़कियों ने आरोपी के साथ सहमति से संबंध बनाने की बात मानी है. करीब 62 फीसदी मामलों में अदालतों ने भी स्वीकार किया है कि संबंध सहमति से बने थे. ऐसे मामलों में अदालतों से 93.8% आरोपी दोषमुक्त करार दिए गए हैं. ये आरोपी एफआईआर दर्ज होने के औसतन डेढ़ से ढाई साल के भीतर कोर्ट से बरी कर दिए गए.

कई बार अदालत के सामने अजीबोगरीब स्थिति

ऐसे मामलों में बरी होने की ज्यादा संभावना से कहा जा सकता है कि पॉक्सो कानून का किशोरों के बीच के रिश्तों की वास्तविकता के साथ सामंजस्य नहीं है अलग-अलग हाईकोर्ट ने भी ऐसे मामलों में इस कानून के घातक प्रभाव को स्वीकार भी किया है. कई दर्ज मामलों में सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के बीच शादी होने से अदालतों को पॉक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों को रद्द भी करना पड़ता है.

किशोरावस्था में सहमति से सेक्सुअल एक्टिविटी उन्हें नॉर्मल लगती है और इस तरह के हर रिश्ता शादी के अंजाम तक नहीं पहुंच पाता है. सहमति की उम्र को घटाने की मांग करने वाले पक्ष दलील देते हैं कि कि 17-18 साल के किशोरों के बीच सहमति से सेक्सुअल एक्टिविटी के अपराधीकरण से उनकी गरिमा, आजादी, गोपनीयता पर चोट के साथ ही विकास की क्षमता धुंधली हो जाती है.

वास्तविक मामलों की जांच और सुनवाई पर असर

ऐसे मामलों से न्यायिक प्रणाली पर भी असर पड़ता है. अदालतों पर बोझ बढ़ जाता है.  बाल यौन शोषण के वास्तविक मामलों की जांच और सुनवाई पर पर्याप्त फोकस नहीं हो पाता है या फिर ऐसे मामलों में देर हो जाती है.  

तमिलनाडु में 60% प्रेम संबंधों से जुड़े मामले

पिछले हफ्ते तमिलनाडु की किशोर न्याय समिति (Juvenile Justice Committee) और पुलिस विभाग की संयुक्त समिति के अध्ययन से जानकारी मिलती है कि तमिलनाडु में पॉक्सो कानून में दर्ज मामलों में से 60% प्रेम संबंधों से जुड़े हुए थे. ये भी कहा गया है कि पॉक्सो कानून से आदिवासी समुदायों पर असर पर रहा है, जहां 18 साल से कम उम्र में शादी की मनाही नहीं है.

पॉक्सो से नहीं रुक रहा बच्चों का यौन शोषण

ये भी एक सच्चाई है कि कानून होने के बावजूद 18 साल से कम उम्र लड़के-लड़कियों को यौन शोषण से जूझना पड़ रहा है. अगर सिर्फ कानून का ही खौफ होता तो ऐसे मामले बहुत कम होते. इस साल अगस्त में महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी की ओर से संसद दी गई जानकारी के मुताबिक पॉक्सो कानून के तहत 2019 में 47,324 मामले और 2020 में 47,221 मामले दर्ज किए गए.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में पॉक्सो कानून के तहत 53,873 मामले दर्ज किए गए थे. ये मामले बच्चों के खिलाफ सभी अपराधों का 36% हैं. इनमें से 61% मामले रेप से जुड़े थे. NCRB के आंकड़ों से ही पता चलता है कि पॉक्सो के 50 फीसदी मामले 16 से 18 साल के बच्चों के खिलाफ है. ये बताता है कि सहमति की उम्र बढ़ने से पॉक्सो के दायरे में 16 से 18 साल वाले लड़के ज्यादा आरोपी बन रहे हैं.

कानूनों में विरोधाभास को खत्म करने की जरुरत

सेक्स के लिए कौन सी उम्र सही है, ये एक कानूनी के साथ ही बायलॉजिकल सवाल भी है. सेक्स के लिए सहमति और वैवाहिक जीवन में सेक्स के लिए सहमति की उम्र भारत में हमेशा से अलग-अलग रही है. ये भी एक विरोधाभास है कि सहमति की उम्र तो फिलहाल 18 साल है, लेकिन विवाह में इससे कम उम्र में लड़कों को सेक्स की अनुमति है. आईपीसी के सेक्शन 375 में कहा गया है कि अगर कोई अपनी 15 साल तक की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है तो ये रेप के कैटेगरी में नहीं आएगा.

हालांकि 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि 15 से 18 साल की पत्नी के साथ जबरन संबंधन बनाया जाएगा, तो ये रेप के दायरे में आएगा. यानी अब भी 15 से 18 साल की पत्नी की सहमति से पुरुष उसके साथ यौन संबंध बना सकता है. फिर सवाल बरकरार है कि क्या 18 साल से कम उम्र की पत्नी के लिए सहमति की उम्र को क्यों कम रखा जाए.

हर लड़की के लिए एक समान हो कानून

दरअसल सहमति-असहमति का सारा किस्सा बिना शादीशुदा लड़कियों पर लागू होता है. शादीशुदा लड़कियों के लिए कानून में अलग ही सहमति की उम्र तय है. बाल विवाह निरोधक कानून में प्रावधान है कि 18 साल कम उम्र में लड़कियों की शादी नहीं हो सकती. लेकिन हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत 18 साल से कम उम्र की लड़की की शादी हो सकती है. ये भी विडंबना है कि विवाह होने पर 15 से 18 साल की लड़कियों के लिए सहमति की उम्र का कोई मायने नहीं रह जाता.

मुस्लिमों में भी 15 साल तक की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने की छूट है. इससे सहमति की उम्र से जुड़े विरोधाभास को समझा जा सकता है. अब तो सरकार लड़कियों के लिए भी विवाह के लिए न्यूनतम आयु लड़कों की तरह 21 साल करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. इससे जुड़ा विधेयक भी दिसंबर 2021 में लोकसभा में पेश किया जा चुका है, जिस पर संसद की स्थायी समिति विचार कर रही है. 

जागरुकता और सेक्स एजुकेशन पर हो जोर

सहमति की उम्र को घटाने से कई पहलू भी जुड़े हैं. 16 से 18 साल के लड़के-लड़कियां सेक्सुअल एक्टिविटी में तो सक्रिय हो जाते हैं, लेकिन इसके बाद के परिणाम लड़कियों को ज्यादा भुगतने पड़ते हैं. इनमें गर्भपात एक गंभीर मुद्दा है.   

लड़कियों के लिए बेहद संवेदनशील मुद्दा

दरअसल पॉक्सो कानून के जरिए सहमति की उम्र को बढ़ाने का एक उद्देश्य ये भी था कि 18 साल की लड़कियों को इतनी समझदारी और हिम्मत आ जाती है कि वो परिवार, रिश्तेदार या नजदीकी मित्र की हरकतों का विरोध कर सकें. भारत जैसी सोसायटी में उम्र घटाने से पहले इस पहलू पर भी गौर करने की जरूरत है. 

विदेशों में क्या है सहमति की उम्र

अमेरिका के ज्यादार प्रांतों में सहमति की उम्र 16 साल ही है. हालांकि कुछ राज्यों में ये 17 और 18 साल भी है. कनाडा और यूनाइटेड किंगडम में 16 साल है. फ्रांस में 15 और रूस में 16 साल है. चीन में ये उम्र 14 साल है. युगांडा में 1990 में सहमति की उम्र 14 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई थी. वहां शुगर डैडी (sugar daddy) संस्कृति को खत्म करने के मकसद से ऐसा किया गया था. इस संस्कृति के जरिए वहां के बूढ़े पुरुष किशोर लड़कियों के साथ यौन संबंध बनाते थे, इससे एचआईवी महामारी को बढ़ावा मिल रहा था. कनाडा में 2008 में सहमति की उम्र को 14 साल से बढ़ाकर 16 साल कर दिया गया.

ये भी पढ़ें: Human Rights Day 2022: भारत में मानवाधिकार से जुड़ी क्या हैं चुनौतियां, 10 दिसंबर का क्या है इससे संबंध, जानें विस्तार से

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