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Assembly Elections: 2023 में किन्हें है सीएम की कुर्सी बचाने की चुनौती, सत्ता छीनने का सता रहा है डर, जानें पार्टियों का भविष्य

Assembly Elections 2023: जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनके नतीजे 2024 के आम चुनाव के लिहाज से महत्वपूर्ण साबित होंगे. बीजेपी, कांग्रेस समेत कई पार्टियों के सामने सत्ता बचाने की चुनौती है.

Assembly Elections 2023: नए साल में जैसे हम लोग कुछ नया करने का संकल्प लेते हैं, वैसे ही राजनीतिक दल भी चुनाव जीतने का संकल्प लेते हैं.  2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के नजरिए से राजनीतिक दलों के राशिफल पर नजर डालने की कोशिश करते हैं. 

2023 में  9 राज्यों  मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड  और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं.  इन राज्यों में तो चुनाव निश्चित है ही,  इसके अलावा हालात अनुकूल होने पर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. लद्दाख के अलग होने और केंद्र शासित प्रदेश बनने बाद जम्मू और कश्मीर में अभी तक विधानसभा चुनाव नहीं हुआ है. अगर ऐसा हुआ तो 2023 में कुल 10 राज्यों में चुनाव हो जाएंगे. ये सारे चुनाव 2024 में होने वाले आम चुनाव (लोकसभा चुनाव) के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं. 

9 में से 5 राज्यों में बीजेपी या गठबंधन की सरकार

जिन 9 राज्यों में 2023 में चुनाव होने हैं, उनमें से मध्य प्रदेश, कर्नाटक,  त्रिपुरा अपने बलबूते बीजेपी सरकार चला रही है. वहीं गठबंधन में बीजेपी की सरकार मेघालय और नागालैंड में है. इसे साफ है कि 9 में 5 राज्यों में बीजेपी के सामने सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है. वहीं कांग्रेस अपने बलबूते राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार चला रही है. उसके सामने इन दोनों राज्यों में सत्ता में बने रहने की चुनौती है. तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति (BRS) सत्ता में है. वहीं मिजोरम में ज़ोरामथंगा (Zoramthanga) की अगुवाई में मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) की सरकार है.

मध्य प्रदेश में कैसे हैं समीकरण ?

मध्य प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल 6 जनवरी 2024 को खत्म हो रहा है. नवंबर-दिसंबर 2023 में वहां विधानसभा चुनाव होने की संभावना है. 2023  में होने वाले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा राज्य मध्य प्रदेश है. यहां विधानसभा में कुल 230 सीट है. मध्य प्रदेश की सत्ता की चाबी के लिए 116 सीटों की जरुरत होती है. अभी मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में बीजेपी की सरकार है.  बीच में 15 महीने छोड़ दें तो दिसंबर 2003 से मध्यप्रदेश में बीजेपी सत्ता पर काबिज है. वहीं कांग्रेस 2003 से मध्य प्रदेश में सत्ता के लिए तरस रही है. इस बीच में सिर्फ 15 महीने (17 दिसंबर 2018 से 23 मार्च 2020 तक)  कांग्रेस यहां सत्ता में रही है.

2018 में एमपी में कैसा रहा था नतीजा

नवंबर 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस 114 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. वो बहुमत से मजह दो सीट दूर रही. 56 सीटों के नुकसान के साथ बीजेपी का रथ 109 सीटों पर रुक गया. मध्य प्रदेश में 2018 के चुनाव में एक दिलचस्प  वाक्या हुआ.  बीजेपी को 41.02% वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 40.89% वोट हासिल हुए. कम वोट शेयर के बावजूद कांग्रेस, बीजेपी से 5 सीट ज्यादा लाने में कामयाब हुई.  कमलनाथ की अगुवाई में मध्य प्रदेश में  17 दिसंबर 2018 को कांग्रेस की सरकार बनी. लेकिन मार्च 2020 आते-आते मध्य प्रदेश की सियासत में नया भूचाल आ गया. फिलहाल नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मार्च 2020 में कांग्रेस को छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया. उनके साथ ही  कांग्रेस के मौजूदा 22 विधायकों ने भी इस्तीफा देते हुए पार्टी छोड़ दी. इसके बाद 23 मार्च 2020 को मध्य प्रदेश में फिर से बीजेपी की सरकार बन गई और शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बने.
 
2023 में एमपी में किसके सिर पर सजेगा ताज

इस बार कांग्रेस मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ राज्य की सभी सीटों पर आंतरिक सर्वे करा रहे हैं. उनकी कोशिश है कि इस बार उन्हीं उम्मीदवारों को टिकट दिया जाए, जिनके जीतने की संभावना ज्यादा हो. कमलनाथ एक-एक सीट पर खुद जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं. निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन से कांग्रेस की उम्मीदें बढ़ी हैं. दूसरी तरफ बीजेपी ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्रों से पार्टी की सीटें बढ़ने की उम्मीद लगाए बैठे है.  राज्य की आरक्षित सीटों पर बढ़त बनाना, बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. मध्य प्रदेश में 230 में से 82 सीटें आरक्षित हैं. इनमें 35 सीटें एससी और 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं. 2018 में बीजेपी को इन 82 में से सिर्फ 27 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि 2013 में 53 सीटों पर बीजेपी जीती थी. अगर मध्य प्रदेश में बीजेपी को सत्ता बरकरार रखनी है तो इन आरक्षित सीटों पर 2013 वाला प्रदर्शन दोहराना होगा.

कर्नाटक में होगा त्रिकोणीय मुकाबला

मध्य प्रदेश के बाद 2023 में जिन राज्यों में चुनाव होना है, उनमें कर्नाटक में सबसे ज्यादा 224 सीटें हैं. यहां सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा 113 का है. कर्नाटक विधानसभा का कार्यकाल 24 मई 2023 को खत्म हो रहा है. ऐसे में यहां अप्रैल-मई के बीच चुनाव हो सकता है. इस बार कर्नाटक में बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस के बीच कांटे की टक्कर होने की उम्मीद है.  पिछली बार 2018 में हुए चुनाव में बीजेपी 104 सीट (36.35% वोट) जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी.  कांग्रेस सबसे ज्यादा वोट (38.14%) लाने के बावजूद 80 सीट ही ला सकी थी और जेडीएस को 37 सीटों पर जीत मिली थी.  2013 के मुकाबले बीजेपी के वोट बैंक में करीब दोगुना का इजाफा हुआ था और उसे 64 सीटों का फायदा मिला था. 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 42 सीटों का नुकसान हुआ था.  

कर्नाटक में पिछले 5 साल में बदले समीकरण 

पिछले पांच साल में कर्नाटक की राजनीति में बहुत कुछ बदल गया है. जब 2018 में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी तो बीएस येदियुरप्पा की अगुवाई में सरकार बनाई. हालांकि बहुमत के अभाव में 6 दिनों में ही मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद जेडीएस और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई. 23 मई 2018 को जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. जेडीएस-कांग्रेस की सरकार  सिर्फ 14 महीने ही टिक पाई. हालात कुछ ऐसे बने कि बीजेपी फिर से सरकार बनाने के में कामयाब रही.  बीजेपी के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा  26 जुलाई 2019 को चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. जुलाई 2021 में बीजेपी को येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा.  

बीजेपी-कांग्रेस के लिए कर्नाटक की राह है मुश्किल

फिलहाल बीजेपी कर्नाटक में आरक्षण के चक्रव्यूह में फंसी है. कर्नाटक के सबसे वर्चस्व वाले दो समुदाय लिंगायत और वोक्कालिगा आरक्षण बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. मांग पूरी नहीं होने पर बीजेपी के लिए इन दोनों समुदाय की नाराजगी महंगी साबित हो सकती है. इन हालातों में एंटी इनकंबेंसी और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई  के लिए सत्ता बरकरार रखना बेहद मुश्किल भरा होगा. उधर कांग्रेस के लिए अपने दो दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच तनातनी से निपटने की चुनौती है. कर्नाटक की सत्ता के बीच अंदरुनी कलह कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी बाधा बन सकती है. वहीं इस बार के. चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस के जेडीएस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा से भी बीजेपी-कांग्रेस की चुनौती बढ़ गई है.

 राजस्थान में किस करवट बैठेगा ऊंट?

 2023 में सबकी सबकी निगाहें राजस्थान के सियासी दंगल पर होगी. बड़े राज्यों में यही एक राज्य है जहां फिलहाल कांग्रेस की सरकार है. राजस्थान विधानसभा का कार्यकाल 14 जनवरी 2024 को खत्म हो रहा है. ऐसे में यहां मध्य प्रदेश के साथ नवंबर-दिसंबर 2023 में चुनाव हो सकता है. राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 101 सीटें चाहिए. राजस्थान में पिछले 6 चुनाव से बीजेपी और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में आती है. ये सिलसिला 1993 से जारी है. 1993 से यहां कोई भी पार्टी लगातार दो बार चुनाव नहीं जीत सकी है.  राजस्थान की ये परिपाटी ही फिलहाल सत्ताधारी कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.  कांग्रेस के दिग्गज नेता और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच 2018 के बाद से ही तनातनी है. कांग्रेस के लिए  इस बाधा से भी निपटना एक बड़ी चुनौती है और बीजेपी की राह में ये सबसे फायदेमंद पहलू है. 

राजस्थान में  2018 में बीजेपी को भारी नुकसान

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 100 सीटों पर जीत मिली थी. वो बहुमत से महज एक सीट दूर रह गई थी. वहीं 90 सीटों के नुकसान के साथ बीजेपी का रथ 73 सीटों पर रुक गया था. हालांकि दोनों पार्टियों के बीच वोट शेयर का अंतर महज सवा फीसदी ही था. बसपा (BSP) 6 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई थी. हालांकि बीते 4 साल में कई ऐसे मौके आए जब अशोक गहलोत और सचिन पायलट की रार से कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई. अब देखना होगा कि चुनाव नजदीक आने तक कांग्रेस इस समस्या का क्या तोड़ निकाल पाती है. बीजेपी के लिए भी अंदरुनी कलह बड़ी बाधा है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के बीच तकरार की खबरें अक्सर सुर्खियों में रहती है. ऐसे में बीजेपी के लिए राजस्थान की सत्ता को हासिल करना उतना आसान नहीं होगा.

छत्तीसगढ़ पर किसका होगा राज ?

जिन तीन राज्यों में कांग्रेस की अपने बलबूते सरकार है, छत्तीसगढ़ उनमें से एक है. बाकी दो राज्य राजस्थान और हिमाचल प्रदेश हैं. छत्तीसगढ़ विधानसभा का कार्यकाल 3 जनवरी 2024 को खत्म हो रहा है. ऐसे में यहां मध्य प्रदेश के साथ नवंबर-दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीट है. छत्तीसगढ़ में  दिसंबर 2003 से दिसंबर 2018 तक बीजेपी सत्ता पर काबिज रही थी और रमन सिंह 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे थे.  2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी के डेढ़ दशक की बादशाहत को खत्म कर दिया था.  कांग्रेस को तीन चौथाई से भी ज्यादा सीटें हासिल हुई थी. कांग्रेस को 68 सीटों पर जीत मिली थी, वहीं बीजेपी महज 15 सीटों पर सिमट गई थी. रिकॉर्ड जीत दिलाने वाले दिग्गज नेता भूपेश बघेल की अगुवाई में वहां कांग्रेस की सरकार बनी. पूरे देश में यही एक राज्य ऐसा दिखता है, जहां कांग्रेस फिलहाल सबसे ज्यादा मजबूत नजर आती है. हालांकि भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव के बीच मतभेद कांग्रेस के लिए चिंता बढ़ाने वाली बात है.  हाल ही में उन्होंने बयान दिया था कि चुनाव से पहले अपने भविष्य के बारे में फैसला करेंगे. कांग्रेस के भीतर का ये कलह आगामी चुनाव में बीजेपी के लिए शुभ संकेत साबित हो सकते हैं.  

तेलंगाना में केसीआर बचा पाएंगे किला!

तेलंगाना की सियासत में अब तक के. चंद्रशेखर राव का एकछत्र राज रहा है. तेलंगाना आंध्र प्रदेश से अलग होकर जून  2014 में अलग राज्य बना. अलग राज्य बनने के बाद से ही तेलंगाना की सत्ता और के चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति (BRS) पर्यायवाची लगने लगे हैं. पहले उनकी पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) था. के. चंद्रशेखर राव ने 5 अक्टूबर 2022 को इसका नाम बदलकर बीआरएस कर दिया.  तेलंगाना विधानसभा का कार्यकाल 16 जनवरी 2024 को खत्म हो रहा है. ऐसे में यहां मध्य प्रदेश, राजस्थान के साथ नवंबर-दिसंबर 2023 में चुनाव हो सकता है. अलग राज्य बनने के बाद 2018 में यहां पहली बार विधानसभा चुनाव हुआ था. उस वक्त तेलंगाना की कुल 119 सीटों में से 88 सीटों पर केसीआर की पार्टी को जीत मिली थी. वहीं कांग्रेस को महज 19 सीटें मिली थी. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को 7 सीटों पर जीत मिली थी. एन. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी को महज 2 और बीजेपी को एक सीट पर जीत मिली थी. हालांकि बीजेपी सात फीसदी से ज्यादा वोट लाने में कामयाब हुई थी. 

तेलंगाना में बीजेपी का बढ़ रहा है जनाधार 

2019 में हुए लोकसभा चुनाव में तेलंगाना की 17 सीटों में से 4 पर बीजेपी, 3 पर कांग्रेस और 9 सीटों पर टीआरएस को जीत मिली थी. एक सीट AIMIM के खाते में गई थी. इस नतीजे के बाद ही तेलंगाना की राजनीति में बीजेपी बड़ी ताकत बनकर उभरी. 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को करीब 20 फीसदी वोट हासिल हुए थे. ये बीजेपी के जनाधार में बड़ा उछाल था. 2023 के विधानसभा चुनाव में तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव की पार्टी को बीजेपी से कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है. अलग राज्य बनने के बाद से ही तेलंगाना में टीआरएस की सत्ता है. बीजेपी इस आस में है कि आगामी चुनाव में तेलंगाना की जनता के लिए वो नया विकल्प बनेगी. 

पूर्वोत्तर के 4 राज्यों में 2023 में विधानसभा चुनाव

पूर्वोत्तर के 4 राज्यों में 2023 में सत्ता की लड़ाई दिखेगी. ये राज्य त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड  और मिजोरम  हैं. इनमें त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड में एक साथ फरवरी-मार्च 2023 में चुनाव होने की संभावना है. वहीं मिजोरम में चुनाव नवंबर-दिसंबर 2023 में  मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना के साथ हो सकता है. 

त्रिपुरा में  फिर से बीजेपी का चलेगा सिक्का!

त्रिपुरा विधानसभा का कार्यकाल 22 मार्च 2023 को खत्म हो रहा है. यहां विधानसभा में कुल 60 सीट है. ये ऐसा राज्य है जो एक वक्त वामपंथी शासन का गढ़ था, लेकिन पिछली बार 2018 के चुनाव में बीजेपी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी CPM की सत्ता को यहां से उघाड़ फेंका. 2018 में बीजेपी को 35 सीटों पर जीत मिली और उसके सहयोगी इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) के खाते में 8 सीटें गई.  सीपीएम को महज 16 सीटों पर जीत मिली. इसके साथ ही सीपीएम की 25 साल से चली आ रही सत्ता को बीजेपी ने त्रिपुरा से उघाड़ फेंका.  त्रिपुरा की राजनीति में कभी दमदार खिलाड़ी रही कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सका. 

त्रिपुरा में बढ़ा है टीएमसी का जनाधार 

बीजेपी के लिए 2023 में सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है. अगर उसे रोकने के लिए सीपीएम और कांग्रेस एक साथ आ जाते हैं तो फिर बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है. पिछली बार बीजेपी और सीपीएम के वोट शेयर में महज सवा फीसदी का ही अंतर रहा था.  इसके अलावा 2022 में बिप्लब देब की जगह माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाने का बीजेपी का दांव कितना कारगर साबित होता है, इस पर भी राजनीतिक विश्लेषकों की नजर रहेगी. अलग राज्य की मांग कर रहे टिपरा मोथा (Tipra Motha) क्षेत्रीय संगठन से बीजेपी को कितना नुकसान पहुंच सकता है, इसका भी नतीजों पर असर देखने को मिल सकता है. इस बार ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी भी बीजेपी के सियासी समीकरणों को बिगाड़ सकती है. पिछले 5 साल में टीएमसी का जनाधार त्रिपुरा में तेजी से बढ़ा है.

मेघालय में कई दलों के बीच मुकाबला

मेघालय विधानसभा का कार्यकाल 15 मार्च 2023 को खत्म हो रहा है. यहां कुल 60 विधानसभा सीट है. 2018 चुनाव में कांग्रेस 21 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. एनपीपी को 19 सीटों और बीजेपी को 2 सीट पर जीत मिली थी. पीडीएएफ को 4,  UDP को 6 और HSPDP को 2 सीट पर जीत मिली थी.  चुनाव नतीजों के बाद बहुमत का आंकड़ा हासिल करने के लिए मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस (MDA) के नाम से गठबंधन बना. इसमें एनपीपी, यूडीपी, बीजेपी, पीडीएफ और HSPDP शामिल हुए और एनपीपी के नेता कोनराड संगमा पहली बार मुख्यमंत्री बने. हालांकि 2023 में ये सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे और एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारेंगे.

मेघालय में बदला-बदला सा है नज़ारा

नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के प्रमुख कोनराड संगमा के सामने सत्ता बरकरार रखने की चुनौती होगी. इस बार मेघालय के चुनाव में टीएमसी बड़ी ताकत के तौर पर उतरेगी. नवंबर 2021 में कांग्रेस के मुकुल संगमा समेत 12 विधायकों के टीएमसी में शामिल होने से ममता बनर्जी की पार्टी रातों-रात मेघालय की मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई थी. इस घटना के बाद अभी हालात ऐसे है कि टीएमसी आगामी चुनाव में मेघालय की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. मुकुल संगमा कांग्रेस नेता के तौर पर 2010 से 2018 तक मेघालय के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. टीएमसी की दावेदारी से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई है. उसके लिए मेघालय की सत्ता साख का सवाल बन गया है. वहीं कांग्रेस के लिए यहां अस्तित्व की लड़ाई है. उसे एकतरह से शून्य से शुरुआत करनी होगी. 

नागालैंड में कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई  

नागालैंड विधानसभा का कार्यकाल 12 मार्च 2023 को खत्म हो रहा है. यहां कुल 60 सीट है.  2018 में नागालैंड में  नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF)और नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP)-बीजेपी गठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला था.  एनडीपीपी के नेफ्यू रियो ((Neiphiu Rio) नॉर्दर्न-2 अंगामी सीट से निर्विरोध निर्वाचित हुए थे. इस वजह से 2018 में नागालैंड की 60 में 59 सीटों पर वोट डाले गए थे.  2018 के चुनाव में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP)को 18 और उसकी सहयोगी बीजेपी को 12 सीटों पर जीत मिली. नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF) 26 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी.  पिछली बार कांग्रेस का यहां से सफाया हो गया. उसे एक भी सीट नसीब नहीं हुई. 2018 में नेफ्यू रियो की अगुवाई में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP)-बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी.

5वीं बार मेघालय के सीएम बन पाएंगे नेफ्यू रियो!

मौजूदा मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो पिछले 20 साल से नागालैंड की राजनीति के सबसे बड़े चेहरे हैं. 2018 में वे चौथी बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बने थे. 2023 के चुनाव में उनके सामने सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है. नागालैंड में 2022 में एक ऐसी घटना हुई, जिससे मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की ताकत और बढ़ गई . वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी NPF के 21 विधायक अप्रैल 2022 में नेफ्यू रियो की नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) में शामिल हो गए. इसमें नेता प्रतिपक्ष टी आर जेलियांग भी शामिल थे. वहीं बीजेपी के लिए नागालैंड में बड़ी ताकत बनने की चुनौती है. कांग्रेस को खोई जमीन पाने  के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना होगा. 

मिजोरम में बीजेपी बन पाएगी नया विकल्प

मिजोरम विधानसभा का कार्यकाल 17 दिसंबर 2023 को खत्म हो रहा है. मिजोरम में 40 विधानसभा सीट है. मिजोरम की राजनीति पर मिजो नेशनल फ्रंट (MNF)और कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. पूर्वोत्तर में एकमात्र राज्य मिजोरम है, जहां बीजेपी की पकड़ नहीं बन पा रही है. हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार मिजोरम में किसी सीट पर जीत का स्वाद चखा था.  बीजेपी को एक सीट पर जीत मिली थी.  उसे 8 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. 2018 में मिजो नेशनल फ्रंट ने  26 सीटों पर जीत दर्ज कर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था. कांग्रेस को सिर्फ 8 सीटें ही मिली थी. ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) के खाते में 8 सीटें गई थी. 2018 में मिजो नेशनल फ्रंट के प्रमुख जोरामथंगा (Zoramthanga) तीसरी बार मिजोरम के मुख्यमंत्री बने थे. इस चुनाव में हार के बाद ही पूर्वोत्तर के किसी भी राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं बची. 

मिजोरम में कांग्रेस-MNF का खत्म होगा वर्चस्व!

1989 से वहां कांग्रेस और मिजो नेशनल फ्रंट 10-10 साल सत्ता में रहते आई है. इस बार देखना होगा कि मिजो नेशनल फ्रंट फिर से सत्ता हासिल कर 10 साल की परंपरा कायम रख पाती है या नहीं.  मिजोरम में पकड़ मजबूत करने के लिए बीजेपी ने 2023 में यहां की सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. मिजोरम बीजेपी अध्यक्ष वनलालमुआका (Vanlalhmuaka) ने इसके बारे में पहले ही ऐलान कर दिया है.  सितंबर में मिजोरम की सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट के 16 नेता बीजेपी में शामिल हुए थे. इसमें चकमा जिले के MNF युवा अध्यक्ष मॉलिन कुमार चकमा (Molin Kumar Chakma) भी शामिल थे.  इससे बीजेपी की उम्मीदें बढ़ी है और वो मिजोरम में नया विकल्प के तौर पर खुद को पेश कर रही है. 

जम्मू और कश्मीर में हो सकते हैं विधानसभा चुनाव

अगर सुरक्षा हालात ठीक रहे तो 2023 में जम्मू और कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव होने के आसार हैं.  पूर्ण राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यहां पहली बार विधानसभा चुनाव होगा.  जम्मू और कश्मीर में  परिसीमन प्रक्रिया और मतदाता सूची को संशोधित करने का काम पूरा हो चुका है. बीजेपी, कांग्रेस, पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत अन्य छोटी-छोटी पार्टियां चुनाव तैयारियों में लगी हुई हैं. परिसीमन के बाद जम्मू कश्मीर विधानसभा के लिए  83 की जगह 90 सीटों पर चुनाव होगा. 6 सीटें जम्मू क्षेत्र में बढ़ाई गई हैं और एक सीट कश्मीर घाटी में बढ़ी है. कश्मीर घाटी से अब 47 और जम्मू क्षेत्र से 43 सीटें हो जाएंगी. वहीं 24 सीटें पीओके के लिए सुरक्षित रखी गई है. 

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