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Explained: क्यों ‘हाथ’ हो रहा कमजोर? आठ महीने में 8 बड़े नेताओं ने छोड़ा कांग्रेस का साथ, 4 रह चुके हैं केंद्रीय मंत्री

Congress: आठ महीने में जिन बड़े नेताओं ने कांग्रेस का दामन छोड़ा, उनमें गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, आरपीएन सिंह, अश्विनी कुमार, सुनील जाखड़, हार्दिक पटेल, कुलदीप विश्नोई और जयवीर शेरगिल शामिल हैं.

Congress Leaders Resignation Special Story: पिछले आठ महीने में आठ बड़े नेता कांग्रेस (Congress) का हाथ छोड़ चुके हैं. इनमें से चार नेता केंद्रीय मंत्री (Central Ministers) रह चुके हैं. गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) की प्रोफाइल भी कांग्रेस में मजबूत नेता की रही है. गुलाम नबी आजाद ने आज पांच पन्नों का इस्तीफा कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को सौंपा और पार्टी की दुर्दशा के लिए उन पर और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पर गंभीर आरोप लगाए.

आठ महीने में जिन बड़े नेताओं ने कांग्रेस का दामन छोड़ा, उनमें गुलाम नबी आजाद के अलावा, कपिल सिब्बल (Kapil Sibal), आरपीएन सिंह (RPN Singh), अश्विनी कुमार (Ashwani Kumar), सुनील जाखड़ (Sunil Jakhar), हार्दिक पटेल (Hardik Patel), कुलदीप विश्नोई (Kuldeep Bishnoi) और जयवीर शेरगिल (Jaiveer Shergill) शामिल हैं. आइये सबसे पहले इन नेताओं की प्रोफाइल के बारे में जान लेते हैं.

गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad)

कांग्रेस में मजबूत अल्पसंख्यक चेहरे की हस्ती रखने वाले गुलाम नबी आजाद ने पहले जम्मू-कश्मीर चुनाव अभियान समिति और अब पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता छोड़ने का भी एलान किया है, इसी के साथ कांग्रेस का हाथ उन्होंने छोड़ दिया है. आजाद का इस्तीफा ऐसे वक्त सामने आया जब कांग्रेस अगले अध्यक्ष के चुनाव के लिए संघर्ष कर रही है. गुलाम नबी आजाद ने 70 के दशक में कांग्रेस ज्वाइन की थी. 1975 में वह जम्मू कश्मीर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए थे. 1980 में उन्हें यूथ कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया था. 1980 में वह पहली बार महाराष्ट्र के वाशिम से लोकसभा का चुनाव जीते थे. 1982 में वह पहली बार केंद्रीय मंत्री बने. 1984 में फिर वह वाशिम से सांसद बने. 1990-1996 तक वह महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद रहे. वह नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री रहे. 1996 से 2006 तक जम्मू कश्मीर से राज्यसभा सांसद रहे. 2005 में गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने. पीडीपी के समर्थन वापस लेने पर 2008 में जम्मू कश्मीर से कांग्रेस की सरकार गिर गई थी. इसके बाद गुलाम नबी आजाद मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहे. 2014 में वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता बने और 2015 में उन्हें जम्मू कश्मीर से एक बार फिर राज्यसभा भेजा गया. 

कपिल सिब्बल (Kapil Sibal)

जाने माने वकील कपिल सिब्बल ने इसी साल निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा का चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया था लेकिन समाजवादी पार्टी ने उन्हें समर्थन दिया. 16 मई को उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दिए जाने की घोषणा कर दी थी. दिल्ली का चांदनी चौक उनका चुनावी गढ़ रहा है. वह मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री बनाए गए थे. वह टेलीकॉम मंत्री भी रहे. 2009 में उन्होंने चांदनी चौक से दूसरी बार लोकसभा का चुनाव जीता था. 

आरपीएन सिंह (Ratanjit Pratap Narain Singh)

आरपीएन सिंह बीजेपी में आने से पहले कांग्रेस का बड़ा चेहरा थे और राहुल गांधी के करीबी माने जाते रहे. यूपीए शासन में उन्होंने कई मंत्रालयों के मंत्री के तौर पर काम किया. मनमोहन सिंह सरकार में वह 2011 से 2013 तक भारत के गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे. पंद्रवीं लोकसभा में कुशीनगर से सांसद रहे. 2014 और 19 के चुनाव में वह हार गए थे. सितंबर 2020 में उन्हें झारखंड और छत्तीसगढ़ कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया था. उन्होंने इसी साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से एक महीने पहले जनवरी में कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी को ज्वाइन कर लिया था. वह 1996, 2002 और 2007 में पडरौना से विधायक का चुनाव जीते. आरपीएन सिंह के पिता सीपीएन सिंह 80 के दशक में इंदिरा गांधी की सरकार में रक्षा राज्यमंत्री रहे थे. 
   
अश्विनी कुमार (Ashwani Kumar)

अश्विनी कुमार ने इसी साल 15 फरवरी 2022 को कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. वह मनमोहन सिंह सरकार में बतौर केंद्रीय मंत्री कई मंत्रालयों का काम देख चुके हैं. उन्होंने पूर्व में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री, केंद्रीय औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग में राज्य मंत्री और वाणिज्य-उद्योग मंत्रालय में केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं. 1991 में 37 साल की उम्र में देश के सबसे कम उम्र के एडीशनल सॉलिसिटर बने थे. वह कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और इसके विचार विभाग में के अध्यक्ष के तौर पर काम कर चुके हैं. वकील के तौर पर उन्होंने कई अहम केस लड़े, जिनमें भोपाल गैस त्रासदी मामला भी शामिल है.  
वह 2002 से 2016 तक राज्यसभा के सांसद रहे.

सुनील जाखड़ (Sunil Kumar Jakhar)

सुनील कुमार जाखड़ पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष रहे. वह पंजाब के अबोहर निर्वाचन क्षेत्र 2002 से 2017 तक तीन बार चुने गए. पंजाब विधानसभा में वह 2012 से 2017 तक विपक्ष के नेता रहे. 2022 से पहले पांच दशकों तक वह कांग्रेस नेता रहे. मई 2022 में वह यह कहते हुए कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए कि उन्हें राष्ट्रवाद का साथ देना है और पंजाब में एकता और भाईचारे के लिए काम करना है. 2017 में पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में वह जीत गए थे. 

हार्दिक पटेल (Hardik Patel)

हार्दिक पटेल का राजनीतिक करियर गुजरात के पाटीदार आंदोलन से शुरु हुआ. 2020 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली. वह गुजरात प्रदेश कांग्रेस समिति के कार्यकारी अध्यक्ष रहे. मई 2022 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. बीजेपी की मुखर आलोचना करते रहे हार्दिक पटेल ने जून 2022 में उसी को ज्वाइन कर लिया. बीजेपी ज्वाइन करने पर हार्दिक पटेल ने ट्वीट में लिखा था, ''मां भारती के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी, मक्कम गृहमंत्री श्री अमित भाई शाह एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जेपी नड्डा जी के नेतृत्व में राष्ट्रहित, प्रदेशहित, जनहित एवं समाजहित का काम करने के लिए आज भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुआ हूं."

कुलदीप बिश्नोई (Kuldeep Bishnoi)

इसी महीने यानी चार अगस्त को हरियाणा के हिसार जिले की आदमपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक के पद से कुलदीप बिश्नोई ने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए. उन्होंने छह साल बाद कांग्रेस का साथ छोड़ दिया. उनके इस्तीफे को लेकर कहा गया कि वह हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे लेकिन अप्रैल में नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा के समर्थक पूर्व विधायक उदयभान को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया, यह बात कुलदीप को रास नहीं आई. उन्होंने राहुल गांधी से मिलने  के लिए वक्त मांगा लेकिन नहीं मिला. उन्होंने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार को वोट न देकर निर्दलीय कार्तिकेय शर्मा को अपना मत दे दिया. आखिर उन्होंने बीजेपी ज्वाइन कर ली.

जयवीर शेरगिल (Jaiveer Shergill)

जयवीर शेरगिल पेश से वकील हैं. दो दिन पहले ही उन्होंने कांग्रेस राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने इस्तीफा देते हुए कांग्रेस में चाटुकारिता का आरोप लगाया. उन्होंने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे अपने इस्तीफा पत्र में कहा, ''कांग्रेस में लिये जाने वाले फैसले जनहित और देशहित के लिये नहीं होते, बल्कि कुछ लोगों के निहित स्वार्थो की पूर्ति के लिये होते हैं.''

क्यों ‘हाथ’ हो रहा कमजोर?

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में पार्टी के प्रति असंतोष इसके शीर्ष नेतृत्व को लेकर भी सामने आ चुकी है. पिछले साल अक्टूबर में तय हुआ था कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव इस साल यानी 21 अगस्त से 20 सितंबर के बीच होगा लेकिन सोनिया गांधी ने इसे एक महीना और टाल दिया. राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि सोनिया गांधी को इस पोस्ट के लिए राहुल गांधी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर ही भरोसा है इसलिए अध्यक्ष का चुनाव टाला गया. वहीं, अब तक जितने भी नेताओं ने कांग्रेस का हाथ छोड़ा है, सभी में कॉमन रूप से राहुल गांधी को विलेन के तौर पर पेश किया है. पार्टी छोड़ने वाले नेताओं में से किसी ने प्रत्यक्ष तो किसी ने अप्रत्यक्ष तौर पर यही जताया है कि कांग्रेस में सोनिया-राहुल के अलावा किसी की चलती नहीं. गुलाम नबी आजाद ने भी आज सोनिया गांधी को जो पांच पन्नों को इस्तीफा भेजा है, उसमें राहुल गांधी पर ऐसा ही आरोप लगाया है.

गुलाम नबी आजाद ने इस्तीफा पत्र में लिखा, ''2014 में आपके और उसके बाद राहुल गांधी द्वारा नेतृत्व संभाले जाने के बाद, कांग्रेस अपमानजनक ढंग से दो लोकसभा चुनाव हार गई. 2014 से 2022 के बीच 49 विधानसभा के चुनावों में से कांग्रेस 39 में हार गई. पार्टी केवल चार राज्यों के चुनाव जीत पाई और छह में वह गठबंधन की स्थिति बना पाई. दुर्भाग्यवश, आज कांग्रेस केवल दो राज्यों में सरकार चला रही है और दो अन्य राज्यों में यह बहुत सीमांत गठबंधन सहयोगियों में है."

गुलाम नबी आजाद ने ये भी लिखा, "2019 के चुनाव के बाद से पार्टी में हालात खराब हुए हैं. विस्तारित कार्य समिति की बैठक में पार्टी के लिए जीवन देने वाले सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों का अपमान करने से पहले राहुल गांधी के हड़बड़ाहट में पद छोड़ने के बाद, आपने अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पदभार ग्रहण किया. एक पद जिस पर आप आज भी पिछले तीन वर्षों से काबिज हैं. इससे भी बुरी बात यह है कि यूपीए सरकार की संस्थागत अखंडता को ध्वस्त करने वाला रिमोट कंट्रोल मॉडल अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में लागू हो गया था जबकि आप केवल एक मामूली व्यक्ति हैं, सभी महत्वपूर्ण निर्णय राहुल गांधी द्वारा लिए जा रहे थे या इससे भी बदतर उनके सुरक्षा गार्ड और पीए फैसले ले रहे थे.''

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