Dhadak 2 Review: सोसाइटी और सिनेमा की धड़कन ठीक से चले इसके लिए जरूरी हैं ऐसी दमदार फिल्में, सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी का जबरदस्त परफॉर्मेंस
Dhadak 2 Movie Review: सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी की फिल्म 'धड़क 2' 1 अगस्त को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है. फिल्म रिलीज से एक दिन पहले ही जान लें कि ये फिल्म क्यों देखी जानी चाहिए.
शाजिया इकबाल
सिद्धांत चतुर्वेदी, तृप्ति डिमरी, सौरभ सचदेवा
सिनेमा समाज का ही आइना होता है. सिनेमा में वही दिखाया जाता है जो समाज में होता है, चाहे वो बच्चन साहब के दौर की बात हो जब उस दौर के युवाओं के गुस्से को उन्होंने पर्दे पर दिखाया था और वो एंग्री यंग मैन बन गए थे या फिर धड़क जैसी फिल्मों की बात हो जो समाज में बराबरी की बात करती हैं.
अगर आपको लगता है कि आपके आसपास सब सही है तो ऐसा नहीं है कि हर जगह ऐसा हो, अगर आपके साथ कुछ गलत नहीं हुआ तो जरूरी नहीं कि किसी और के साथ कुछ गलत नहीं हो रहा हो, ये फिल्म समाज में बराबरी की बात करती है, औऱ दमदार तरीके से करती है, ये तमिल फिल्म 'पैरियेरुम पेरुमल' का अडेप्टेशन है और ऐसे रीमेक या कह लीजिए अडेप्टेशन बनने चाहिए क्योंकि ये जरूरी होते हैं, करण जौहर अक्सर जिस तरह का सिनेमा बनाते हैं ये उससे अलग भी है और असरदार भी है.
कहानी- इस फिल्म की कहानी एक ब्राह्मण लड़की विधि यानी तृप्ति डिमरी और एक दलित लड़के नीलेश यानी सिद्धांत चतुर्वेदी की है. विथी के परिवार में सब वकील हैं और वो भी लॉ कॉलेज में एडमिशन लेती हैं, वहां उसे नीलेश मिलता है, दोनों करीब आते हैं.
विधि नीलेश को अपनी बहन की शादी में बुलाती है लेकिन नीलेश के परिवार को अपनी बेटी का एक दलित लड़के के करीब आना पसंद नहीं, और फिर वो नीलेश की जिंदगी नर्क कर लेते हैं. आगे क्या होता है, ये आपको सिनेमाहॉल में जाकर ही देखना होगा क्योंकि ये फिल्म इसके आगे सिर्फ एंटरटेनमेंट ही नहीं करती, और भी बहुत बताती है, समझाती है जो सोसाइटी के लिए समझना जरूरी है.
कैसी है फिल्म - ये एक दमदार फिल्म है, ऐसी फिल्में बननी चाहिए, ये फिल्म सोसाइटी में बराबरी की बात करती है. अगर आपको लगता है कि आपके आसपास तो सब ठीक है तो जरूरी नहीं कि हर जगह ऐसा है, बहुत ही जगहें शायद अब भी ऐसी हैं जहां सब कुछ बराबार नहीं है, जात पात को लेकर अब भी बवाल होता है, ये फिल्म शुरू से मुद्दे पर आ जाती है.
ओरिजनल के मुकाबले फिल्म में छोटे मोटे बदलाव ही किए गए हैं लेकिन क्योंकि ओरिजनल फिल्म हिंदी डब में नहीं है इसलिए इस फिल्म को उसका फायदा होगा. फिल्म में कई दमदार सीन आते हैं, फिल्म सिर्फ लव स्टोरी पर फोकस नहीं करती, जिस मुद्दे पर ये फिल्म बनाई गई है, उसपर कई सीन्स में बात होती है.
जब कॉलेज में डीन जाकिर हुसैन कहते हैं कि कैसे कभी उनके दलित होने की वजह से जो लोग उन्हें परेशान करते थे वो आज उनके सामने अपने बच्चों के एडमिशन की सिफारिश लेकर आते हैं तो आपको अहसास होता है कि पढ़ाई कितनी जरूरी है, कैसे सिद्धांत को जब जबरदस्ती एक पुलिसवाला एक फर्जी केस में फंसाने की कोशिश करता है तो एक वकील उसे छुड़ाती है और वो तय करता है कि वकील बनेगा, तो भी आपको पढ़ाई की कीमत समझ में आती है.
फिल्म में कई हिला डालने वाले सीन हैं, फिल्म की खास बात ये है कि हर किरदार को अहमियत दी गई है, इसे सिर्फ एक लव स्टोरी नहीं बनाया गया, लव स्टोरी के साथ साथ जो बातें कही और समझाई गई हैं वो आप पर असर डालती हैं,
एक्टिंग- सिद्धांत चतुर्वेदी ने नीलेश के किरदार में जान डाल दी है. ये उनके करियर का बेस्ट परफॉर्मेंस कहा जा सकता है. एक दलित लड़के के किरदार को सिद्धांत ने जिस तरह से जिया है, वो कमाल है, ये ट्रेडिशनल हीरो नहीं है, ये एक डरा हुआ लड़का है, जो डरा सहमा ही रहता है, सिद्धांत ने इस किरदार को जिस तरह से पकड़ा है वो बताता है कि उनकी एक्टिंग में अब कमाल की धार आ गई है.
तृप्ति डिमरी से जिन्हें ये शिकायत थी कि वो कला जैसे रोल क्यों नहीं करती और एनिमल जैसे रोल क्यों करती हैं तो उनकी शिकायत तृप्ति ने दूर कर दी है. यहां उनका पूरा फोकस एक्टिंग पर है औऱ वो कमाल का काम कर गई हैं, ये किरदार ग्लैमर से दूर है. यहां आपको पुरानी वाली तृप्ति दिखेंगी.
सौरभ सचदेवा शंकर नाम के एक ऐसे शख्स के किरदार में हैं जो लोगों को मार डालता है लेकिन वो प्रोफेशनल किलर नहीं है. उसका कहना है वो समाज की सफाई कर रहा है. सौरभ स्क्रीन पर जो असर छोड़ते हैं वो कमाल है, वो कमाल के एक्टर हैं और अपना असर वो एक सीन में भी छोड़ जाते हैं, और अब लगातार उन्हें अच्छे रोल मिल भी रहे हैं.
साद बिलग्रामी तप्ति के चचेरे भाई के किरदार में हैं और आपको उनसे नफरत हो जाती है और यही उनके किरदार की खासियत है. नेगेटिव रोल में वो काफी इम्प्रेस करते हैं. जाकिर हुसैन कॉलेन डीन के रोल में जान डाल देते हैं, विपिन शर्मा ने सिद्धांत के पिता के किरदार में कमाल का काम किया है, मंजिरि पुपाला का काम भी काफी अच्छा है.
राइटिंग और डायरेक्शन- फिल्म को राहुल बाडवेलकर और शाजिया इकबाल ने लिखा है और शाजिया ने डायरेक्ट किया है, और इनका काम कमाल है. धर्मा जिस तरह की रोमांटिक फिल्में बनाता है ये उनसे बिल्कुल अलग है, यहां रोमांस से ज्यादा समाज से जुड़े मुद्दे पर फोकस किया गया है और राइटिंग में इस बात का खास ख्याल रखा गया है, कुछ सीन तो कमाल के लिखे गए हैं, डायरेक्शन भी बढ़िया है, फिल्म कहीं खिंची हुई नहीं लगती.
म्यूजिक -फिल्म का म्यूजिक अच्छा है. टाइटल सॉन्ग बस एक धड़क बीच बीच में आता है. जावेद मोहसिन और रश्मि विराग का ये गाना फिल्म में एक अलग जान डाल देता है. हालांकि ये पूरा गाना फिल्म में नहीं है जो कि होना चाहिए था, बाकी के गाने भी बढ़िया हैं.
कुल मिलाकर ये फिल्म देखी जानी चाहिए
रेटिंग- 3.5 स्टार्स


























