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Shani Jayanti 2024: साढ़ेसाती और ढैय्या से जीवन है तबाह तो शनि जयंती पर कर लें ये काम
Shani Jayanti 2024: जिन लोगों के जीवन में शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या चल रही है वह शनि जयंती पर पूजा, दान, उपाय के अलावा शनि देव के प्रभावशाली स्तोत्र का पाठ करना न भूलें, ये सारी पीड़ाएं दूर करेगा.
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Shani Jayanti 2024: शनि के दुष्प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए शनि जयंती का दिन बेहद शुभ फलदायी माना जाता है. इस साल शनि जयंती 6 जून 2024, गुरुवार को मनाई जाएगी. ज्येष्ठ अमावस्या (Jyestha amavasya) यानी शनि जयंती के दिन शनि की शांति (Shani ki shanti) के लिए तमाम धर्म-कर्म के कार्य, तेल से अभिषेक, काली चीजों का दान किया जाता है.
अगर आपके जीवन में भी शनि दोष, शनि की साढ़ेसाती (Sade sati) और ढैय्या (Dhaiya) के कारण अस्थिरता बनी है, बनते काम बिगड़ रहे हैं, संघर्ष, असफलता का सामना करना पड़ रहा है तो शनि जयंती पर शनि स्तवराज का पाठ (Shanishchar Stavraj Stotra) करना न भूलें. इसके प्रभाव से शनि के कष्टों से मुक्ति मिलती है. शनि की महादशा के कूप्रभाव कम होते हैं.
शनि स्तवराज पाठ (Shanishchar Stavraj Stotra Path)
विनियोग
अस्य श्रीशनैश्चरस्तवराजस्य सिन्धुद्वीपऋषि:, गायत्री छन्द:, आपो देवता, शनैश्चरप्रीत्यर्थं पाठे विनियोग:।
नारद उवाच
ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः ।
धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम ।।1।।
शिरो में भास्करिः पातु भालं छायासुतोऽवतु ।
कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठनिभः श्रुती ।।2।।
घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं बलिमुखोऽवतु ।
स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोऽवतु ।।3।।
सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोऽवतु ।
ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः।।4।।
पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः ।
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम्।।5।।
सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशयः ।
सौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पलनिभः शनिः।।6।।
शुष्कोदरो विशालाक्षो र्दुनिरीक्ष्यो विभीषणः ।
शिखिकण्ठनिभो नीलश्छायाहृदयनन्दनः।।7।।
कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूलरोमावलीमुखः ।
दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः।।8।।
नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधरः ।
मन्दो मन्दगतिः खंजो तृप्तः संवर्तको यमः।।9।।
ग्रहराजः कराली च सूर्यपुत्रो रविः शशी ।
कुजो बुधो गुरूः काव्यो भानुजः सिंहिकासुतः।।10।।
केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैऋतस्तथा ।
शशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः।।11।।
विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः ।
कर्त्ता-हर्ता पालयिता राज्येशो राज्यदायकः।।12।।
छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः ।
क्रूरकर्मविधाता च सर्वकर्मावरोधकः।।13।।
तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः ।
ग्रहपीडाहरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः।।14।।
स्थिरासनः स्थिरगतिर्महाकायो महाबलः ।
महाप्रभो महाकालः कालात्मा कालकालकः।।15।।
आदित्यभयदाता च मृत्युरादित्यनंदनः ।
शतभिद्रुक्षदयिता त्रयोदशितिथिप्रियः।।16।।
तिथात्मा तिथिगणो नक्षत्रगणनायकः ।
योगराशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः।।17।।
शमीपुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्याभयदायकः ।
नीलवासाः क्रियासिन्धुर्नीलाञ्जनचयच्छविः।।18।।
सर्वरोगहरो देवः सिद्धो देवगणस्तुतः ।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य यः।।19।।
पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम् ।
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान्यः स्तवं सदा ।।20।।
विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति ।
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे।।21।।
दशासु च गते सौरे तदा स्तवमिमं पठेत् ।
पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरैः।।22।।
विधाय लोहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते ।
वाधा याऽन्यग्रहाणां च यः पठेत्तस्य नश्यति ।।23।।
भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत् ।।24।।
पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः।।25।।
स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोऽभूच्छनैश्चरः ।
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा ।।26।।
॥ इति श्री भविष्यपुराणे शनैश्चरस्तवराजः सम्पूर्णः ॥
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