नियमित इस स्तोत्र का पाठ दूर करता है सभी आर्थिक समस्याएं और घर से दरिद्रता, जानें विधि
जीवन में सुख-समृद्धि और शांति के लिए धन का होना जरूरी है. शास्त्रों और ज्योतिष में कई उपाय बताए गए हैं, जिन्हें करने से व्यक्ति आर्थिक तंगी, दरिद्रता संबंधित परेशानियों से छुटकारा पाता है.
जीवन में सुख-समृद्धि बनाए रखने और धन-वैभव के लिए धन का होना जरूरी है. ऐसे में शास्त्रों और ज्योतिष शास्त्र में कई उपाय बताए गए हैं. जिन्हें करने से व्यक्ति आर्थिक तंगी, दरिद्रता और अन्य पैसों से संबंधित परेशानियों से छुटकारा मिलता है लेकिन इन उपायों के अलावा शास्त्रों में अनेक अनुष्ठानों और स्त्रोतों का उल्लेख किया गया है, जिनका नियमित पाठ करने से पैसों से संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है.
आइए जानते हैं एक स्त्रोत के बारे में, जिसका नियमित पाठ करने से धन प्राप्ति के मार्ग खोलता है. इतना ही नहीं, धनागमन में आ रही सभी बाधाओं को दूर करता है. इसका स्त्रोत का नाम है धनदा स्तोत्र. इसके नियमित रूप से पढ़ने और सुनने से धन संबंधी समस्त समस्याओं का समाधान होता है.
स्तोत्र पाठ के नियम
स्तोत्र का पाठ करने के लिए शिव मंदिर में केले के पेड़ के नीचे, बेल के पेड़ के नीचे देशी घी का दीपक जलाकर इस चमत्कारिक स्तोत्र का पाठ करें. ज्योतिषीयों के मुताबित इसे शुक्रवार से शुरू करें. नियमित रूप से 11 पाठ करने पर चमत्कारिक लाभ प्राप्त होगा. इसके बाद मां को खीर का भोग लगाएं.
धनदा स्तोत्र
धनदे धनपे देवी, दानशीले दयाकरे। त्वम् प्रसीद महेशानी यदर्थं प्रार्थयाम्यहम ।।1।।
धरामरप्रिये पुण्ये, धन्ये धनद-पूजिते। सुधनं धार्मिकं देहि, यजमानाय सत्वरम ।।2।।
रम्ये रुद्रप्रियेअपर्ने, रमारूपे रतिप्रिये। शिखासख्यमनोमूर्ते प्रसीद प्रणते मयी ।।3।।
आरक्त -चरणामभोजे, सिद्धि-सर्वार्थदायिनी। दिव्याम्बर्धरे दिव्ये, दिव्यमाल्यानुशोभिते ।।4।।
समस्तगुणसम्पन्ने, सर्वलक्षण -लक्षिते। शरच्चंद्रमुखे नीले, नीलनीरद- लोचने ।।5।।
चंचरीक -चमू -चारू- श्रीहार -कुटिलालके। दिव्ये दिव्यवरे श्रीदे, कलकंठरवामृते ।।6।।
हासावलोकनैर्दिव्येर्भक्तचिन्तापहारिके। रूप -लावण्य-तारुण्य -कारुण्यगुणभाजने ।।7।।
क्वणत-कंकण-मंजीरे, रस लीलाकराम्बुजे। रुद्रव्यक्त -महतत्वे, धर्माधारे धरालये ।।8।।
प्रयच्छ यजमानाय, धनं धर्मैक -साधनं। मातस्त्वं वाविलम्बेन, ददस्व जगदम्बिके ।।9।।
कृपाब्धे करूणागारे, प्रार्थये चाशु सिद्धये। वसुधे वसुधारूपे, वसु-वासव-वन्दिते ।।10।।
प्रार्थिने च धनं देहि, वरदे वरदा भव। ब्रह्मणा ब्राह्मणेह पूज्या, त्वया च शंकरो यथा ।।11।।
श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयी किन्करे। स्तोत्रं दारिद्र्य -कष्टार्त-शमनं सुधन -प्रदम ।। 12।।
पार्वतीश -प्रसादेन सुरेश किन्करे स्थितम। मह्यं प्रयच्छ मातस्त्वं त्वामहं शरणं गतः ।।13।।
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