सफलता की कुंजी: ज्ञान किताबी नहीं होता, सूचनाओं को इकट्ठा करने मात्र से नहीं बनती बात
Success Key: संसार में चहुंओर सूचनाओं का अंबार है. प्रत्येक विषय में कई अभिमत हैं. इन सबका संग्रह मात्र सफलता का परिचायक नहीं है. ज्ञान इनसे उूपर उठकर तथ्यों को देखना और समझना है.

सदा से ज्ञान सर्वाेपरि है. ज्ञान का संबंध समस्याओं को सुलझने और दुनिया को नए और बेहतर ढंग से देखने की क्षमता है. वर्तमान में सूचनाओं की भरमार है. इंर्फोमेशन टेक्नोलॉजी के विकास के बाद से सूचनाओं की बाढ़ है.
सूचनाओं को ही ज्ञान समझना व्यक्ति की भूल है. सूचनाएं पूर्व अनुभव मात्र हैं. किसी वस्तु अथवा समस्या को पहले किस रीति से देखा गया है. सूचना का अर्थ इतने से ही है.
पूर्व रीति के अक्षरशः अनुपालन से प्रारंभिक सफलता तो पाई जा सकती है. अत्यंत निचले स्तर पर काम चलाया जा सकता है. परंतु, सूचनाओं मात्र से नए लक्ष्य और अनुबंध पूरे नहीं किए जा सकते हैं.
ज्ञान सूचनाओं के समूह के श्रेष्ठ प्रयोग का प्रयास है. सूचनाएं पुस्तकालय हैं. ज्ञान गुरु है. पुस्तकालय से पाठन संभव है. गुरु अर्थात् ज्ञान बिना इनका व्यवहारिक उपयोग कठिन है.
कबीरदास जी की यह पंक्तियां हम सभी ने सुनी है कि...
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़ै सो पंडित होय।।
इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट है कि पुस्तकों को बांचने से ज्ञान के अंकुर नहीं फूटते हैं. प्रेम के अनुभव से व्यक्ति पांडित्य को प्राप्त करता है. अर्थात् ज्ञान का शिखर छू सकता है.
जीवन में कई डिग्री धारियों को व्यवहारिक मोर्चे पर असफल देखे जाने का कारण भी सूचना और ज्ञान का भेद है. इसके विपरीत कई व्यक्ति कमजोर अकादमिक उपाधियों के बावजूद जीवन में बड़े सफल देखे जाते हैं.
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