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जानें- ग्रिगेरियन, विक्रम संवत और इस्लामी कैलेंडरों की कहानी, और जब तारीख 5 अक्टूबर से सीधे 15 अक्टूबर हो गई

आज हिजरी कैलेंडर का नया साल है, ऐसे में ये जानने का अच्छा मौका है कि आखिर ग्रिगेरियन कैलेंडर, विक्रम संवत हिन्दू पंचांग और हिजरी कैलेंडर के क्या इतिहास हैं और ये कैलेंडर एक-दूसरे से कितने भिन्न हैं.

History of Gregorian, Vikrami and Islamic calendars: दुनिया में एक चीज़ है जो कभी रुकती नहीं है, लगातार बढ़ती रहती है और उसका नाम है...समय. और इंसान की फितरत है कि जो चीज़ जिस तेजी से बदलती है उसपर निगाहें भी सबसे ज्यादा रहती हैं. यही वजह है कि वक़्त को मापने के पैमाने भी इंसान की बुद्धि की वजूद के इतिहास से जुड़ा हुआ है. सैकड़ों सालों से ऐसे कैलेंडर वजूद में आते रहे जो समय को मापने का काम कर रहे हैं, लेकिन इस वक़्त दुनिया में ग्रिगेरियन कैलेंडर का बोलबाला है, इसे सबसे ज्यादा अपनाया गया है, लेकिन इन सबके बावजूद कुछ ऐसे कैलेंडर हैं जिनका न सिर्फ वजूद बाकी है, बल्कि हमारी आपकी जिंदगी में उसका खासा दखल भी है.

भारत में ऐसे तीन कैलेंडर हैं जिनका प्रभाव आम जीवन से लेकर धर्म-कर्म और संस्कृति से जुड़ा हुआ है. भारत में ग्रिगेरियन कैलेंडर के साथ ही विक्रम संवत हिन्दू पंचांग या विक्रम संवत कैलेंडर और हिजरी कैलेंडर या इस्लामी कैंलेडर का खूब बोलबाता है.

दरअसल, आज हिजरी कैलेंडर का नया साल है, ऐसे में ये जानने का अच्छा मौका है कि आखिर ग्रिगेरियन कैलेंडर, विक्रम संवत हिन्दू पंचांग और हिजरी कैलेंडर के क्या इतिहास हैं और ये कैलेंडर एक-दूसरे से कितने भिन्न हैं.

एक बात यहां गौरतलब हैं और वो ये कि अब तक जो भी कैलेंडर वजूद में आए हैं उनका आधार पृथ्वी से सूरज या चांद की परिक्रमा है. बहुत कम कैलेंडर हैं जो मौसम से जुड़े हुए हैं.

ग्रिगेरियन कैलेंडर इस वक़्त दुनिया में जिस कैलेंडर को सबसे ज्यादा मान्यता हासिल है उनमें ग्रिगेरियन कैलेंडर सबसे आगे है. इस कैलेंडर ने जिस तरह हमें अपने सिलसिलेवार इतिहास को संजोकर रखने का मौका दिया है, किसी दूसरे कैलेंडर में नहीं मिलती है. लेकिन याद रहे कि कोई भी कैलेंडर पूरी तरह से सही नहीं है. हरेक में कुछ न कुछ खामी है. इसी तरह ग्रिगेरियन कैलेंडर में भी कुछ खामियां हैं, लेकिन इन सबके बावजूद दुनिया के ज्यादातर देश सरकारी कामकाज के लिए इसी कैलेंडर को फॉलो करते हैं.

ग्रिगेरियन कैलेंडर अपने दो हज़ार साल के सफर को पार कर चुका है, लेकिन इस दौरान उसे काफी फेरबदल से गुजरना पड़ा है और इसकी वजहें वैज्ञानिक के साथ-साथ धार्मिक भी थीं.

ये करीब 5500 साल से चलन में है. इस कैलेंडर के जन्मदाता रोमन हैं. 5 अक्टूबर 1582 से पहले जूलियन कैलेंडर कहा जाता था. एक वक्त ऐसा भी आया जब 5 अक्टूबर 1582 को इस कैलेंडर की तारीख सीधे 5 अक्टूबर से 15 अक्टूबर बदल दी गई. तब से इस कैलेंडर को ग्रिगेरियन कैलेंडर कहा जाने लगा. ये कैलेंडर 365 या 366 दिन का होता है.

विक्रम संवत हिन्दू पंचांग विक्रम संवत हिन्दू पंचांग की शुरुआत 57 ईसा पूर्व में हुई. ऐसा माना जाता है कि इसको शुरू करने वाले धर्मपाल भूमिवर्मा विक्रमादित्य हैं, जबकि एक राय ये है कि इसे भारतवर्ष के सम्राट विक्रमादित्य ने शुरू किया. इस कैलेंडर में महीने का हिसाब सूर्य और चंद्रमा की गति पर होता है. कहा ये भी जाता है कि बारह महीने का एक साल और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ.

याद रहे कि यहां बारह राशियां बारह सूर्य के महीने हैं. जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है. पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है. चंद्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन छोटा है, इसीलिए हर तीन साल में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है.

इस कैलेंडर के अनुसार नया साल चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से होता है. इसे नव संवत्सर भी कहते हैं. 6 अप्रैल-2019 को विक्रम संवत 2076 का प्रथम दिन था. इस कैलेंडर का महत्व ये भी है कि इसी के आधार पर हिंदू पर्व त्यौहार मनाते हैं. इस कैलेंडर से मौसम और नक्षत्र की सही जानकारी मिलती है.

हिजरी कैलेंडर या इस्लामी कैलेंडर इस्लामी कैलेंडर चंद्र कैलेंडर के हिसाब से चलते हैं और साल में इसके भी 12 महीने होते हैं. इस्लामी कैलेंडर में महीने 29 या 30 दिन के होते हैं. एक साल 354.36 दिन का ही होता है. चांद देखने के साथ ही इस्लामी कैलेंडर के हर नए महीने की शुरुआत होती है. इसका पहला महीना मुहर्रम होता है. पहली मुहर्रम इस कैलेंडर का नया साल होता है. साल 2019 में इस्लामी कैलेंडर का नया साल एक सितंबर से शुरू हुआ है. इसे क़मरी कैलेंडर भी कहते हैं, क्योंकि चांद के आधार पर ये कैलेंडर चलता है.

जानें- ग्रिगेरियन, विक्रम संवत और इस्लामी कैलेंडरों की कहानी, और जब तारीख 5 अक्टूबर से सीधे 15 अक्टूबर हो गई

इस्लामी कैलेंडर की खास बात ये है कि जहां ईस्वी कैलेंडर में नई तारीख की शुरुआत रात को 12 बजे से होती है वहीं, हिजरी साल यानि इस्लामी कैलेंडर में नई तारीख की शुरुआत शाम (सूरज डूबने के बाद) से होती है. दुनिया में जहां-जहां भी मुसलमान हैं, वो किसी न किसी रूप में इस्लामी कैलेंडर से बंधे हुए और वो उसे जरूर फॉलो करते हैं क्योंकि पर्व त्यौहार इसी कैलेंडर के आधार पर मनाए जाते हैं.

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