Kashmiri Pandit Wedding: कश्मीरी पंडितों की शादी में क्यों होते हैं सिर्फ चार ही फेरे? IAS की बीवी ने समझाया इनका मतलब
Kashmiri Pandit Marriage Traditions: भारत में शादियों को लेकर आपको अलग-अलग रश्में देखने को मिलती हैं, चलिए आपको बताते हैं कि आखिर कश्मीरी पंडितों की शादी में 4 फेरे क्यों होते हैं.

Why Kashmiri Pandits Have Four Pheras: कश्मीरी पंडितों की शादी की रस्में भले ही देखने में सरल और सादगी से भरी लगती हों, लेकिन इनकी परंपराएं कई दिनों तक चलती हैं. प्री-वेडिंग से लेकर शादी और फिर पोस्ट-वेडिंग रस्मों तक, कश्मीरी विवाह में ढेर सारी परंपराएं निभाई जाती हैं. यही वजह है कि यह शादी एक छोटे से उत्सव की बजाय पूरे हफ्ते चलने वाला समारोह बन जाती है. देवगांव से लेकर मेहंदीरात तक, कश्मीरी शादियों में ताजे फूल, पारंपरिक व्यंजन, खास आभूषण और दोनों परिवारों का आपसी मेलजोल देखने को मिलता है. ये सभी रस्में एक हफ्ते से ज्यादा समय तक अलग-अलग दिनों में होती हैं, जिससे शादी का हर दिन खास बन जाता है.
प्री-वेडिंग रस्में
शादी से पहले होने वाली रस्मों में लिवुन सबसे अहम मानी जाती है। इसमें वर और वधू दोनों के घरों की अच्छे से सफाई की जाती है. पंडित द्वारा तय किए गए शुभ दिन पर घरों को फूलों से सजाया जाता है, जिसे कश्मीरी में क्रूल खानुन कहा जाता है. इसके बाद आती है मेंजिरात या मेहंदी रात, जिसमें दुल्हन के हाथों और पैरों में मेहंदी लगाई जाती है. इस रस्म से पहले मामा और मौसी द्वारा दुल्हन के पैर धोने की परंपरा निभाई जाती है. रात भर लोकगीत, नृत्य और कहवा का दौर चलता है.
इसके बाद देवगांव (हल्दी) की रस्म होती है, जिसमें परिवार के सदस्य प्यार से दुल्हन और दूल्हे को हल्दी लगाते हैं. स्नान के बाद दोनों नए कपड़े पहनते हैं और पूजा से पहले उपवास रखते हैं. इस दिन दुल्हन को परिवार की ओर से गहने और नए कपड़े भी दिए जाते हैं.
View this post on Instagram
शादी का दिन
कश्मीरी शादी को लगन कहा जाता है. इस दिन दूल्हे के परिवार का स्वागत पूरे सम्मान के साथ किया जाता है. शंखनाद के बीच दूल्हा घर में प्रवेश करता है. शुभ मुहूर्त आमतौर पर आधी रात के बाद रखा जाता है. मंडप में पूजा, द्वार पूजा और कन्यादान के बाद विवाह संपन्न होता है. फूलों की बारिश वाली रस्म, जिसे पोष पूजा कहा जाता है, इस शादी को और खास बना देती है.
शादी के बाद की रस्में
शादी के बाद खेल-खेल में अंगूठी ढूंढने जैसी रस्में होती हैं. इसके बाद विदाई, ससुराल में स्वागत, सात्रात, फिरलाथ और घर अचुन जैसी परंपराएं निभाई जाती हैं. इन सभी रस्मों के साथ सप्ताह भर चलने वाला यह विवाह समारोह पूरा होता है.
कश्मीरी पंडित शादी में चार फेरे क्यों?
डॉक्टर चंद्रिका, जिन्हें सोशल मीडिया पर hello_chandrikaa के नाम से जाना जाता हैउन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड करके बताया कि कश्मीरी पंडितों की शादी में सिर्फ चार फेरे क्यों होते हैं. उनके मुताबिक, यह परंपरा कश्मीरी पंडित शादियों को बाकी समुदायों से अलग बनाती है. ये चार फेरे जीवन के चार मूल स्तंभों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक हैं, जिन्हें पुरूषार्थ कहा जाता है. इन चार फेरों के जरिए दंपती एक संतुलित और संपूर्ण जीवन का वचन देते हैं. वे यह संकल्प लेते हैं कि जीवन के हर रास्ते में एक-दूसरे का साथ निभाएंगे. यह रस्म परंपरा, दर्शन और विवाह को खूबसूरती से जोड़ती है और कश्मीरी शैव दर्शन में गहराई से जुड़ी हुई है. सरल, सजीव और अर्थपूर्ण यही कश्मीरी पंडित विवाह की असली पहचान है.
इसे भी पढ़ें: Sleep Structure: 8 घंटे लगातार सोना सही या छोटे-छोटे गैप में नींद लेना, आपकी बॉडी के लिए कौन-सा तरीका बेहतर?
Source: IOCL





















