कोरोना संक्रमण के खिलाफ 'कम असरदार' होने बावजूद फाइजर वैक्सीन गंभीर लक्षण से देती है सुरक्षा- रिसर्च
शोधकर्ताओं ने पाया कि डेल्टा वेरिएन्ट से होनेवाले संक्रमण के खिलाफ फाइजर की वैक्सीन का असर दूसरे डोज के एक महीने बाद 93 फीसद था और चार महीनों बाद घटकर 53 फीसद पर आ गया.
फाइजर-बायोएनटेक की वैक्सीन कोविड-19 के गंभीर लक्षणों को रोक पाने में 'कम से कम' छह महीनों तक बेहद प्रभावी है, लेकिन संक्रमण के खिलाफ सुरक्षा उस दौरान आधा हो जाता है. ये खुलासा लैंसेट पत्रिका में प्रकाशित एक नई रिसर्च से हुआ है. फाइजर की रिसर्च में पाया गया कि वैक्सीन का असर दूसरे डोज के करीब छह महीनों बाद 50 फीसद कम हो जाता है. टीकाकरण पूरा कर लेने के बाद पहले महीने में वैक्सीन 88 फीसद प्रभावी थी लेकिन करीब छह महीनों बाद प्रभावशीलता 47 फीसद घट गई. हालांकि, वैक्सीन डेल्टा वेरिएन्ट के खिलाफ बेहद प्रभावी साबित हुई.
फाइजर की वैक्सीन का असर छह महीनों बाद हो जाता है आधा
शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारे नतीजे अस्पताल में दाखिल होने के जोखिम का पूरी तरह टीकाकरण कराने के बाद करीब छह महीनों तक काफी प्रभावशीलता का समर्थन करते हैं, यहां तक कि डेल्टा वेरिएन्ट के व्यापक प्रसार के बावजूद भी. कोरोना संक्रमण के खिलाफ वैक्सीन की प्रभावशीलता में कमी समय के साथ शायद मुख्य रूप से इम्यूनिटी घटने के कारण है. गंभीर बीमारी के खिलाफ सुरक्षा पूरी अवधि में ऊंची रही, यानी टीकराकरण के बाद छह महीनों तक 93 फीसद प्रभावी. रिसर्च के लिए शोधकर्ताओं ने वैक्सीन लगवाने वाले 34 लाख लोगों के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का मुआयना किया. उन्होंने पाया कि टीकाकरण पूरा करवाने वाले लोगों को वैक्सीन से कुल मिलाकर कोरोना संक्रमण के खिलाफ प्रभावी सुरक्षा 73 फीसद मिली और संक्रमण के नतीजे में अस्पताल जाने से 90 फीसद प्रभावी साबित हुई.
टीकाकरण करा चुके 34 लाख लोगों के डेटा से हुआ खुलासा
रिसर्च से पता चला कि फाइजर की कोविड-19 वैक्सीन का असर दूसरा डोज लगने के एक महीने बाद कम होना शुरू हो जाती है और छह महीनों बाद कम होकर आधा हो जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि वैक्सीन का असर 6 महीने बाद 88 फीसद से घटकर 47 फीसद होने के बावजूद टीकाकरण करानेवाले लोगों में बीमारी के गंभीर लक्षण नहीं विकसित होते हैं और इस तरह उनको अस्पताल जाने से सुरक्षा मिल जाती है. नतीजे सेंटर फोर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन और इजराइली स्वास्थ्य अधिकारियों की शुरुआती रिपोर्ट की पुष्टि करते हैं. उसमें पाया गया था कि कई महीनों बाद संक्रमण के खिलाफ सुरक्षा में कमी आ जाती है यहां तक कि उसका असर लोगों को अस्पताल से दूर रखने में बना रहता है.
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