ऑटोमोबाइल सेक्टर में चीन-जर्मनी की मोनोपॉली को जबरदस्त चुनौती, वैश्विक कंपनियों का बेस बन उभर रहा भारत
पिछले एक दशक में भारत ने जिस गति से ऑटोमोबाइल क्षेत्र में प्रगति की है, ये पूरी दुनिया के लिए एक केस स्टडी है. अब हम जर्मनी को पछाड़ने और चीन को बराबरी की टक्कर देने के करीब पहुंचने वाले हैं.

India Automobile Industry Growth: भारतीय ऑटो इंडस्ट्री लगातार नई ऊंचाईयां छू रही है. इसका बड़ा उदाहरण यह है कि आज जब हम भारतीय सड़कों पर नजर डालते हैं तो हमें सिर्फ गाड़ियां नहीं, बल्कि एक बदलते भारत की बुलंद तस्वीर दिखाई देती है. भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर आज उस मोड़ पर खड़ा है, जहां से ये न केवल दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार है. बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के बड़े दिग्गजों को कड़ी टक्कर दे रहा है.
हमारे ऑटो सेक्टर को मेक इन इंडिया से लेकर आत्मनिर्भर भारत ने वो पंख दिए हैं, जिससे अब हम जर्मनी को पछाड़ने और चीन जैसे दिग्गज को बराबरी की टक्कर देने के करीब पहुंच चुके हैं.
कैसे तरक्की कर रहा ऑटोमोबाइल सेक्टर?
पिछले एक दशक में भारत ने जिस स्पीड से ऑटोमोबाइल क्षेत्र में प्रगति की है, यह पूरी दुनिया के लिए एक केस स्टडी है. भारत पहले ही जापान को पीछे छोड़कर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटो बाजार बन चुका है. ये उपलब्धि कोई छोटी बात नहीं है, क्योंकि इसमें पैसेंजर वाहनों से लेकर कॉमर्शियल और टू-व्हीलर सेगमेंट तक की जबरदस्त भागीदारी है.
भारतीय ऑटो सेक्टर का देश की GDP में योगदान लगभग 7 फीसदी से अधिक है और सरकार का टारगेट इसे जल्द ही बढ़ाने का है. ऑटोमोबाइल सेक्टर न केवल लाखों लोगों को रोजगार दे रहा है, बल्कि भारत के एक्सपोर्ट के इंजन को भी नई ऊर्जा दे रहा है. भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग लगातार बढ़ रही है और इसका सीधा असर EV बैटरी बाजार पर दिखाई दे रहा है.
कस्टमाइज एनर्जी सोल्यूशन यानी CES की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में EV बैटरी की मांग 2025 में 17.7 GWh से बढ़कर 2032 तक 256.3 GWh तक पहुंच सकती है. ये बढ़ोतरी आने वाले कुछ सालों में बहुत तेज रहने वाली है. रिपोर्ट में बताया गया है कि पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतें, सरकार की मददगार नीतियां और लोगों का इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर झुकाव इस बदलाव की बड़ी वजहें हैं.
जर्मनी को कैसे पछाड़ेगा भारत?
जर्मनी को दुनियाभर में टेक्नोलॉजी और लग्जरी कारों के लिए जाना जाता है, लेकिन आज स्थितियां बदल रही है. भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री अब केवल असेंबली लाइन तक सीमित नहीं है, बल्कि ये अब रिसर्च, डिजाइन और इनोवेशन में निवेश कर रही हैं. भारत की उत्पादन क्षमता में साल-दर-साल रिकॉर्ड बढ़ोतरी हो रही है. जिस रफ्तार से भारत में नए प्लांट लग रहे हैं और मौजूदा प्लांट्स का विस्तार देखा जा रहा है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगले कुछ सालों में भारत जर्मनी को पीछे छोड़ देगा.
जर्मनी की तकनीक शानदार है, लेकिन भारत की ताकत उसकी 'कॉस्ट-इफेक्टिव इंजीनियरिंग' है. हम कम लागत में वैश्विक स्तर की गुणवत्ता प्रदान कर रहे हैं, जो साउथ-ईस्ट एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे उभरते बाजारों में हमें जर्मनी पर बढ़त दिला रही है.
चीन को टक्कर देने की रणनीति
ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में चीन फिलहाल दुनिया का सबसे बड़ा खिलाड़ी है, खासकर इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) सेगमेंट में इसका बड़ा बोलबाला है, लेकिन भारत ने अब चीन की इस मोनोपॉली को चुनौती देना शुरू कर दिया है. दुनिया अब सप्लाई चेन के लिए केवल चीन पर निर्भर नहीं रहना चाहती. भारत इस रणनीति का सबसे बड़ा लाभार्थी बनकर उभरा है. वैश्विक कंपनियां अब अपने बेस भारत में स्थानांतरित कर रही हैं, जिससे हमारा इकोसिस्टम मजबूत हो रहा है.
भारत ने EV सेक्टर में चीन को टक्कर देने के लिए कमर कस ली है. टाटा मोटर्स, महिंद्रा और ओला इलेक्ट्रिक जैसे स्वदेशी ब्रांड्स ने यह साबित कर दिया है कि हम विश्व स्तरीय इलेक्ट्रिक गाड़ियां बना सकते हैं. FAME-II जैसी सरकारी योजनाओं और PLI स्कीम ने लिथियम-आयन बैटरी के स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा दिया है जो चीन के दबदबे को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है.
भारत न केवल बैटरी पर, बल्कि ग्रीन हाइड्रोजन और फ्लेक्स-फ्यूल पर भी तेजी से काम कर रहा है. यह तकनीक आने वाले समय में हमें चीन से आगे निकलने में मदद करेगी क्योंकि हम ऊर्जा के नए स्रोतों में आत्मनिर्भर बन रहे हैं.
नितिन गडकरी के नेतृत्व में जिस गति से देश में नेशनल हाईवे और एक्सप्रेस-वे बन रहे हैं, उसने लॉजिस्टिक्स की लागत कम की है और गाड़ियों की मांग को बढ़ाया है. पुरानी गाड़ियों को सड़कों से हटाकर नई और सुरक्षित गाड़ियों को बढ़ावा देने की नीति ने ऑटो सेक्टर के लिए एक नया रिप्लेसमेंट मार्केट तैयार कर दिया है.
2047 के लिए ऑटो इंडस्ट्री का लक्ष्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया है. इस विजन में ऑटोमोबाइल सेक्टर एक ग्रोथ इंजन की तरह है. जब हम 2047 में अपनी आजादी के 100 साल मना रहे होंगे, तब भारत की सड़कें स्मार्ट, सुरक्षित और पॉल्यूशन फ्री होंगी. भारत केवल गाड़ियों का बाजार नहीं, बल्कि दुनिया का 'ग्लोबल ऑटोमोबाइल हब' होगा. हमारी गाड़ियां दुनिया के हर कोने में दौड़ रही होंगी. विकास की यह लहर केवल बड़े शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण भारत में भी वाहनों की बढ़ती मांग यह दर्शाती है कि देश का हर नागरिक इस आर्थिक प्रगति का हिस्सा बन रहा है.
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Source: IOCL
























